जासूसी के आरोप में 5 साल से पाकिस्तानी जेल में बंद है MP का युवक, परिवार को लगा हो चुकी है मौत

पांच साल तक अपने परिवार द्वारा मृत समझे जाने के बावजूद, मध्य प्रदेश के एक दूरदराज के गांव का एक और लापता व्यक्ति पाकिस्तान के लाहौर में पड़ा हुआ पाया गया है. यह जानकारी एक पूर्व भारतीय कैदी ने दी है. जम्मू-कश्मीर के कठुआ के निवासी कुलदीप सिंह, जो 29 साल की कैद के बाद लाहौर जेल से रिहा हुए थे

(प्रतिकात्मक तस्वीर)

भोपाल: पांच साल तक अपने परिवार द्वारा मृत समझे जाने के बावजूद, मध्य प्रदेश के एक दूरदराज के गांव का एक और लापता व्यक्ति पाकिस्तान के लाहौर में पड़ा हुआ पाया गया है. यह जानकारी एक पूर्व भारतीय कैदी ने दी है. जम्मू-कश्मीर के कठुआ के निवासी कुलदीप सिंह, जो 29 साल की कैद के बाद लाहौर जेल से रिहा हुए थे. कुलदीप ने बताया कि 36 वर्षीय प्रसन्नजीत रंजारी वर्तमान में जासूसी के संदेह में लाहौर की खतरनाक कोट लखपत जेल के ब्लॉक 4 में बंद है.

प्रसनजीत के परिवार ने उन्हें मृत मान लिया था. कुलदीप ने भोपाल में प्रसनजीत के चाचा से संपर्क करके उन्हें बताया कि वह बिल्कुल जीवित हैं और उन्हें मदद की सख्त जरूरत है. प्रसन्नजीत भोपाल से लगभग 470 किमी दूर एमपी-महाराष्ट्र सीमा पर बालाघाट के खैरलांजी गांव ते रहने वाले हैं. वह पाकिस्तानी जेल में बंद होने वाले कम से कम आठवें मप्र निवासी हैं, जिससे खुफिया एजेंसियां हैरान हैं. यह भी पढ़े: Assam: नवंबर में लापता असम की महिला और उसका बेटा पाकिस्तान की जेल में

संदिग्ध जासूस के रूप में कोट लखपत जेल में कैद रहे कुलदीप ने टीओआई को बताया कि कैसे उन्हें वह दिन अच्छी तरह याद है जब अक्टूबर 2019 में प्रसन्नजीत को जेल की कोठरी में लाया गया था. पाकिस्तानी रिकॉर्ड के अनुसार, वह 'विक्रम आटे के बेटे सुनील आटे' के नाम से पंजीकृत है.

कुलदीप ने बताया “पीड़ा के कारण उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी. मैंने उसे अपनी देखरेख में ले लिया. मैंने उसे सिर्फ रूममेट ही नहीं, बल्कि अपने बेटे जैसा ही समझा. जब मुझे गिरफ्तार किया गया, तो मेरा बेटा केवल ढाई साल का था और प्रसनजीत ने वह कमी पूरी कर दी.'' उन्होंने कहा कि उन्हें रिहा हो चुके अन्य कैदियों से प्रसन्नजीत के बारे में समय-समय पर जानकारी मिलती रहती है.

संघमित्रा ने टीओआई को बताया कि प्रसनजीत जबलपुर विश्वविद्यालय से फार्मेसी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने और 2015 तक राज्य फार्मेसी काउंसिल के साथ पंजीकृत होने तक "मानसिक रूप से स्थिर" थे. वह अपने परिवार को संकट में छोड़कर 2018 में लापता हो गए. परिवार ने सोचा की वह मर चुके हैं. जब उसे पता चला कि वह पाकिस्तान जेल में बंद है तो संघमित्रा ने प्रसन्नजीत को एक पत्र भेजने का इरादा किया, लेकिन कुलदीप ने उसे बताया कि पाकिस्तानी जेलों के अंदर पत्रों की अनुमति नहीं है, इसलिए उसने समर्थन के लिए स्थानीय अधिकारियों से संपर्क करना शुरू कर दिया.

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