सीएम कॉनरॉड संगमा की सरकार की पहल से मेघालय बन गया सुपर फ्रूट कीवी का बड़ा उत्पादक, न्यूजीलैंड को टक्कर देने की तैयारी
जलवायु के दृष्टिकोण से भारत की मिट्टी में अपरिमित क्षमताएं हैं. इसीलिए भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है. लेकिन कुछ ऐसे भी उत्पाद हैं जिनके लिए भारत को विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है. ऐसा ही एक फल है कीवी.
जलवायु के दृष्टिकोण से भारत की मिट्टी में अपरिमित क्षमताएं हैं. इसीलिए भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है. लेकिन कुछ ऐसे भी उत्पाद हैं जिनके लिए भारत को विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है. ऐसा ही एक फल है कीवी. सेहत के लिए रामबाण माना जाने वाला कीवी कल तक इटली और न्यूजीलैंड से आयात किया जाता था, क्योंकि यहां की जलवायु कीवी उत्पादन योग्य नहीं मानी जाती थी. लेकिन मेघालय (Meghalaya) की महिला कृषक मिदलिस लिंगदोह ने मेघालय सरकार और यहां के युवा मुख्यमंत्री कॉनरॉड संगमा (Conrad Sangma) की मदद से इस भागीरथ प्रयास में सफलता पाई. आइये जानें मेघालय की पहली किसान मिदलिस लिंगदोह ने इस बहुपयोगी फल को भारतीय मिट्टी में न केवल उगाने में सफलता हासिल की, बल्कि संपूर्ण भारत में इसे आसानी से सुलभ भी करवा रही हैं. मेघालय में बनेगा मेगा फूड पार्क, 65.29 करोड़ रुपये की परियोजना को केंद्र ने दी हरी झंडी
किवीः इतनी मांग एवं महत्व क्यों?
पिछले कुछ वर्षों से देश के महानगरों एवं बड़े शहरों में कीवी की मांग बढ़ रही है. क्योंकि सेहत के लिए यह बहुत उपयोगी फल है. डेंगू के लिए तो यह रामबाण इलाज है ही, साथ ही इसमें संतरा की तुलना में पांच गुना ज्यादा विटामिन-सी होता है. स्वाद में थोड़े खट्टे थोड़े मीठे कीवी में विटामिन्स, पोटेशियम, कॉपर एवं फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाये जाने के कारण इसे सुपर फ्रूट भी कहा जाता है. लगभग 70 ग्राम फ्रेश कीवी फ्रूट में विटामिन सी 50%, विटामिन के 1%, कैल्शियम 10%, फाइबर 8%, विटामिन ई 60%, पोटैशियम 6% पाया जाता है. इसमें निहित एंटी ऑक्सीडेंट शरीर को रोगों से बचाने का काम करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. यह स्वास्थ के लिए बहुत जरुरी होता है. हांलाकि चिकित्सक यह भी कहते हैं कि कीवी का बहुत ज्यादा सेवन सेहत के लिए घातक भी साबित हो सकता है.
मेघालय में कैसे शुरु हुई कीवी की खेती?
शिलांग (मेघालय) से लगभग 50 किमी दूर एक गांव नोंगस्पपुंग अचानक सुर्खियों में आया और देखते ही देखते स्थानीय ही नहीं बल्कि बाहरी लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया. इसकी वजह थी एक 58 वर्षीया सिंगल महिला कृषक मिडलिस लिंगदोह जिन्होंने असंभव कहे जानेवाले एक विदेशी फल कीवी को अपनी भूमि में उगाकर अपने व्यवसाय को एक नई दिशा दी, साथ ही विदेशी कीवी के आयात पर अंकुश लगाया. मिडलिस लिंगदोह कृषक के अलावा सरकारी स्कूल में प्रायमरी टीचर भी हैं. कहा जाता है कि एक बार उनके भाई सेंगवेल लिंगदोह ने बागबानी विभाग से कीवी के 12 पौधे लाकर उन्हें दिये. मिडलिस ने इन पौधों को लगभग 2000 वर्ग फीट के प्लॉट में बोया, और तीन साल बाद 6 सौ किग्रा कीवी उगाने में सफल रहे. इसके बाद से मिडलिस निरंतर कीवी की खेती कर रही हैं. जब कीवी का उत्पादन बढ़ने लगा तो मिडलिस परिवार ने कीवी का जैम बनाकर बेचना शुरु किया. मिडलिस की इस सफलता से प्रभावित होकर मेघालय बेसिन विकास प्राधिकरण (MBDA) के निदेशक, एबान स्वेर ने भी कीवी का उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्हें हर संभव मदद की. आज मेघालय सरकार की मदद से राज्य के अधिकांश खेतों में कीवी की खेती कर जहां कृषक मालामाल हो रहे हैं, वहीं राज्य की अर्थव्यवस्था में भी व्यापक सुधार आया है.