J&K: कैसे TRF का मुखौटा पहनकर पाकिस्तान कश्मीर में फिर लाना चाहता है आतंक का पुराना दौर, ये है असली मकसद

टीआरएफ पिछले कुछ सालों से सुरक्षाबलों के लिए चुनौती बना हुआ है. यह कोई नया आतंकी संगठन नहीं है. ये आतंकी संगठन 2019 में वजूद में आया था. टीआरएफ हाफिज सईद के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ है. दरअसल टीआरएफ एक चेहरा मात्र है. इन हमलों को लश्कर के आतंकी ही अंजाम देते हैं.

Indian Army | PTI

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में बुधवार (13 सितंबर) को बड़ा आतंकी हमला हुआ है. इस हमले में सेना के कर्नल मनप्रीत सिंह, बटालियन कमांडिंग मेजर आशीष धोनैक और जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं भट शहीद हो गए. ये हमला अनंतनाग के कोकरनाग के हलूरा गंडूल इलाके में हुआ. इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है. टीआरएफ ने दावा किया है कि उसने पाकिस्तान की मस्जिद में मारे गए लश्कर कमांडर रयाज अहमद उर्फ कासिम की मौत का बदला लिया है. 8 सितंबर को रावलकोट की मस्जिद में आतंकी कासिम की हत्या कर दी गई थी. J&K: पीर पंजाल रेंज क्यों है सेना के लिए बड़ी चुनौती? यहीं के पहाड़ और जंगल बन रहे हैं आतंकवादियों का ठिकाना.

टीआरएफ पिछले कुछ सालों से सुरक्षाबलों के लिए चुनौती बना हुआ है. यह कोई नया आतंकी संगठन नहीं है. ये आतंकी संगठन 2019 में वजूद में आया था. टीआरएफ हाफिज सईद के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ है. दरअसल टीआरएफ एक चेहरा मात्र है. इन हमलों को लश्कर के आतंकी ही अंजाम देते हैं.

क्या है टीआरएफ?

द रेजिस्टेंस फ्रंट (The Resistance Front) जम्मू-कश्मीर में एक्टिव है. यह आतंकी संगठन एक तरह से लश्कर-ए-तैयबा की ब्रांच है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद टीआरएफ एक ऑनलाइन यूनिट के रूप में शुरू हुआ था और बाद में लश्कर-ए-तैयबा सहित विभिन्न संगठनों के आतंकवादियों को शामिल करने के साथ एक भौतिक इकाई के रूप में विकसित हुआ.

इसे मौजूदा पाकिस्तानी सेना की आतंकी मशीनरी से नियमित समर्थन मिलता है. सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, संगठन को अपनी गतिविधियों को बनाए रखने के लिए उन्हीं स्रोतों से धन मिलता है जो लश्कर के संचालन को वित्तपोषित करते हैं.

टीआरएफ के पीछे पाकिस्तान का क्या मकसद?

टीआरएफ को बनाने का मकसद लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को कवर देना है. पाकिस्तान चाहता था कि यह एक स्वदेशी प्रतिरोध आंदोलन जैसा दिखे, क्योंकि लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) जैसे संगठनों के चलते पाकिस्तान दुनियाभर में बदनाम है. पाकिस्तान ने गहरी साजिश रची. वो दुनिया को ये दिखाना चाहता था कि कश्मीर में हो रहे आतंकी हमलों के पीछे कश्मीर के ही स्थानीय लोगों का ही हाथ है.

इस संगठन को बनाने की साजिश सरहद पार से रची गई थी. टीआरएफ को बनाने में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के साथ-साथ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ रहा है. ये इसलिए बनाया गया ताकि भारत में होने वाले आतंकी हमलों में सीधे तौर पर पाकिस्तान का नाम न आए, और पाकिस्तान फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ब्लैक लिस्ट में आने से बच जाए. इसलिए इसका नाम 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' रखा गया. ताकि दुनिया को लगे कि ये स्थानीय लोगों का 'रेजिस्टेंस' यानी 'प्रतिरोध' है.

कश्मीर में सबसे अधिक एक्टिव TRF

2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) का ऑनलाइन गठन किया गया था. कश्मीर में इस समय टीआरएफ ही सबसे ज्यादा एक्टिव आतंकी संगठन माना जाता है. कश्मीर में होने वाले आतंकी हमलों की जिम्मेदारी टीआरएफ इसलिए लेता है, ताकि पाकिस्तान की सरजमीं से चल रहे आतंकी संगठनों के नाम सामने न आएं. नागरिकों को निशाना बनाने के अलावा, टीआरएफ सुरक्षाबलों के साथ भीषण गोलीबारी में भी शामिल रहा है.

इस साल जनवरी में सरकार ने यूएपीए के तहत आतंकी संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया और इसके कमांडर शेख सज्जाद गुल को यूएपीए की चौथी अनुसूची के तहत आतंकवादी घोषित कर दिया. श्रीनगर के रोज़ एवेन्यू कॉलोनी के रहने वाले गुल पर जून 2018 में कश्मीरी पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की साजिश के पीछे होने का संदेह है.

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