Lok Sabha Elections 2024: चुनाव का समय आ गया है और यूपी में जाति का मामला एक बार फिर गरमा गया है
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लखनऊ, 23 दिसंबर : लोकसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही उत्तर प्रदेश में जाति का मामला - जिसे सोशल इंजीनियरिंग के नाम से जाना जाता है, उबाल पर है. फर्क सिर्फ इतना है कि यह जातिवाद से उपजातिवाद तक पहुंच गया है. उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दल जाति के नेताओं को लुभा रहे हैं और 2017 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए बेधड़क जाति और उपजाति सम्मेलनों का आयोजन कर रहे हैं. आदेश में कहा गया है कि "धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा को चुनावी प्रक्रिया में कोई भूमिका निभाने की अनुमति नहीं दी जाएगी." अब तक हिंदुत्व को अपनी प्राथमिकता सूची में रखने वाली भाजपा भी ओबीसी वर्ग की उपजातियों को लुभाने में लगी है. पार्टी को स्पष्ट रूप से लगता है कि सामान्य तौर पर हिंदुओं की बात करने से चुनावों में पर्याप्त संख्या नहीं मिल सकती है और इसलिए विशिष्ट जाति समूहों को सामूहिक रूप से और साथ ही अलग से ध्‍यान देने की आवश्यकता है.

हाल के दिनों में, भाजपा अपने ओबीसी नेताओं के नेतृत्व में लखनऊ में उप-जाति सम्मेलन आयोजित कर रही है, इसमें उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य भी शामिल हैं, जो खुद एक ओबीसी हैं. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ओबीसी के नए स्वयंभू नेता हैं और भाजपा के लिए पिछड़ा समर्थन जुटाने के लिए भी जोर लगा रहे हैं. संजय निषाद, जो निषाद पार्टी के प्रमुख हैं और योगी सरकार में मंत्री हैं, भी अपने समुदाय को भाजपा के नेतृत्व वाले पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं. कुर्मी-केंद्रित पार्टी अपना दल पहले से ही यूपी में बीजेपी की प्रमुख सहयोगी है. भाजपा समाजवादी पार्टी के वोट आधार का एक हिस्सा छीनने और अति पिछड़ी जातियों को लुभाकर बसपा की लोकप्रियता में सेंध लगाने की इच्छुक है. ओबीसी में 200 से अधिक उपजातियां हैं, जो राज्य की आबादी का 40 प्रतिशत हैं. यह भी पढ़ें : Ishan Kishan Opted Out Of IND vs SA Test Series: ईशान किशन ‘मानसिक थकान’ के कारण टेस्ट सीरीज से बाहर- रिपोर्ट

ओबीसी आबादी में यादवों (15 प्रतिशत) का वर्चस्व है और उसके बाद कुर्मियों (9 प्रतिशत) का नंबर आता है. शेष उपजातियांं जनसंख्या का एक से दो प्रतिशत हैं. भाजपा ने अब तक उपजातियों के लिए सम्मेलन आयोजित किए हैं, इनमें निषाद, कश्यप, बिंद, कुर्मी, यादव, चौरसिया, तेली, साहू, नाई, विश्वकर्मा, बघेल, पाल, लोध, जाट, गिरी, गोस्वामी, जायसवाल, कलवार, हलवाई शामिल हैं. पार्टी इन उप-जाति समूहों को आश्वासन दे रही है कि वह उनके हितों की रक्षा करेगी. भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने स्वीकार किया कि पार्टी अपने वर्तमान वोट आधार को बढ़ाने के लिए उत्सुक है, क्योंकि इससे सत्ता विरोधी लहर के कारण होने वाली किसी भी कमी की भरपाई हो जाएगी.

पदाधिकारी ने कहा, “यह समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों को पार्टी में लाने का एक सचेत प्रयास है. अगर हम अपना वोट आधार बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है?” . भाजपा को उप-जाति समूहों को लुभाने के लिए ठोस प्रयास करते देख, समाजवादी पार्टी जो अब तक अपने यादव वोट बैंक से संतुष्ट थी, उसने भी गैर-यादव ओबीसी तक पहुंच बनाना शुरू कर दिया है. पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्याक) का उसका नारा उसकी नई रणनीति का प्रकटीकरण है. हालांकि, समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील साजन इस बात से इनकार करते हैं कि समाजवादी पार्टी बीजेपी के नक्शेकदम पर चल रही है.

उन्होंने कहा,“हम भाजपा की तरह उप-जाति सम्मेलन आयोजित नहीं कर रहे हैं और दृष्टिकोण में स्पष्ट रूप से जातिवादी नहीं बन रहे हैं. हम सामान्य रूप से ओबीसी के लिए एक सामाजिक न्याय कार्यक्रम चला रहे हैं.” दूसरी ओर, बहुजन समाज पार्टी अपनी भाईचारा समितियों के माध्यम से विभिन्न दलित उपजातियों को लुभाने में लगी है. 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' (जो कि बीजेपी के 'सबका साथ सबका विकास' के समान लगता है) के नारे के साथ ब्राह्मणों को वापस जीतने की पार्टी की कोशिशों को पार्टी के सबसे बड़े ब्राह्मण नेता सतीश चंद्र मिश्रा को दरकिनार किए जाने से झटका लगा है. कांग्रेस भी ओबीसी आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करके सोशल इंजीनियरिंग में शामिल हो गई है.