कुम्भ मेला हादसाः 3 फरवरी के दिन इलाहाबाद कुम्भ मेला में मची भगदड़ में सैकड़ों लोगों की जानें गई थीं, जानें क्या थी वजह?
देश के चार शहरों प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल में कुम्भ मेले का आयोजन होता है. इसमें प्रयागराज का कुम्भ मेला विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला माना जाता है.
प्रयागराज, 3 फरवरी : देश के चार शहरों प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल में कुम्भ मेले (Kumbh Mela) का आयोजन होता है. इसमें प्रयागराज (Prayagraj) का कुम्भ मेला विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला माना जाता है. इस मेले में लोग त्रिवेणी में श्रद्धा की डुबकियां लगाकर अपने मानव जीवन को कृतार्थ करते हैं, और मोक्ष की इच्छा रखते हैं. विश्व का सबसे बड़ा मेला होने के कारण इन मेलों में दुनिया भर के करोड़ों स्नानार्थी एकत्र होते हैं. इस वजह से प्रशासन को बहुत चुस्त और सतर्क रहकर व्यापक पैमाने पर व्यवस्था करनी होती है. जरा-सी लापरवाही बड़ी दुर्घटना को जन्म दे सकती है. जहां तक कुम्भ मेला की बात है तो हां, यहां भी पूर्व में कुछ बड़ी दुर्घटनाएं भी हुई हैं, इसी में एक है आजादी के बाद (1954) प्रयागराज का पहला कुम्भ मेला, प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस मेले में मची भगदड़ में लगभग एक हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. आइये जानें क्यों और किन हालातों में मची थी यह भगदड़!
3 फरवरी 1954 पर्व मौनी अमावस्या.. उम्मीद थी कि अंग्रेजी हुकूमत से मिली आजादी के बाद देश-दुनिया से भारी तादाद में स्नानार्थी यहां पहुंचेंगे, जिनकी अनुमानित संख्या करोड़ से ऊपर हो सकती थी, और वही हुआ. उस दुर्घटना में मौजूद स्थानीय अखबार के प्रेस फोटोग्राफर ए एन मुखर्जी (AN Mukherjee) के अनुसार मौनी अमावस्या की सुबह सब कुछ संयमित तरीके से चल रहा था. इस दिन देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद एवं प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू भी उपस्थित होने वाले थे. कहा जाता है कि उनके लिए त्रिवेणी के किनारे अकबर के किले के बुर्ज में बैठने की व्यवस्था की गयी थी. ज्यों ही ये लोग त्रिवेणी रोड से बांध के नीचे उतरते हुए किले की तरफ बढ़े, मेले में जगह-जगह सुरक्षा के लिए लगी पुलिस बल इनकी सुरक्षा में चले आये. उसी दरम्यान एक अखाड़ा दल के जुलूस ने भी बांध के रास्ते से मेला क्षेत्र में प्रवेश किया. इस अखाड़ा दल-बल का मार्ग-दर्शन पुलिस बल द्वारा नियंत्रित किया जाना था, जो कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद एवं नेहरू जी के इर्द-गिर्द लगा दिये गये थे. कहा जाता है कि अखाड़ा दल को देखने के लिए स्नानार्थियों की भीड़ एक ही जगह इकट्ठी होने लगी, जिसकी वजह से मेला क्षेत्र में भगदड़ मच गयी. भीड़ पर किसी का नियंत्रण नहीं होने से भीड़ पूरी तरह अनियंत्रित होती चली गयी. सबसे बुरा हाल महिलाओं और बच्चों का था. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार हालात इतनी बिगड़ी कि लोग अपनी जान बचाने के लिए बच्चों एवं महिलाओं के शवों को कुचलते हुए भागने लगे. एक बार जो गिरा तो उसे संभलने का अवसर नहीं मिला, उसे रौंदते हुए भीड़ बांध रोड की तरफ भागने लगी. यह भी पढ़ें : Haridwar Kumbh 2021: कुंभ में शाही स्नान का आशय, जानें कुंभ का महात्म्य और क्या है शाही स्नान की तिथियां
गौरतलब है कि प्रयागराज स्थित यह मेला दूर तक फैले रेतीले मैदान पर आयोजित किया जाता है. रेत में जगह-जगह दलदल होते हैं, जिस पर लोहे के प्लेट बिछाकर आने-जाने के मार्ग बनाये जाते हैं. मेला क्षेत्र का लगभग 40 फीसदी हिस्सा दलदल होता है, जिसे मेला अधिकारियों द्वारा प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है. जब भगदड़ मची तो भीड़ प्रतिबंधित क्षेत्रों में भी चली गयी, लोग दलदल में भी फंसते-धंसते चले गये. प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार इस भगदड़ में लगभग एक हजार लोगों की जान गई थी. हांलाकि स्थानीय अखबार में इस संदर्भ में छपी खबर से सरकार और उच्च प्रशासन अधिकारी नाराज नहीं थे, क्योंकि उनके अनुसार आंकड़े इतना ज्यादा नहीं थे. इस तरह 3 फरवरी 1954 के दिन जो कुछ हुआ, वह स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे भयानक अध्यायों में से एक था. उस दिन मौनी अमावस्या पर पवित्र त्रिवेणी स्नान करने के लिए लाखों भक्त संगम पहुंचे थे. त्रिवेणी तट पर लगभग 1 हजार लोग मारे गए और भगदड़ के कारण लगभग 2000 से ज्यादा घायल हो गए.'