अयोध्या विवादः मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है? सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला
अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ मुस्लिम पक्ष की ओर से उठाए गए मसलों पर फैसला सुनाएगी.
नई दिल्ली: आधार कार्ड और प्रमोशन में आरक्षण का फैसला सुनाने के बाद आज गुरुवार को भी देश की सबसे बड़ी अदालत के लिहाज से बड़ा दिन है.बता दें कि गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट कई अहम फैसलों में अपना निर्णय सुनाएगा. इन सबसे अहम मुद्दा अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़ा है. साथ ही एक अन्य फैसले में SC व्यभिचार पर फैसला सुनाएगा. दरअसल सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पहले इस पहलू पर विचार करेगा कि क्या ‘मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं और क्या यह मामला संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाना चाहिए.
अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ मुस्लिम पक्ष की ओर से उठाए गए मसलों पर फैसला सुनाएगी. इसमें इस्माइल फारूकी फैसले के उस अंश पर पुनर्विचार की मांग पर की गई है जिसमें नमाज अदा करने के लिए मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. यह भी पढ़े-अयोध्या केस: सुप्रीम कोर्ट 28 सितंबर को नमाज पढ़ने पर सुना सकता है फैसला
इस मामले में 20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था. तीन सदस्यीय विशेष पीठ तय करेगी कि पांच जजों की संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर फिर विचार करने की जरूरत है या नहीं.
ज्ञात हो कि अयोध्या मामले के मुख्य मामले यानी टाइटल सूट की सुनवाई से पहले कोर्ट ने इस पर फैसला देने का विचार किया है. कि क्या नमाज़ पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं. इसके बाद ही टाइटल सूट मामले पर सुनवाई होगी. यह भी पढ़े-अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के लिए VHP जल्द शुरू करेगी आंदोलन, 5 अक्टूबर को बुलाई 36 प्रमुख संतों की बैठक
जानिए क्या कहते हैं पक्षकार?
बता दें कि बाबरी मस्जिद में मुद्दई इकबाल अंसारी का कहना है कि 27 तारीख को कोर्ट जो भी फैसला करे हमें मंजूर है. लेकिन मस्जिद में मूर्ति रखी गई, मस्जिद तोड़ी गई, फैसला कोर्ट को सबूतों के बुनियाद पर करना है.
उन्होंने कहा कि मस्जिद इस्लाम का एक अंग है. मस्जिद तोड़ दी गई, तब भी नमाज जमीन पर बैठकर की जाएगी. वह जगह मस्जिद कहलाएगी. मस्जिद की जमीन ना किसी को दी जा सकती है और ना बेची जा सकती है. वह हमेशा मस्जिद ही कही जाएगी. हम कोर्ट पर विश्वास करते हैं. कानून पर विश्वास करते हैं. कोर्ट फैसला करे. इधर करे या उधर करे, क्योंकि इसके पहले इस पर इतनी राजनीति की जा चुकी है.
गौरतलब है कि 1994 में पांच जजों के पीठ ने राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था ताकि हिंदू पूजा कर सकें. पीठ ने ये भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई राम लला को दिया था.