‘मेक इन इंडिया’ से मिली भारतीय रेलवें को नई उड़ान, रच डाले कई इतिहास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ ने भारतीय रेलवें को एक नए शिखर पर पहुंचा दिया है. वर्ष 2018 में इस योजना पर तेजी से काम किया गया. देश की पहली स्वदेशी सेमी हाई स्पीड ट्रेन टी-18 इसी का नतीजा है. इसके तहत कई काम ऐसे किए गए जो दशकों से अधर में अटके थे.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ ने भारतीय रेलवें को एक नए शिखर पर पहुंचा दिया है. वर्ष 2018 में इस योजना पर तेजी से काम किया गया. देश की पहली स्वदेशी सेमी हाई स्पीड ट्रेन टी-18 इसी का नतीजा है. इसके तहत कई काम ऐसे किए गए जो दशकों से अधर में अटके थे. उनके पूरा होने से आरामदायक यात्रा के साथ-साथ सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित हो सकी. इसके अलावा ट्रेनों को नई रफ्तार मिलने के कारण लंबी दूरी की यात्रा भी छोटी लगने लगी.
यूरोपीय मानक के सेमी-हाई स्पीड ट्रेन-सेट्स का प्रवर्तन: आईसीएफ ने स्वदेशी प्रयासों के साथ स्व प्रस्तावित सेमी-हाई स्पीड (160 किमी/प्रति घंटा) ट्रेन-सेट का निर्माण किया है, जिसका नाम ट्रेन-18 रखा गया है और वह समकालीन विशेषताओं के साथ वैश्विक मानकों के अनुरूप है. आईसीएफ इस वर्ष कम से कम दो और रैक बना रहा है.
भारतीय रेल के लिए ट्रैक मशीनों के बेड़े में लगभग 20-25 प्रतिशत निर्माण में 100 प्रतिशत स्वदेशीकरण का प्रयोजन पहले ही किया जा चुका है. मशीनों के मौजूदा बेड़े का 70 प्रतिशत का निर्माण दुनिया के प्रमुख निर्माताओं द्वारा किया जा रहा है, जिसमें 20 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत की सीमा तक स्थानीय सामग्री का उपयोग किया जा रहा है.
मेक इन इंडिया पॉलिसी के अंतर्गत, अब स्थानीय सामग्री के उपयोग को न्यूनतम 51 प्रतिशत से बढ़ाकर 80 प्रतिशत किया जा रहा है. मेक इन इंडिया से प्रोत्साहित होकर, ट्रैक मशीनों का उत्पादन करनेवाली दुनिया की एक प्रमुख कंपनी द्वारा गुजरात में एक विनिर्माण संयंत्र की स्थापना की जा रही है और जिसमें मई 2019 तक उत्पादन के शुरू होने की उम्मीद है.
स्मार्ट कोच-
एमसीएफ ने सितंबर 2018 में एक स्मार्ट कोच तैयार किया है, जो कि बेहतर यात्री सुरक्षा सुविधाएं प्रदान करता है और साथ ही भविष्यसूचक रखरखाव को सक्षम बनाता है. हवा अनुकूलन को बेहतर बनाने और उसकी निगरानी करने के लिए और सुधार किए जा रहे हैं जो कि ताजी हवा और बिजली के खपत की मात्रा के साथ कोच के अंदर प्रदूषित कणों की निगरानी करेंगे. 150 स्मार्ट कोचों के लिए निविदा को अंतिम रूप दिया जा रहा है. जनवरी से उत्पादन के शुरू होने की उम्मीद है.
वातानुकूलित EMU रैक-
मुंबई उपनगरीय क्षेत्र में प्रोटोटाइप पूर्ण वातानुकूलित ईएमयू रैक को सेवा में लाया गया. चालू वर्ष के दौरान 6 और रैक को शामिल किए जाने की उम्मीद है. इसके बाद, 2019-20 में इस तरह के अन्य रैक शामिल किए जाएंगे और साथ ही उपनगरीय सेवा के इतिहास में पहली बार आंशिक रूप से वातानुकूलित रैक भी शामिल किए जाएंगे. मुंबई उपनगरीय के मौजूदा 78 ईएमयू रैक को आंशिक रूप से वातानुकूलित करने की योजना है. इस प्रकार का पहला रैक को 2019 की पहली तिमाही के बाद में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है.
इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव फैक्ट्री-
भारतीय रेलवे में निजी निवेश और एफडीआई को आकर्षित करने के पहले कदम के रूप में, मधेपुरा, बिहार में इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव फैक्ट्री को स्थापित करने का अनुबंध किया गया. इसके तहत 800 की संख्या में हाई हॉर्सपावर इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव (12000 एचपी क्षमता) के उत्पादन का अनुबंध किया गया.
इस कारखाने का पहला चरण पूरा हो चुका है. पहले लोकोमोटिव को कारखाने से निकाला जा चुका है और जांच और परीक्षण का काम चल रहा है. इसके अलावा 2018-19 में चार इंजनों की आपूर्ति करने का लक्ष्य रखा गया है.
डीजल लोकोमोटिव फैक्ट्री-
मरहौरा, बिहार में 1000 हॉर्सपावर के डीजल लोकोमोटिव (4500/6000 एचपी क्षमता) के निर्माण हेतु डीजल लोकोमोटिव फैक्टरी स्थापित करने के लिए रेलवे मंत्रालय ने एक करार किया है. फरवरी, 2018 में दो प्रोटोटाइप लोकोमोटिव (4500 एचपी) भारतीय रेलवे को सौंप दिए गए थे. परीक्षण/ जांच के बाद इन लोकोमोटिव को वाणिज्यिक सेवा के लिए स्वीकार कर लिया गया है. 50 लोकोमोटिव की आपूर्ति की गई है और 50 लोकोमोटिव में से 19 वाणिज्यिक सेवा में कार्यरत हैं. 2018-19 में कुल 98 इंजनों की आपूर्ति करने का लक्ष्य रखा गया है.
इलेक्ट्रिक इंजनों का उन्नतीकरण-
मालगाड़ियों के दौड़ की गति में सुधार करने के लिए मौजूदा 6000 एचपी डब्लूएजी9एच इंजन को 9000 एचपी में अपग्रेड करने की योजना है. यह मेक इन इंडिया पहल है जिसकी शुरूआत पहले से ही सीएलडब्लू में की जा चुकी है. इस लोकोमोटिव की जनवरी '2019 में चालू होने की उम्मीद है. इसी प्रकार, मौजूदा डब्लूएपी-7 लोकोमोटिव को 6000 एचपी से 9000 एचपी तक बढ़ाकर 24 कोच वाली गाड़ियों की गति को 140 किमी प्रति घंटे तक की संतुलन गति पर चलाने का निर्णय लिया गया है. वहीं 140 किमी प्रति घंटे की गति को 160 किमी प्रति घंटे तक बढ़ाने के लिए डिजाइन की समीक्षा पूरी कर ली गई है.