भारत: 'रोड रेज' के बढ़ते मामले, सड़क पर मरने-मारने से कैसे बचें
मुंबई में एक शख्स ने बहस होने के बाद चार लोगों पर कार चढ़ाने की कोशिश की.
मुंबई में एक शख्स ने बहस होने के बाद चार लोगों पर कार चढ़ाने की कोशिश की. भारत में 'रोड रेज' की घटनाओं में वृद्धि के कारण सड़क पर अतिरिक्त सावधानी बरतना जरूरी हो गया है. आखिर क्या है 'रोड रेज' और कैसे इससे बचा जा सकता है?'रोड रेज' शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर वाहन चालकों के हिंसक, खतरनाक और गुस्सैल व्यवहार के लिए किया जाता है. इसमें असभ्य इशारे करना, गालियां या धमकी देना और डराने के मकसद से खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाना शामिल है. 'रोड रेज,' (सड़क पर ड्राइविंग के दौरान आक्रामक या हिंसक व्यवहार) के कारण टकराव की नौबत आ सकती है और लड़ाई हो सकती है, जिससे लोगों को चोट लग सकती है और उनकी जान तक जा सकती है. इसे सार्वजनिक सुरक्षा के लिए भी खतरा माना जाता है.
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मार्च 2011 में तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री गुरदास कामत ने लोकसभा में 'रोड रेज' से संबंधित एक सवाल के जवाब में ये बातें कहीं थीं. उनसे पूछा गया था कि क्या आपराधिक कानूनों के तहत रोड रेज के मामलों में केस चलाने का कोई प्रावधान है. जवाब में गुरदास कामत ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम 1988 या (तत्कालीन) इंडियन पीनल कोड में "रोड रेज" की कोई परिभाषा नहीं है.
किस तरह की घटनाओं और बर्ताव को "रोड रेज" माना जाता है, इसके उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि आईपीसी और मोटर वाहन अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत "रोड रेज" के अपराधों में कार्रवाई होती है.
मुंबई में ओवरटेकिंग पर शुरू हुई कहासुनी ने जान ले ली
मुंबई में 31 अक्टूबर को एक स्कॉर्पियो सवार कारोबारी की कुछ लोगों से कहासुनी हो गई. इसके बाद कारोबारी ने चार लोगों पर गाड़ी चढ़ाने की कोशिश की. पीड़ितों को सिर्फ हल्की चोटें आईं और बाद में उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर कारोबारी की जमकर पिटाई कर दी. बाद में दोनों पक्षों की ओर से पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई.
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इससे पहले, 12 अक्टूबर को भी मुंबई में 'रोड रेज' की एक जानलेवा घटना सामने आई थी. 28 साल के आकाश परिवार के साथ घर लौट रहे थे. बाइक पर आकाश के साथ उनकी पत्नी बैठी हुई थीं. उनके माता-पिता रिक्शे से आ रहे थे. इस दौरान एक ऑटोरिक्शा ने गलत साइड पर खतरनाक तरीके से उनकी बाइक को ओवरटेक किया. इसकी वजह से आकाश और ऑटो चालक के बीच शुरू हुई कहासुनी मारपीट में बदल गई.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऑटो ड्राइवर के कई साथी भी घटनास्थल पर पहुंच गए और उन्होंने आकाश को पीटना शुरू कर दिया. इल्जाम है कि आकाश जमीन पर गिर गए और उन्हें बचाने के लिए उनकी मां उनके ऊपर लेट गईं, फिर भी आरोपी लगातार उन्हें लात मारते रहे. बाद में पुलिस के आने पर आकाश को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. पुलिस ने इस मामले में 10 लोगों को गिरफ्तार किया.
भारत में बढ़ रही हैं रोड रेज की घटनाएं
बीते कुछ सालों में भारत में 'रोड रेज' की घटनाएं बढ़ी हैं. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मार्च 2022 में संसद के समक्ष इससे जुड़े आंकड़े पेश किए थे. उनके मुताबिक, साल 2019 में देश में 'रोड रेज' और लापरवाही से गाड़ी चलाने के डेढ़ लाख से ज्यादा मामले सामने आए थे. 2020 में इनकी संख्या बढ़कर एक लाख 83 हजार पर पहुंच गई. साल 2021 में इन मामलों की संख्या और ज्यादा बढ़कर दो लाख 15 हजार पर हो गई.
कई बार तो ट्रैफिक पुलिसकर्मी खुद भी 'रोड रेज' के शिकार हो जाते हैं. पिछले साल मुंबई में एक ड्राइवर ने जब लाल बत्ती होने पर भी अपनी गाड़ी नहीं रोकी, तो वहां मौजूद एक ट्रैफिक कॉन्स्टेबल ने उसे रुकने का इशारा किया. आरोपी ड्राइवर ने गाड़ी रोकने की जगह रफ्तार और बढ़ा दी. गाड़ी के सामने खड़े कॉन्स्टेबल बोनट पर गिर गए. फिर भी ड्राइवर 20 किलोमीटर तक गाड़ी को दौड़ाता रहा. इस दौरान कॉन्स्टेबल ने गाड़ी की विंडशील्ड को मजबूती से पकड़कर अपनी जान बचाई.
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रोड रेज की घटनाएं क्यों होती हैं?
मध्य प्रदेश ट्रैफिक पुलिस के रिटायर्ड डीएसपी मोहित वरवंडकर का मानना है कि गाड़ी चला रहे व्यक्ति पर निर्भर करता है कि 'रोड रेज' की घटना होगी या नहीं. उन्होंने डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में कहा, "कुछ लोग ट्रैफिक जाम में भी लगातार हॉर्न बजाते रहते हैं. कई लोग गलत तरीके से ओवरटेक करते हैं. ऐसी छोटी-मोटी घटनाएं भी कई बार लड़ाई की वजह बन जाती हैं."
मोहित वरवंडकर आगे बताते हैं, "अब वाहन चालकों में सहनशक्ति नहीं बची है. इसके अलावा सड़क पर उकसाने वाली घटनाएं भी ज्यादा हो रही हैं. जब लोगों में सहनशक्ति कम होती है, तो थोड़ा सा उकसावा मिलने पर भी 'रोड रेज' की शुरुआत हो सकती है. इसके पीछे एक वजह यह भी है कि लोग यातायात के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं. अगर नियमों का पालन करेंगे, तो लगातार हॉर्न बजाने जैसी उकसाने वाली घटनाएं नहीं होंगी. इससे 'रोड रेज' के मामलों में भी कमी आएगी."
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डॉक्टर राहुल राय कक्कड़, गुरुग्राम के नारायणा हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक हैं. वह रोड रेज का एक और पहलू बताते हैं, "बहुत सारे लोग अनजाने में 'डिसप्लेसमेंट डिफेंस मैकेनिज्म' का इस्तेमाल करते हैं. आम भाषा में कहें, तो एक जगह का गुस्सा और निराशा दूसरी जगह पर निकाल देते हैं. जैसे, अगर दफ्तर में बॉस ने सुनाया तो घर आकर बच्चों को डांट लगा दी."
वह आगे बताते हैं, "इस स्थिति में धैर्य कम हो जाता है. ऐसे में अगर दुर्घटना होती है या गाड़ी को नुकसान पहुंचता है, तो उनका गुस्सा बाहर आ जाता है. वे आवेश में आकर बिना सोचे प्रतिक्रिया देने लगते हैं. तब शायद तनाव किसी और चीज का होता है, लेकिन उसका असर यहां हो जाता है. खास बात यह है कि डिसप्लेसमेंट आमतौर पर वहां होता है, जहां सामने वाला कमजोर है. जैसे, कई कार ड्राइवर रिक्शे वालों पर चिल्ला देते हैं, लेकिन बड़ी गाड़ी वालों से नहीं उलझते."
रोड रेज की घटनाओं से कैसे बचें
मोहित वरवंडकर मानते हैं कि ट्रैफिक नियमों का पालन करने और संयम के साथ गाड़ी चलाने पर 'रोड रेज' से बचा जा सकता है. वह सलाह देते हैं, "अगर कोई आपको उकसा रहा है, तो उसके प्रति भी संयम बरतें. कुछ मिनट बाद वह अपने घर चला जाएगा और आप अपने रास्ते निकल जाएंगे. गुस्से में उसे कुछ बोलने से या भड़कने से लड़ाई की स्थिति बन सकती है, जो ठीक नहीं है. इसके अलावा अगर कोई गलत करता भी है, तो आपको उसे सजा देने का अधिकार नहीं है. उस स्थिति में गाड़ी का नंबर नोट कर पुलिस से शिकायत करनी चाहिए."
डॉक्टर राहुल की राय भी इससे मिलती-जुलती है. वह कहते हैं, "कुछ लोग सड़क पर हुई कहासुनी को ईगो पर ले लेते हैं, जो सही नहीं है. ऐसी स्थिति में धैर्य बनाए रखना चाहिए. लड़ाई को बढ़ाने की बजाय खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए. अगर गाड़ी को नुकसान हो जाए, तो सोचें कि यह सिर्फ भौतिक नुकसान है. उसकी वजह से लड़कर अपने शरीर और जीवन को खतरे में ना डालें. बाद में चाहें, तो कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं."