वाराणसी, 2 अप्रैल : आईआईटी-बीएचयू (IIT-BHU) के वैज्ञानिकों ने सागवान (टीक) और नीम की लकड़ी से बनी राख का उपयोग करके पानी से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने की प्रणाली विकसित की है. यह विधि न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि सस्ती भी है और पानी में उपलब्ध खनिजों को बनाए रखते हुए आरओ की लागत को कम करने के अलावा गंगा के पानी को शुद्ध करने के लिए भी अपनाई जा सकती है. जैव रासायनिक इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर विशाल मिश्रा (Vishal Mishra) और उनकी टीम ने सागवान की लकड़ी का चूरा और नीम के डंठल की राख से दो अलग-अलग प्रकार के अधिशोषक (सोख लेने वाला) तैयार किए हैं, जिससे हानिकारक धातुओं, आयनों और अन्य विषैले पदार्थ को पानी से अलग करके पीने योग्य बनाया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में सोखने की विधि अन्य रासायनिक तकनीकों की तुलना में सस्ती और अधिक प्रभावी मानी गई है. यह कम खर्चीला होने के साथ ही जल जनित रोगों की रोकथाम में भी बहुत प्रभावी माना जाता है. मिश्रा ने कहा कि सागवान या सागौन की लकड़ी के पाउडर (वैज्ञानिक नाम: टेक्टोना ग्रैंडिस) को सोडियम थायोसल्फेट के साथ मिश्रित किया जाता है और एक्टिवेटिड चारकोल बनाने के लिए नाइट्रोजन के वातावरण में गर्म किया जाता है. इसके अलावा अधिशोषक नीम या फिर इसके डंठल या टहनी की राख से भी बनाया गया है. यह भी पढ़ें : Assam Assembly Elections 2021: असम में प्राइवेट कार में मिली ईवीएम, बीजेपी और चुनाव आयोग पर जमकर बरसा विपक्ष
एक तरफ जहां सागवान की लकड़ी के माध्यम से हानिकारक गैसों, आयनों, सल्फर, सेलेनियम को निकाला जा सकता है, वहीं दूसरी तरफ नीम की राख का अध्ययन तांबा, निकिल और जस्ता युक्त प्रदूषित पानी के उपचार के लिए किया गया है. मिश्रा ने कहा कि यह बाजार में बेचे जा रहे आरओ की लागत को भी कम कर सकता है. वर्तमान में लगभग हर घर में आरओ सिस्टम स्थापित हैं. आरओ सिस्टम में एक्टिवेटिड लकड़ी के कोयले के स्थान पर पानी को शुद्ध करने के लिए सागवान की लकड़ी के चूरा से बने कोयले का उपयोग किया जा सकता है. इससे आरओ की कुल लागत भी कम होगी और पानी में उपलब्ध खनिज सुरक्षित रहेंगे.