हिंदुओं पर हिंसा के मामले में पाकिस्तान से भी आगे निकला बांग्लादेश; यूनुस सरकार की खुली पोल
विदेश मंत्रालय (MEA) ने शुक्रवार को राज्यसभा में जानकारी दी कि साल 2024 में बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के 2,200 मामले सामने आए, खासकर तब जब शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार का पतन हुआ.
नई दिल्ली: विदेश मंत्रालय (MEA) ने शुक्रवार को राज्यसभा में जानकारी दी कि साल 2024 में बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के 2,200 मामले सामने आए, खासकर तब जब शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार का पतन हुआ. इसी दौरान, पाकिस्तान में भी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के 112 मामले दर्ज किए गए. राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत सरकार ने इन घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए बांग्लादेश और पाकिस्तान की सरकारों से हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.
विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया, "भारत सरकार ने इन घटनाओं को गंभीरता से लिया है और बांग्लादेश सरकार के साथ अपनी चिंताएं साझा की हैं. हमारी अपेक्षा है कि बांग्लादेश सरकार हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण के लिए सभी जरूरी कदम उठाएगी."
पड़ोसी देशों में हिंदुओं पर हिंसा के आंकड़े
बांग्लादेश:
- 2022: 47 मामले
- 2023: 302 मामले
- 2024: 2,200 मामले (8 दिसंबर तक)
पाकिस्तान:
- 2022: 241 मामले
- 2023: 103 मामले
- 2024: 112 मामले (अक्टूबर तक)
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि बांग्लादेश और पाकिस्तान को छोड़कर किसी अन्य पड़ोसी देश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ.
बांग्लादेश में सुरक्षित नहीं हिंदू
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि का मुख्य कारण राजनीतिक अस्थिरता को बताया जा रहा है. अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री शेख हसीना को विरोध प्रदर्शनों के चलते देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. इसके बाद, नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश की सत्ता संभाली. हसीना के भारत में शरण लेने के बाद, दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ गया है. इस मुद्दे पर भारत सरकार ने 9 दिसंबर 2024 को बांग्लादेश की यात्रा के दौरान अपने विदेश सचिव के माध्यम से इस मामले को गंभीरता से उठाया.
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति
पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के मामले साल-दर-साल घटे हैं, लेकिन धार्मिक असहिष्णुता और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की समस्या अभी भी बनी हुई है. भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इस मुद्दे को उठाया है.