16 अप्रैल को चली थी मुंबई से ठाणे के बीच देश की पहली ट्रेन, जानिए इससे जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें

‘ग्रेट इंडियन पेनिनसुला’...यह नाम सुनकर चौंकियेगा मत. अजीब-सा लगनेवाला यह वास्तव में आज के दुनिया के सबसे व्यस्ततम ‘भारतीय मध्य रेल’ का नवजात नाम है. जिसका मुख्यालय पहले बोरीबंदर, बाद में विक्टोरिया टर्मिनस और अब छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के नाम से जाना जाता है....

प्रतीकात्मक तस्वीर, (फोटो क्रेडिट्सल: Pixabay)

ग्रेट इंडियन पेनिनसुला...यह नाम सुनकर चौंकियेगा मत. अजीब-सा लगनेवाला यह वास्तव में आज के दुनिया के सबसे व्यस्ततम भारतीय मध्य रेल का नवजात नाम है. जिसका मुख्यालय पहले बोरीबंदर, बाद में विक्टोरिया टर्मिनस और अब छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के नाम से जाना जाता है. इस ग्रेट इंडियन पेनिनसुला के सौजन्य से 16 अप्रैल 1853 को देश की पहली रेलगाड़ी बोरीबंदर (मुंबई) से थाने (ठाणे) के लिए दौड़ी थी. इस ट्रेन को खींचने के लिए ब्रिटेन से तीन इंजन मंगाए गए थे. आइए जानें कैसे शुरु हुई भारत में पहली रेलगाड़ी.  

भारतीय रेलवे के इस नवजात स्वरूप ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे का गठन 1 अगस्त 1849 को कलकत्ता (कोलकाता) में हुआ था. ब्रिटिश संसद के एक अधिनियम द्वारा 50 हजार पौंड की शेयर पूंजी के साथ इसे शुरू किया गया था. 17 अगस्त 1849 को इसने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ प्रयोग के लिए 56 किमी लंबी लाइन के निर्माण और संचालन के लिए एक औपचारिक अनुबंध किया. 1 जुलाई 1925 को सरकार ने इस पूरे प्रबंधन को अधिग्रहित कर लिया. 5 नवम्बर 1951 को इसे मध्य रेल का नाम दिया गया.

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छुक छुक.. चली बॉम्बे से थाना

तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद बोरीबंदर से थाने तक की रेल की पटरियां बिछाने का कार्य पूरा किया गया. सारी तैयारियां पूरी करने के पश्चात 16 अप्रैल 1853 को दोपहर तीन बजकर पैंतीस मिनट पर ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे की पहली ट्रेन बॉम्बे के बोरी बंदर (मुंबई) से थाने (ठाणे) के लिए रवाना हुई. 14 बोगियों वाली इस ट्रेन में कुल चार सौ यात्रियों को लेकर यह ट्रेन 4 बजकर 32 मिनट पर जब थाने स्टेशन पहुंची, तो विशालकाय इंजन और उससे जुड़े डिब्बों एवं उससे उतरते यात्रियों को देखने के लिए भारी संख्या में लोग थाने स्टेशन पर उपस्थित थे. इस ट्रेन को तीन लोकोमोटिव इंजन खींच रहे थे. देश की इस पहली ट्रेन ने लगभग 33.8 किमी के सफर के लक्ष्य को तय अवधि 57 मिनट में पूरा कर लिया था.

सुल्तान, सिंधु और साहिब को श्रेय

 गौरतलब है कि ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेल कंपनी की स्थापना वर्ष 1845 में कलकत्ता (कोलकाता) में हुई थी. साल 1850 में इस कंपनी ने मुंबई से ठाणे तक रेल लाइन बिछाने का कार्य शुरू किया था. बोरीबंदर से थाने तक की रेलयात्रा शुरू करने के लिए ब्रिटेन से तीन भाप के इंजन मंगवाए गए थे. अपनी सुविधा के लिए कंपनी ने इन इंजनों को क्रमशः सुल्तान, सिंधु और साहिब नाम दिया था. इस सफल परीक्षण के साथ ही रेल को व्यापक स्वरूप देने का सिलसिला शुरु कर दिया गया. क्योंकि रेलयात्रा के कारण लोगों का काफी समय बच रहा था. इस सफलता से प्रेरित होकर अगली ट्रेन के रूप में 3 मार्च 1859 को इलाहाबाद और कानपुर के बीच रेल सेवा को विस्तार दिया गया.    

वर्तमान में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क

पिछले 166 साल के भारतीय रेल के इतिहास ने द्रुतगामी विकास किया है. आज भारतीय रेलवे का नेटवर्क दुनिया के टॉप-5 नेटवर्क में एक है. लगभग 15 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को रोजगार देनेवाला दुनिया का सबसे बड़ा विभाग है. आज भारतीय रेल देश के कोने-कोने तक पहुंच रही है. भारतीय रेलवे के नाम कई विश्व कीर्तिमान अब तक दर्ज हैं. वर्तमान में देश में करीब एक लाख पंद्रह हजार किमी लंबा रेल ट्रैक का जाल बिछा हुआ है. इन रेलवे ट्रैकों का कनेक्शन करीब 7 हजार 5 सौ स्टेशन से जुड़ा हुए है. दुनिया के इस सबसे सस्ते यातायात के जरिए 19 हजार ट्रेनों से प्रतिदिन लगभग ढाई करोड़ से ज्यादा यात्री यात्रा करते हैं.

 अमरीकाचीन और रूस के बाद भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है. भारतीय रेलवे में लगभग 16 लाख लोग कार्यरत हैं. इस तरह यह दुनिया का 7वां सबसे ज्‍यादा नौकरी देने वाला विभाग बन चुका है.

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