बेटी ने लगाया था रेप का आरोप, मौत के बाद बेगुनाह साबित हुआ पिता , 10 साल की काट चुका था सजा

इस मामले में उच्च न्यायालय ने इस बात को माना कि पिता पर दर्ज हुए रेप के मामले में ना तो जांच सही से हुई और ना ही सुनवाई. यह मामला व्यक्ति की बेटी की शिकायत पर दर्ज कराया गया था.

दिल्ली हाई कोर्ट (File Photo: IANS)

एक पिता को अपनी बेटी के बलात्कार (Rape) का आरोप में 10 साल की सजा हुई. पिता के लिए यह आरोप इतना बड़ा और घिनौना था कि वह इस गम को सह भी नहीं पाया और उसकी मौत हो गई. लेकिन अब इस केस में नया मोड़ आया है जिसमें व्यक्ति की मौत के 10 महीने बाद उसे निर्दोष बताया गया है. दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) में इस केस पर सुनवाई हुई कथित आरोपी पिता को आखिरकार बरी कर दिया. इस मामले में उच्च न्यायालय ने इस बात को माना कि पिता पर दर्ज हुए रेप के मामले में ना तो जांच सही से हुई और ना ही सुनवाई. यह मामला व्यक्ति की बेटी की शिकायत पर दर्ज कराया गया था.

जस्टिस आर के गाबा ने कहा कि पिता पहले दिन से ही मामले में अनुचित होने की बात कहता रहा और दावा करता रहा कि किसी लड़के ने उसकी बेटी को अगवा कर लिया और उसे बहकाया. जिससे बेटी ने पिता पर ही रेप का आरोप लगाया. निचली अदालत के गलत फैसले के चलते निर्दोष पिता को 10 साल तक जेल में रहना पड़ा. कोर्ट ने माना कि निचली अदालत के एक गलत दृष्टिकोण के कारण नाबालिग बेटी से कथित बलात्कार के मामले में व्यक्ति के साथ अन्याय हुआ.

मामले में कोर्ट ने माना कि निचली अदालत के एक गलत दृष्टिकोण के कारण नाबालिग बेटी से कथित बलात्कार के मामले में व्यक्ति के साथ अन्याय हुआ. जबकि व्यक्ति अपने साथ अन्याय होने की बात शुरुआत से कह रहा था, बावजूद इसके मामले में जांच के दौरान पिता के पक्ष को गौर से नहीं देखा गया. दिल्ली उच्च न्यायालय ने आखिरकार बरी कर दिया. निचली अदालत द्वारा व्यक्ति को दोषी ठहराये जाने और 10 साल जेल की सजा सुनाये जाने के 17 साल बाद यह फैसला सामने आया है.

कोर्ट ने माना शारीरिक संबंधों की नहीं हुई जांच

मामले में पिता के पक्ष पर ध्यान न दिए जान को लेकर अदालत ने यह भी कहा कि लड़के और लड़की के बीच शारीरिक संबंधों की संभावना की भी गहन जांच होनी चाहिए थी. दुर्भाग्य से नहीं हुई. उच्च न्यायालय ने 22 पन्नों के फैसले में कहा, "पिछले तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर यह अदालत निचली अदालत के इस निष्कर्ष से सहमत नहीं है."

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लड़की की गर्भवती होने पर दर्ज हुई शिकायत

जनवरी 1996 में जब बलात्कार की प्राथमिकी दर्ज की गई उस समय लड़की गर्भवती मिली थी. हालांकि जांच एजेंसी और निचली अदालत ने उसकी दलीलों पर कोई ध्यान नहीं दिया. उच्च न्यायालय ने कहा कि पिता ने उस लड़के के नमूने लेकर भ्रूण के डीएनए का मिलान करने को कहा था लेकिन पुलिस ने कोई बात नहीं सुनी और निचली अदालत ने इस तरह की जांच का कोई आदेश नहीं दिया.अदालत ने कहा कि जांच स्पष्ट रूप से एकतरफा थी. इस समय यह अदालत केवल सभी संबंधित पक्षों की ओर से बरती गयी निष्क्रियता की निंदा कर सकती है.

क्या था लड़की का आरोप

लड़की ने आरोप लगाया था कि सेना की इंजीनियरिंग सेवा में इलेक्ट्रीशियन उसके पिता ने 1991 में उसके साथ पहली बार तब रेप किया जब वे जम्मू कश्मीर के उधमपुर में रहते थे. निचली अदालत में लड़की द्वारा रखे गये तथ्यों का जिक्र करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि लड़की पर मामले की जानकारी देने पर कोई रोक नहीं थी और जैसा कि उसने कहा कि 1991 में उसके साथ बलात्कार का सिलसिला शुरू हुआ तो उसे इस बारे में उसकी मां, भाई-बहनों या परिवार के अन्य किसी बुजुर्ग को बताने से किसी नहीं रोका था.

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