Cyclone in Andhra Pradesh: चक्रवातों ने आंध्र प्रदेश की तटरेखा को तबाह किया, पारा बढ़ने से मछलियों का स्टॉक घटा
आंध्र प्रदेश की व्यापक तटरेखा लगातार चक्रवात, तटीय कटाव, समुद्र के बढ़ते स्तर और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रही है, जबकि वैज्ञानिकों ने पहले ही चेतावनी दी है कि विशाखापट्टनम उन छह भारतीय शहरों में शामिल है
विशाखापत्तनम, 2 अप्रैल: आंध्र प्रदेश की व्यापक तटरेखा लगातार चक्रवात, तटीय कटाव, समुद्र के बढ़ते स्तर और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रही है, जबकि वैज्ञानिकों ने पहले ही चेतावनी दी है कि विशाखापट्टनम उन छह भारतीय शहरों में शामिल है जो ग्लोबल वामिर्ंग के परिणामस्वरूप समुद्र के स्तर में 50 सेमी की वृद्धि होने पर तटीय बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं. यह भी पढ़ें: Himachal Pradesh: चंबा में भूस्खलन से एक की मौत, लाहौल हिमस्खलन की चपेट में
आंध्र प्रदेश में श्रीकाकुलम जिले के इच्छापुरम से नेल्लोर जिले के टाडा तक 974 किमी की कुल लंबाई के साथ एक लंबी मुख्य तटरेखा है. विशेषज्ञों का कहना है कि बंगाल की खाड़ी में समुद्र के स्तर में वृद्धि और समुद्र के पानी के तापमान का प्रभाव राज्य के समुद्र तट पर पड़ रहा है. हालांकि, प्रभाव की सीमा अभी निर्धारित की जानी है.
बढ़ता तापमान न केवल बार-बार आने वाले चक्रवातों का कारण बन रहा है बल्कि समुद्री प्रजातियों को भी प्रभावित कर रहा है और मछली पकड़ने के दिनों को कम कर मछली पकड़ने वाले समुदायों को प्रभावित कर रहा है, घरों और मछली पकड़ने के गियर को नुकसान पहुंचा रहा है.
चक्रवातों की असामान्यता के लिए ग्लोबल वामिर्ंग और जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जाता है। विशाखापट्टनम, राज्य का सबसे बड़ा शहर और प्रस्तावित राज्य की राजधानी, 2014 के बाद से आठ गंभीर चक्रवाती तूफानों का अनुभव कर चुका है. विशाखापट्टनम 12 अक्टूबर, 2014 को बहुत भयंकर चक्रवाती तूफान 'हुदहुद' से तबाह हो गया था। आधुनिक इतिहास में पहली बार शहर ने एक भयानक प्राकृतिक आपदा देखी.
लैंडफॉल के दौरान 165 किमी प्रति घंटे की हवा की गति के साथ 'हुदहुद' ने शहर और उत्तर तटीय आंध्र के अन्य हिस्सों में व्यापक तबाही मचाई. इसमें 60 लोगों की मौत हो गई थी. तूफान ने हजारों पेड़, बिजली के खंभे उखाड़ दिए और नागरिक बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया था. शहर में सामान्य स्थिति बहाल होने में कई हफ्तों का वक्त लगा था.
मई 2020 में भेद्यता (खतरा) फिर से स्पष्ट हो गई जब बंगाल की खाड़ी में दशकों में रिकॉर्ड किए गए सबसे शक्तिशाली तूफान 'अम्फान' ने तट से टकराकर कई मिलियन लोगों को दूसरे स्थान पर शिफ्ट होने के लिए मजबूर कर दिया था.
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लोबल वामिर्ंग ने मानसून को अनिश्चित और चरम बना दिया है और उच्च तीव्रता वाले तूफानों को रास्ता दे रहा है जिससे अचानक बाढ़ और भूस्खलन की संभावना बढ़ जाएगी. इसके अलावा, चक्रवाती तूफान के दौरान, वर्षा जल्दी और अधिक होती है और इससे समुद्र का स्तर भी बढ़ता है.
ग्लोबल वामिर्ंग के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से भी समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. विभिन्न कारकों से तटीय शहरों और क्षेत्रों में बाढ़ आने की संभावना है. विशेषज्ञों का मानना है कि भूमि और महासागर के तापमान में भारी असमानता से कई चक्रवाती तूफान बन सकते हैं, जो बहुत गंभीर चक्रवाती तूफान में विकसित होने की क्षमता रखते हैं. तेज हवाओं और अधिक वर्षा से समुद्र के स्तर में वृद्धि होगी.
आंध्र प्रदेश में लगभग 28.7 प्रतिशत समुद्र तट सिकुड़ रहे हैं, नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च द्वारा भारतीय तट (1990-2018) के साथ आंध्र प्रदेश तटरेखा परिवर्तन की स्थिति का पता चला है। रिपोर्ट के मुताबिक, 21.7 फीसदी समुद्र तट स्थिर हैं और 49.6 फीसदी बढ़ रहे हैं.
तटीय क्षेत्र में मानव हस्तक्षेप, विशेष रूप से शहरीकरण और आर्थिक गतिविधियों ने तटीय क्षरण (रिसना) को बढ़ती तीव्रता की समस्या में बदल दिया है. तटीय संरचनाओं के निर्माण, समुद्र तट की रेत के खनन, अपतटीय ड्रेजिंग और नदियों के बांध बनाने जैसी गतिविधियां तटरेखा परिवर्तन को गति प्रदान कर रही है.
उप्पदा, विशाखापट्टनम, मछलीपट्टनम और कृष्णा और गोदावरी जिले के डेल्टा क्षेत्र और कृष्णापट्टनम तटीय कटाव से प्रभावित कुछ क्षेत्र हैं. तटीय अपरदन का कारण मानव निर्मित और प्राकृतिक दोनों हैं. भौगोलिक कारकों में लहरों, ज्वार, हवाओं, निकटवर्ती धाराओं, तूफानों और समुद्र के स्तर में वृद्धि की कार्रवाई शामिल है.
पिछली सदी में समुद्र का स्तर लगभग 40 सेमी बढ़ गया और अगली सदी में और 60 सेमी बढ़ने का अनुमान है. ग्लोबल वामिर्ंग के कारण प्रति वर्ष समुद्र के स्तर में औसतन 1.5 से 10 मिमी की वृद्धि होती है। समुद्र के स्तर में प्रति वर्ष 1 मिमी की वृद्धि 0.5 मीटर तक बाढ़ का कारण बन सकती है.
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, विशाखापट्टनम उन छह भारतीय शहरों में शामिल है, जो ग्लोबल वामिर्ंग के कारण समुद्र के स्तर में 50 सेमी की वृद्धि होने पर तटीय बाढ़ के संपर्क में आ सकते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, सदी के अंत तक समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण शहर 3 फीट समुद्र के पानी के नीचे होगा। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि विशाखापट्टनम (विजाग) के अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण जलमग्न होने की संभावना नहीं है.
जबकि निचले और कुछ अन्य क्षेत्र खतरे में हो सकते हैं, पहाड़ियां और पहाड़ी शहर बाढ़ से बच सकते हैं. विशाखापट्टनम की वर्तमान में आबादी 20 लाख से अधिक है और शहर की अनुमानित जनसंख्या वृद्धि दर 2.35 प्रतिशत है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तटीय शहर मछलीपट्टनम और काकीनाडा जमीन के द्रव्यमान और जमीन के बीच बहुत कम अंतर के कारण एक बड़े खतरे का सामना कर रहे हैं.