छोटे मामलों पर समय बर्बाद करने और बेकार जांच के लिए CBI की होती रही है कड़ी आलोचना
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नई दिल्ली, 9 अप्रैल: केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की नालियां खंगालने वाली एजेंसी की छवि के कारण उसकी आलोचना की जाती रही है. एजेंसी ज्यादातर 'छोटी मछलियों' को पकड़ने पर ध्यान देती है जबकि बड़े भ्रष्टाचार के मामलों की जांच प्रवर्तन निदेशालय करता है, जो धन शोधन निवारण अधिनियम से लैस है. यह भी पढ़ें: यह अनूठा स्टेशन राज्यों द्वारा अलग किया गया है, भारतीय रेलवे द्वारा एकजुट है

सीबीआई को कभी देश की प्रमुख भ्रष्टाचार-रोधी एजेंसी माना जाता था, अब इसे प्रवर्तन निदेशालय के एक कमजोर चचेरे भाई के रूप में जाना जाता है. जैसे-जैसे मामले आगे बढ़ते हैं, सीबीआई की जांच में गुणवत्ता की कमी पाई जाती है. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उसके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य अक्सर कमजोर होते हैं.

आलोचकों का तर्क है कि हाई-प्रोफाइल भ्रष्टाचार के मामलों से प्रभावी ढंग से निपटने में असमर्थता के कारण सीबीआई की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है. एजेंसी पर बहुत अधिक राजनीतिक होने का आरोप लगता रहा है. स्वायत्तता की कथित कमी के कारण इसका नेतृत्व संवीक्षा के दायरे में आ गया है.

इसके विपरीत, हाई-प्रोफाइल मामलों, विशेष रूप से मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों को निपटाने में इसकी सफलता के लिए प्रवर्तन निदेशालय की प्रशंसा हुई है. एजेंसी वित्तीय गड़बड़ी के लिए दोषी पाए गए व्यक्तियों और कंपनियों के खिलाफ मजबूत सजा और भारी जुर्माना लगाने के फैसले अपने पक्ष में हासिल करने में सफल रही है.

सीबीआई की प्रतिष्ठा में गिरावट भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि देश में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है. एक मजबूत और स्वायत्त भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी के बिना, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़खड़ा सकती है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था तथा प्रतिष्ठा को और अधिक नुकसान हो सकता है.

केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की अगस्त 2022 में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 दिसंबर 2021 तक सीबीआई द्वारा जांच किए गए भ्रष्टाचार के 6,697 मामले विभिन्न अदालतों में लंबित थे, जिनमें से 275 मामले तो 20 साल से ज्यादा पुराने हैं.

अन्य 1,939 मामले भी 10 साल से अधिक पुराने हैं. कुल 2,273 मामले पांच से 10 साल पुराने हैं जबकि 811 मामले तीन से पांच साल पुराने हैं। शेष 1,399 मामले तीन साल से कम समय से लंबित थे. सीवीसी की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है, आयोग सीबीआई के साथ मासिक बैठकों के दौरान विभिन्न अदालतों में लंबी अवधि से लंबित मामलों की बड़ी संख्या पर ध्यान देता है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में कुल 10,974 अपीलें और पुनरीक्षण याचिकाएं लंबित थीं. कुल 9,935 अपीलों में से 9,698 उच्च न्यायालयों में और 237 उच्चतम न्यायालय में थीं. उच्च न्यायालयों में 1,039 पुनरीक्षण याचिकाएं लंबित हैं.

हालांकि, पिछले सप्ताह गुरुवार को कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में कहा कि सीबीआई की सजा दर 2022 में 74.59 प्रतिशत हो गई है जो 2018 में 68 प्रतिशत थी. सीबीआई की सजा दर 2018 में 68 प्रतिशत, 2019 में 69.19 प्रतिशत, 2020 में 69.83 प्रतिशत, 2021 में 67.56 प्रतिशत और 2022 में 74.59 प्रतिशत थी.

मंत्री ने कहा कि सजा की दर में सुधार के लिए सीबीआई ने जांच के लिए वैधानिक मदद लेने और सर्वोत्तम संभव साक्ष्य जुटा कर अदालत में पेश करने की रणनीति अपनाई है. लोकसभा में 3 अप्रैल को एक सवाल के जवाब में सिंह ने कहा था कि सीबीआई ने 2018 से अब तक 166 सिविल सेवा अधिकारियों के खिलाफ 110 मामले दर्ज किए हैं.