लोकसभा चुनाव 2019: महाराष्ट्र को लेकर IANS के रिपोर्ट में बड़ा दावा, आरक्षित सीटों पर जातिगत समीकरण से बीजेपी- शिवसेना को हो सकता है फायदा

महाराष्ट्र की 48 संसदीय सीटों में से कम से कम 17 सीटों का फैसला अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के मतदाता करेंगे, जहां भारतीय जनता पार्टी(BJP)-शिवसेना (Shivsena) गठबंधन अपने 2014 के प्रदर्शन को फिर से दोहराना चाहती हैं

प्रातीकत्म्क तस्वीर (Photo Credits IANS)

मुंबई: महाराष्ट्र की 48 संसदीय सीटों में से कम से कम 17 सीटों का फैसला अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के मतदाता करेंगे, जहां भारतीय जनता पार्टी(BJP)-शिवसेना (Shivsena) गठबंधन अपने 2014 के प्रदर्शन को फिर से दोहराना चाहती हैं. भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने यहां की 42 सीटों पर कब्जा किया था और कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) गठबंधन का सफाया कर दिया था. महाराष्ट्र में नौ आरक्षित सीटें हैं, जिनमें अनुसूचित जाति के अंतर्गत रामटेक, अमरावती, लातूर, सोलापुर, शिरडी और अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत गढ़चिरौली-चिमुर, ढिंढोरी, पालघर, नंदुरबार शामिल हैं.

2014 में पांच अनुसूचित सीटों में से दो पर शिवसेना ने जीत दर्ज की थी और बाकी सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस-राकांपा इस बार समीकरण बदलने की कोशिश करेंगी। लेकिन प्रकाश आंबेडकर के वंचित बहुजन अगाड़ी ने असुद्द्दीन ओवैसी के अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन(एआईएमआईएम) से हाथ मिला लिया है, जो कांग्रेस-राकांपा का खेल बिगाड़ने वाला हो सकता है. इन आरक्षित सीटों के अलावा, नंदुरबार में अनुसूचित जनजाति की 58.90 प्रतिशत आबादी है और पालघर में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति मिलाकर 40 प्रतिशत आबादी है. महाराष्ट्र में ऐसे 11 संसदीय क्षेत्र हैं, जहां अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की आबादी 20 प्रतिशत से ज्यादा है। जबकि छह सीटों में यह संख्या 30 प्रतिशत से ज्यादा है। इसमें चंद्रपुर भी शामिल है, जहां अनुसूचित जाति की आबादी 12.40 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति की आबादी 32.10 प्रतिशत है.

2014 के चुनाव में, भाजपा ने 48 सीटों में से 23 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि शिवसेना ने 18 लोकसभा सीटें जीती थी और एक सीट स्वाभिमानी पक्ष के खाते में गई थी, जो तब राजग गठबंधन का हिस्सा था। कांग्रेस को केवल दो सीटों और राकांपा को 4 सीटों से संतोष करना पड़ा था. महाराष्ट्र की आरक्षित सीटों में एकबार फिर से भाजपा-शिवसेना और राकांपा-कांग्रेस के बीच टक्कर होने की संभावना है. प्रकाश आंबेडकर को गठबंधन में शामिल करा पाने विफल रहने के कारण राकांपा-कांग्रेस गठबंधन को कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है. दलित और मुस्लिमों के बीच मतों के विभाजन से भाजपा-शिवसेना गठबंधन को फायदा हो सकता है। रामदास आठवले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया(आरपीआई-ए) के प्रतिबद्ध मतदाताओं से भी भाजपा-शिवसेना को फायदा होगा.

कुछ महत्वपूर्ण सीटों पर टिकट बंटवारे ने भी सियासी उठापटक पैदा कर दी है. रामटेक में, मौजूदा सांसद कृपाल तुमाने का सामना कांग्रेस उम्मीदवार व पूर्व आईएएस अधिकारी किशोर उत्तमराव गजभीये से होगा, जिन्हें स्थानीय कार्यकर्ताओं की इच्छा के विरुद्ध चुनाव मैदान में उतारा गया है। स्थानीय कार्यकर्ता मुकुल वासनिक या नितिन राउत को यहां से उम्मीदवार बनाना चाहते थे. अमरावती में भी संघर्ष काफी रोमांचक है, जहां शिवसेना सांसद आनंदराव अडसुल पार्टी अंतर्विरोध के बावजूद दूसरा कार्यकाल चाहते हैं. वह यहां से तेलुगू फिल्म अभिनेत्री नवनीत कौर का सामना करेंगे, जो राकांपा के समर्थन से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही हैं.

कांग्रेस नंदुरबार जनजातीय सीट से विद्रोह का सामना कर रही है, जहां वरिष्ठ कांग्रेस नेता और नौ बार के सांसद मानिकराव गावित के बेटे भरत गावित निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी ने उनके स्थान पर के.सी. पड़ावी को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने यहां से मौजूदा सांसद डॉ. हिना विजयकुमार गावित को उम्मीदवार बनाया है. सभी का ध्यान सोलापुर सीट पर भी रहेगा, जहां से पूर्व गृहमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे अपना अंतिम चुनाव लड़ रहे हैं. उनका सामना भाजपा उम्मीदवार लिंगायत समुदाय के जयद्दीश्वर स्वामी और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के परपोते प्रकाश आंबेडकर से होगा.

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