'बांग्लादेशी घुसपैठिया' कहने से भारत-बांग्लादेश रिश्तों पर पड़ रहा असर
बीजेपी के नेता कई सालों से 'बांग्लादेशी घुसपैठिया' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते आए हैं.
बीजेपी के नेता कई सालों से 'बांग्लादेशी घुसपैठिया' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते आए हैं. लेकिन पहली बार बांग्लादेश की सरकार ने अमित शाह के ताजा बयान के खिलाफ आधिकारिक रूप से विरोध दर्ज कराया है.झारखंड में नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनावों से पहले राज्य में जिन राजनीतिक मुद्दों को गर्म किया जा रहा है, उनमें प्रदेश में बांग्लादेशी नागरिकों की कथित घुसपैठ एक अहम् मुद्दा है.
खास कर बीजेपी के नेता बंगाल, असम और त्रिपुरा में इस मुद्दे को उठाने के बाद अब झारखंड में भी अपनी रैलियों में इसका जिक्र कर रहे हैं. 20 सितंबर, 2024 को झारखंड के गिरिडीह और साहिबगंज में दो रैलियों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने "बांग्लादेशी घुसपैठियों" का जिक्र किया.
क्या था बयान
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उन्होंने कहा, "हमारे झारखंड में जिस तरह घुसपैठ हो रही है, अगर यह इसी प्रकार चलता रहा तो 25-30 सालों में ये घुसपैठिए यहां बहुमत में आ जाएंगे...एक बार झारखंड सरकार बदल दीजिए, मैं आपको वादा करता हूं, रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों को चुन चुन कर झारखंड के बाहर भेजने का काम भारतीय जनता पार्टी करेगी."
उसी दिन साहिबगंज में भी आयोजित एक और रैली में शाह ने यही बातें कहीं. बीजेपी बीते कई सालों से देश के कई राज्यों में "बांग्लादेशी घुसपैठियों" का जिक्र करती रही है. 2014 के लोकसभा चुनावों की रैलियों में उस समय बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले यह मुद्दा उठाया था.
बांग्लादेश का भारत मछलियां भेजने से इनकार
मोदी ने खास कर असम और पश्चिम बंगाल में अपनी रैलियों में इस मुद्दे को उठाया और वादा किया कि उनके सत्ता में आते ही "बांग्लादेशी घुसपैठियों" को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा. उस समय अपने भाषणों में मोदी एक अंतर भी रेखांकित करते थे और कहते थे कि बांग्लादेश से आए सिर्फ 'हिंदू' प्रवासियों को भारत में जगह दी जानी चाहिए.
आगे चल कर यही सोच सीएए और एनआरसी अभियानों का आधार बनी, जिसके तहत बीजेपी 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम भी ले कर आई. इस कानून को बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत आने वाले सिर्फ धार्मिक अल्पसंख्यकों यानी इन देशों के गैर-मुसलमान नागरिकों को भारत में शरण देने के लिए लाया गया.
लंबे समय से बीजेपी का अभियान
धीरे धीरे इस मुद्दे पर बीजेपी के नेताओं के बयान भी और तीखे होते चले गए. 2019 में एक चुनावी रैली में शाह ने बांग्लादेशी प्रवासियों को "दीमक" तक कह दिया. बांग्लादेश में इस तरह के खिलाफ लेकर सड़कों पर और मीडिया टिप्पणियां में विरोध होता रहा है, लेकिन अब शायद पहली बार बांग्लादेश की सरकार ने आधिकारिक रूप से शाह के बयान के खिलाफ शिकायत की है.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक 23 सितंबर को बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने ढाका में स्थित भारत के उच्चायोग को शाह के बयान के खिलाफ एक विरोध पत्र सौंपा. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस पत्र में मंत्रालय ने भारत सरकार से मांग की है कि वो राजनेताओं को कहे कि वो ऐसी "अपमानजनक और अस्वीकार्य" टिप्पणियों से परहेज करें.
मंत्रालय ने शाह के बयान पर "गंभीर आपत्ति, गहरा कष्ट और अत्यधिक अप्रसन्नता" व्यक्त की. मंत्रालय ने यह भी कहा कि जब जिम्मेदार पदों से एक पड़ोसी देश के नागरिकों के खिलाफ ऐसी टिप्पणियां की जाती हैं तो उससे दो दोस्ताना देशों के बीच आपसी आदर और तालमेल कमजोर होता है.
बांग्लादेश में बढ़ रही भारत के प्रति नाराजगी
भारत सरकार ने अभी तक इस विरोध पर कोई जवाब नहीं दिया है. लेकिन जानकारों का कहना है कि इस समय बांग्लादेश में भारत के खिलाफ गुस्से के माहौल के बीच इस तरह की टिप्पणियां दोनों देशों के रिश्तों को और खराब कर सकती हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और बांग्लादेश के मामलों की जानकार नीलोवा रॉयचौधरी कहती हैं कि बांग्लादेश में इस समय भारत के अहंकारी रवैये के खिलाफ बहुत नकारात्मकता है.
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "शेख हसीना के प्रति भारत का निरंतर समर्थन बांग्लादेश में भारत के लिए एक बड़ा काला धब्बा बन गया है. और अब उसमें भारत सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली इस तरह की शब्दावली को जोड़ दीजिए, लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे."
उन्होंने यह भी कहा, "मुझे लगता है बांग्लादेश से यह स्पष्ट संदेश आ रहा है कि अब ऐसा नहीं होगा कि भारत का जो मन करेगा वो कहेगा और कह कर बच जाएगा." बांग्लादेश में सरकार ही नहीं, अन्य लोगों ने भी शाह के बयान की आलोचना की है.
देश के प्रमुख अखबारों में इस बयान को लेकर टिप्पणियां छपी हैं. ढाका ट्रिब्यून वेबसाइट पर 25 सितंबर को छपे एक संपादकीय लेख में लिखा गया कि शाह की टिप्पणी ने "स्वीकार्य भाषा की रेखा को पार कर दिया" और वह "निंदनीय और गैर-जिम्मेदाराना" है.
भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के संस्थान मनोहर परिकर इंस्टिट्यूट ऑफ डिफेंस स्ट्डीज एंड एनालिसिस की रिसर्च फेलो स्मृति पटनायक भी कहती हैं कि बांग्लादेश के लोग मानते हैं कि इस तरह के शब्द उनके लिए काफी "अपमानजनक" हैं.
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "वैसे तो दोनों देशों के रिश्तों का राजनीतिक-आर्थिक आयाम और स्थानीय राजनीति अलग अलग हैं, लेकिन फिर भी इस तरह की टिप्पणियों का बांग्लादेश के लोगों के भारत के प्रति नजरिए पर असर जरूर पड़ता है. और जब आप विदेश नीति की बात करते हैं तो नजरिया अवश्य मायने रखता है."