UP: इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला- रेप पीड़िता को बच्चे के डीएनए टेस्ट के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, POCSO कोर्ट का आदेश पलटा

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ (Lucknow Bench) ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि बलात्कार (Rape) पीड़िता को अपने बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की अनुमति देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, ताकि उसके पितृत्व का पता लगाया जा सके.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pxhere)

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ (Lucknow Bench) ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि बलात्कार (Rape) पीड़िता को अपने बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की अनुमति देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, ताकि उसके पितृत्व का पता लगाया जा सके. इसके साथ ही पीठ ने पॉस्को कोर्ट (POCSO Court) के उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसमें दुष्कर्म मामले के नाबालिग आरोपी की याचिका पर बच्ची का डीएनए टेस्ट कराने का निर्देश दिया गया था. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पूर्व विधायक की जमानत याचिका खारिज की

जस्टिस संगीता चंद्रा (Sangeeta Chandra) की पीठ ने पीड़िता की मां की पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया. अपने आदेश में जस्टिस चंद्रा ने कहा, "यह स्पष्ट है कि पॉक्सो जज ने अपनी शक्ति को गलत तरीके से निर्देशित किया."

हाईकोर्ट ने कहा "पॉक्सो जज के सामने सवाल यह निर्धारित करने के लिए था कि क्या आरोपी ने पीड़िता से बलात्कार किया है, यह निर्धारित करने के लिए नहीं था कि घटना के बाद पीड़िता से जन्मे बच्चे का पिता कौन है?"

पीड़िता की मां ने 17 दिसंबर 2017 को सुल्तानपुर के कोतवाली थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी कि उसकी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म किया गया है. जांच के बाद, पुलिस ने एक नाबालिग आरोपी के खिलाफ बलात्कार के आरोप में चार्जशिट की. इस मामले में कुछ अन्य आरोपियों पर भी आईपीसी और पॉस्को एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था.

इस मामले की सुनवाई के दौरान नाबालिग आरोपी ने बलात्कार पीड़िता के बच्चे के डीएनए टेस्ट की मांग करते हुए JJB में आवेदन दिया, लेकिन जेजेबी ने 25 मार्च 2021 को यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि याचिका केवल बचाव स्तर पर ही उठाई जा सकती है.

जिसके बाद नाबालिग आरोपी ने पॉक्सो कोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की, जिसके आधार पर कोर्ट ने बच्चे के डीएनए टेस्ट का निर्देश दिया. इस आदेश के खिलाफ पीड़िता की मां ने पुनर्विचार याचिका दायर करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

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