Adani vs Hindenburg: अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद पर बोला SC, निवेशकों के हितों को बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाने की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत तंत्र होना चाहिए कि शेयर बाजार में भारतीय निवेशकों के हितों की रक्षा हो.

Supreme Court (Photo : Twitter)

नयी दिल्ली, 10 फरवरी: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत तंत्र होना चाहिए कि शेयर बाजार में भारतीय निवेशकों के हितों की रक्षा हो. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने नियामक तंत्र को मजबूत करने के लिए केंद्र से एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में क्षेत्र के विशेषज्ञों की एक समिति के गठन पर विचार करने के लिए कहा.

न्यायालय ने इसके अलावा अडाणी समूह के शेयर मूल्य के “कृत्रिम तौर पर गिरने” और निर्दोष निवेशकों के शोषण का आरोप लगाने वाली जनहित याचिकाओं पर केंद्र और बाजार नियामक सेबी से अपना पक्ष रखने को कहा. ये भी पढ़ें- Adani vs Hindenburg: अडानी की कहानी और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट, जानें 10 दिन में कैसे हिल गया इस रईस का साम्राज्य!

यह देखते हुए कि शेयर बाजार ऐसी जगह नहीं है, जहां सिर्फ बड़े निवेशक निवेश करते हैं, अदालत ने कहा कि बदलते वित्तीय और कर व्यवस्था के साथ निवेश “मध्यम वर्ग द्वारा व्यापक रूप से” किया जा रहा है. अदालत ने कहा कि कुछ खबरों के अनुसार हाल ही में अडाणी के शेयरों में भारी गिरावट के कारण भारतीय निवेशकों को हुआ कुल नुकसान कई लाख करोड़ रुपये का है.

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने आशंका को दूर किया और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के अधिकारियों को यह बताने के लिए कहा कि यह “किसी भी संदिग्ध व्यक्ति की तलाश की योजना नहीं बना रहा है”.

पीठ में न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला भी शामिल थे. पीठ ने आधुनिक समय में निर्बाध पूंजी प्रवाह वाले बाजार में निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए नियामक तंत्र को मजबूत बनाने सहित विभिन्न मुद्दों पर वित्त मंत्रालय और अन्य से जानकारी मांगी.

पीठ ने कहा, “यह सिर्फ एक खुला संवाद है. वे कोर्ट के सामने मामला लेकर आए हैं. चिंता का विषय यह है कि हम भारतीय निवेशकों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करते हैं? यहां जो हुआ वह शॉर्ट-सेलिंग था. संभवत: इसकी जांच सेबी भी कर रहा है. कृपया अपने अधिकारियों को भी बताएं कि हम किसी संदिग्ध व्यक्ति की तलाश करने की योजना नहीं बना रहे हैं.”

उसने कहा, “हम कैसे सुनिश्चित करें कि भविष्य में हमारे पास मजबूत तंत्र है? क्‍योंकि आज पूंजी भारत से निर्बाध रूप से आ-जा रही है. हम भविष्य में कैसे सुनिश्चित करें कि भारतीय निवेशक सुरक्षित हैं? हर कोई अब बाजार में है.”

न्यायालय ने कहा, “हम कैसे सुनिश्चित करेंगे कि वे सुरक्षित हैं? हम कैसे सुनिश्चित करेंगे कि भविष्य में यह नहीं होगा? हम सेबी के लिए किस भूमिका की परिकल्पना करते हैं? उदाहरण के लिए, एक अलग संदर्भ में, आपके पास सर्किट ब्रेकर हैं.”

पीठ ने “निवेशकों की सुरक्षा के लिए मजबूत नियामक तंत्र” को लागू करने के अलावा, एक विशेषज्ञ समिति का प्रस्ताव रखा जिसमें प्रतिभूति क्षेत्र, अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग क्षेत्र के विशेषज्ञ और “एक पूर्व न्यायाधीश के रूप में बुद्धिमान मार्गदर्शक व्यक्ति” शामिल हो सकते हैं.

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि बाजार नियामक और अन्य वैधानिक निकाय आवश्यक कार्रवाई कर रहे हैं. अदालत ने कहा कि वह “सिर्फ विचार कर रही है” और मामले के गुणदोष पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही है, क्योंकि “शेयर बाजार आमतौर पर भावनाओं पर चलते हैं”.

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, “हमने सॉलिसिटर जनरल को यह सुनिश्चित करने के संबंध में चिंताओं का संकेत दिया है कि देश के भीतर नियामक तंत्र को विधिवत रूप से मजबूत किया जाए ताकि भारतीय निवेशकों को कुछ अस्थिरता से बचाया जा सके, जैसा कि हाल के दो हफ्तों में देखा गया है.”

पीठ ने कहा कि इसके लिए मौजूदा नियामक ढांचे के उचित मूल्यांकन और निवेशकों के हित में नियामक ढांचे को मजबूत करने तथा प्रतिभूति बाजार के स्थिर संचालन की आवश्यकता होगी.

न्यायालय ने कहा, “हमने सॉलिसिटर जनरल को भी सुझाव दिया है कि क्या वे (केंद्र, सेबी और अन्य) समिति के सुझाव को स्वीकार करने के इच्छुक हैं. यदि भारत संघ सुझाव को स्वीकार करने के लिए इच्छुक है, तो समिति के गठन पर आवश्यक प्रतिवेदन मांगे जा सकते हैं.”

पीठ ने शीर्ष विधि अधिकारी को सुनवाई की अगली तारीख 13 फरवरी को विचार-विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए तथ्यात्मक और कानूनी दोनों पहलुओं पर एक संक्षिप्त नोट देने को कहा. विधि अधिकारी ने आश्वस्त किया कि सेबी स्थिति पर करीबी नजर रख रही है.

पीठ ने कहा, “हम स्पष्ट करते हैं कि उपरोक्त का सेबी या किसी वैधानिक प्राधिकरण द्वारा अपने वैधानिक कार्यों के उपयुक्त निर्वहन पर कोई प्रभाव नहीं है.” न्यायालय ने फिर उन दो जनहित याचिकाओं को 13 फरवरी को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया, जिनमें हिंडनबर्ग रिपोर्ट में जांच समेत कई राहत की मांग की गई है.

वकील विशाल तिवारी द्वारा दायर एक जनहित याचिका में हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में एक समिति गठित करने का केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है. रिपोर्ट में उद्योगपति गौतम अडाणी के नेतृत्व वाले समूह की कंपनियों के खिलाफ कई आरोप लगाए गए हैं.

वकील एम. एल. शर्मा ने एक अन्य याचिका दायर की थी, जिसमें अमेरिका की वित्तीय शोध कंपनी ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ के नाथन एंडरसन और भारत तथा अमेरिका में उनके सहयोगियों के खिलाफ कथित रूप से निर्दोष निवेशकों का शोषण करने और अडाणी समूह के शेयर के मूल्य को ‘‘कृत्रिम तरीके’’ से गिराने के लिए मुकदमा चलाने की मांग की गई थी.

शर्मा ने ‘शॉर्ट सेलिंग’ को निवेशकों के खिलाफ अपराध घोषित करने का निर्देश देने की मांग की, जिसे सेबी अधिनियम के प्रावधानों के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत अपराध घोषित किया जाए.

‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ द्वारा अडाणी समूह पर फर्जी लेन-देन और शेयर की कीमतों में हेरफेर सहित कई गंभीर आरोप लगाए जाने के बाद समूह की कंपनियों के शेयर की कीमतों में भारी गिरावट देखी गई.

अडाणी समूह ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वह सभी कानूनों और सूचना सार्वजनिक करने संबंधी नीतियों को पालन करता है.

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