Year Ender 2019: ‘सांड की आंख’ से लेकर ‘द स्काई इस पिंक ’ तक, इन 5 फिल्मों ने समाज को दिया सशक्त होने का संदेश
इस वर्ष बहुत सारी फिल्में प्रदर्शित हुईं, मगर पांच फिल्में ऐसी भी थीं, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस के परंपरागत ढांचे से अलग रहकर भी दर्शकों की तालियां बटोरी और शानदार कमाई भी की...
साल 2019 अपनी पूर्णता की ओर है. जहां तक हिंदी सिने जगत की बात है तो यही सही समय है यह जानने का कि इस वर्ष की रिलीज कौन-कौन सी फिल्में भारतीय सिनेमा के इतिहास में अपनी विशिष्ठ छाप छोड़ने में भी सफल रही हैं. रिलीज फिल्मों पर एक सरसरी नजर डालने के बाद कहा जा सकता है कि साल 2019 में रिलीज कुछ फिल्में एक निश्चित सांचे में नहीं होने के बावजूद दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहीं. इस वर्ष रुपहले परदे पर जातिगत भेदभावों से लेकर समान-लिंग प्रेम जैसी कई अनछुई कहानियों वाली फिल्मों के साथ दस्तक दी. इन फिल्मों ने सिनेमा प्रेमियों को न केवल कुछ ज्वलंत मुद्दों वाली फिल्में देखने के लिए प्रेरित किया बल्कि अविस्मरणीय और प्रभावशाली संदेश भी दिया है. आइये हिंदी सिनेमा की पांच विशिष्ठ फिल्मों पर सरसरी नजर डालें, जिसे दर्शकों ने एक सबक की तरह लिया.
गली बॉय (Gully Boy)
ऑस्कर 2020 के लिए भारतीय फिल्म के रूप में नामांकित फिल्म ‘गली ब्वॉय’ रैपर नाइजी और डिवाइन के जीवन से प्रेरित है, जो धारावी के स्लम बस्ती से शुरू होकर रैंप कलाकार बनने तक की मर्मस्पर्शी कथा को रेखांकित करता है. जोया अख्तर द्वारा निर्देशित और रीमा कागती के साथ संयुक्त रूप से मिलकर लिखी यह फिल्म आपको अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ने और स्वयं अपनी तकदीर लिखने की प्रेरणा जगाती है. इसमें रणवीर सिंह ने मुराद की भूमिका निभाई है, जो अपनी घरेलू समस्याओं से जूझते हुए रास्ते में आयी हर बाधाओं को पार कर अपनी मंजिल तक पहुंचता है, क्योंकि उसे हार पसंद नहीं. गली बॉय एक ऐसी फिल्म है जो अपनी आकर्षक कहानी के साथ जहां दर्शकों के रोंगटे खड़े करता है, वहीं अपने शानदार संगीत से उनके पैरों को थिरकने के लिए भी मजबूर करता है.
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा (Ek Ladki Ko Dekha Toh Aisa Laga)
शैली चोपड़ा धर द्वारा निर्देशित अनिल कपूर, सोनम कपूर, राजकुमार और जूही चावला द्वारा अभिनीत ऐसी समलैंगिक लड़की की कहानी है, जो अपने पारंपरिक पंजाबी परिवार के सामने आने की कोशिश करती है. यह फिल्म समाज की तमाम कुंठित मानसिकताओं वाली सीमाओं को तोड़ती है. यह हिंदी सिनेमा की उन चुनिंदा फिल्मों में एक है जिसमें समान सेक्स प्रेम को दर्शाने की कोशिश की गई है. इसकी विशेष बात यह है कि इस फिल्म की पटकथा लेखक गजल धालीवाल स्वयं भी एक ट्रांसजेंडर महिला हैं. कहानी में दिखाया गया है कि गैर शहरी अथवा गैर महानगरीय स्थानों में इनके लिए जीवन जीना कितना कठिन होता है. फिल्म दर्शकों के सामने एक तीन शब्दों में अर्थपूर्ण संदेश छोड़ती है कि प्रेम प्रेम ही है.
आर्टिकल 15 (Article 15)
‘मुल्क’ जैसी समस्यामूलक फिल्म बना चुके निर्देशक अनुभव सिन्हा ने इस वर्ष फिल्म ‘अनुच्छेद 15’ रिलीज की, जिसके मुख्य कलाकार आयुष्मान खुराना, सयानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा इत्यादि हैं. यह फिल्म जातिगत भेदभाव की अनछुई तस्वीरों को दर्शाती है. यद्यपि इससे पूर्व भी श्याम बेनेगल, प्रकाश झा, गोविंद निहलानी एवं नागराज मंजुले कई निर्माता-निर्देशक इस ज्वलंत मुद्दे पर फिल्में बना चुके हैं, लेकिन निर्देशक अनुभव सिन्हा अपनी अनुच्छेद 15 में कुछ आगे जाकर अस्पृश्यता और जातिगत आधारित हिंसा पर प्रहार भी करते हैं. अलबत्ता अनुभव का अंदाज थोड़ा कमर्शियल है, शायद इसलिए कि वे अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं. अनुच्छेद 15 बदायूं गैंगरेप और 2016 में ऊना में हुई गोलीबारी की घटनाओं से प्रेरित फिल्म है. यह फिल्म जातिगत व्यवस्था पर आक्रामक रवैया अपनाने वाले एक पुलिस अधिकारी के इर्द-गिर्द घूमती है. फिल्म में दर्शकों को समानता का प्रभावशाली ढंग से संदेश देने की कोशिश की गयी है कि आजादी के 72 साल बाद समाज की उस सड़ी-गली व्यवस्था को ठोकर मारते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करें.
सांड की आंख (Saand Ki Aankh)
तुषार हीरानंदानी द्वारा निर्देशित और तापसी पन्नू एवं भूमि पेडणेकर द्वारा अभिनीत ‘सांड की आंख’ दो महिला शार्प शूटर चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की सच्ची कहानी पर आधारित है. इन दोनों महिलाओं को साठ साल की उम्र के बाद अपने शूटिंग टैलेंट का अहसास होता है. दोनों अपना सपना साकार करना चाहती हैं, मगर पितृसत्तात्मक परिस्थितियों में घर की ड्योढ़ी पार कर अपने सपने पूरे करना आसान नहीं, लेकिन अंततः अथक संघर्ष और परिश्रम के पश्चात दोनों अपने लक्ष्य को हासिल करती हैं और समाज के सामने एक संदेश छोड़ती हैं कि सपने पूरे करने की कोई उम्र नहीं होती. इस फिल्म ने एक और पंरपरा को तोड़ी है. इससे पूर्व दीपावली पर अधिकांशतया बड़ी और मल्टीस्टारर फिल्में ही रिलीज होती थीं, उसके सामने इस तरह विषय प्रधान फिल्में रिलीज होने का साहस नहीं करती थीं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ जब नॉन स्टार की कोई फिल्म बड़े स्टारों की फिल्मों के सामने हिट होकर अपनी खास पहचान बनाई.
द स्काई इज पिंक (The Sky is Pink)
‘द स्काई इज पिंक’ शोनाली बोस और लेखिका एवं प्रवक्ता आइशा चौधरी की निजी जिंदगी पर आधारित कहानी पर बनी फिल्म है, जो सिस्टिक फाइब्रोसिस के कारण मात्र 18 वर्ष की आयु में मृत्यु का शिकार हो गयी थी. वास्तव में यह जिंदगी की जंग और उसमें सब कुछ गवां कर भी जीने की कहानी है. पूरी फिल्म आइशा के माता-पिता, अदिति (प्रियंका चोपड़ा) और नरेन (फरहान अख्तर) के इर्द-गिर्द घूमती है. जो अपने बच्चे के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए कुछ भी करना अपने जीवन का मिशन बना लेते हैं.
यद्यपि स्काई इज पिंक एक रूढ़िवादी आंसू बहाती फिल्म नहीं है, इसका उद्देश्य ऐशा के प्रति लोगों की सहानुभूति रखना ही नहीं, बल्कि आपको उसके लिए खुश होना है, जब वह एक वक्ता के रूप में अपना बड़ा भाषण देती है. फिल्म में कोई संदेश विशेष नहीं है, मगर दिल में एक टीस जरूर छोड़ती है, जो बताने की कोशिश करती है कि आपका परिवार जीवन में कठिन परिस्थितियों से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभा सकता है.