भारत में एकजुट होतीं महिला गिग वर्कर

गिग इकॉनमी में काम करने वाली महिलाएं भी अब अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो रही हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

गिग इकॉनमी में काम करने वाली महिलाएं भी अब अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो रही हैं. वे एक-दूसरे से जुड़ रही हैं और सड़कों पर भी उतर रही हैं.भारत की ऐप आधारित ब्यूटी और होम केयर सेवाएं उपलब्ध कराने वाली अर्बन कंपनी ने जब नये नियम लागू किये तो ऐप के जरिये काम करने वालीं महिलाएं उनके विरोध में सड़कों पर उतर आईं. लेकिन जुलाई में करीब आधा दर्जन शहरों में विरोध प्रदर्शन करने से पहले ये महिलाएं सोशल मीडिया मैसेजिंग ऐप वॉट्सऐप के जरिये एकजुट हुईं और कई दिन चले अपने आंदोलन का पल पल का हाल वॉट्सऐप के जरिये पूरे देश में फैलीं महिलाओं के साथ साझा किया.

जुलाई में अर्बन कंपनी के साथ काम करने वाली महिलाओं ने ऑल इंडिया गिग वर्कर्स यूनियन के समर्थन से आंदोलन छेड़ा था. भारत में ऐप आधारित कंपनियों के साथ काम करने वाली ‘गिग वर्कर्स' कहलाने वाली महिलाओं का यह पहला राष्ट्रीय आंदोलन था.

बदल रहा है माहौल

भारत में गिग इकॉनमी में महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत कम है वे ट्रेड यूनियनों का हिस्सा भी नहीं रही हैं. आमतौर पर अनौपचारिक रूप से पनप रही गिग इकॉनमी पर अब तक पुरुषों का अधिपत्य रहा है.

लेकिन परिदृश्य बदल रहा है और ऐप आधारित काम करने वाली महिलाएं भी बड़ी संख्या में संगठनों और यूनियनों का ना सिर्फ हिस्सा बन रही हैं बल्कि आंदोलनों का नेतृत्व कर रही हैं और अपने डेटा पर अधिकार व काम के लिए अधिक लाभ पाने के लिए कंपनीप्रबंधकों के साथ बातचीत में भी भाग ले रही हैं.

राजस्थान विधानसभा में गिग कामगारों के लिए लाये गये कानून का मसौदा तैयार करने में मदद करने वाले संगठन सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान की रक्षिता स्वामी कहती हैं, "महिला गिग वर्कर अन्य ऐप आधारित कामगारों को प्रदर्शन करते देख रही थीं और प्रोत्साहित हो रही थीं. उनके पास मोबाइल फोन हैं और वे ग्रामीण महिलाओं के मुकाबले ज्यादा आसानी से जुड़कर संगठित हो सकती हैं.”

महिलाओं की हिस्सेदारी कम

भारत में औपचारिक क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या लगातार कम बनी रही है. उनके लिए नयी नौकरियां भी कम पैदा हो रही हैं और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में भी उनकी हिस्सेदारी संख्या के मुताबिक नहीं है. लेकिन डिजिटल प्लैटफॉर्म महिलाओं के लिए सटीक बैठते हैं क्योंकि यहां काम करने से उन्हें काम में लचीलापन और स्वायत्तता तो मिलती ही है, कमाई भी अच्छी हो जाती है.

लेकिन जैसे जैसे गिग इकॉनमी का आकार बढ़ा है, कर्मचारियों की चिंताएं भी बढ़ी हैं. कम आय, कम सुरक्षा, कम आजादीऔर एल्गोरिदम के ना समझ में आने वाले प्रबंधन के कारण महिलाओं को खराब रेटिंग और कम काम के अलावा खाते बंद कर दिये जाने जैसी चुनौतियों से भी जूझना पड़ा है.

मानवाधिकार संगठन एक्शनएड ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया कि एल्गोरिदम महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करते हैं क्योंकि "घर की जिम्मेदारियों में फंसे होने के कारण वे उतनी जल्दी जवाब नहीं दे पातीं या उतने घंटे काम नहीं कर पातीं, जितना पुरुष करते हैं. ”

गिग इकॉनमी के लिए भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से है. नीति आयोग के मुताबिक 2020-21 में वहां 80 लाख लोग ऐप आधारित काम कर रहे थे और 2029-30 में इनकी संख्या 2.4 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान है. लेकिन महिलाएं इस पूरे परिदृश्य का छोटा सा हिस्सा हैं और अधिकतर घर की साफ-सफाई, ब्यूटी पार्लर या शिक्षा जैसे कामों में लगी हैं.

फूड डिलीवरी कराने वाली वेबसाइट जमैटो ने ऐसा संकेत दिया है कि उसके कर्मचारियों में एक फीसदी ही महिलाएं हैं. उधर ब्यूटी सर्विस देने वाली अर्बन कंपनी में 45 हजार से ज्यादा कर्मचारियों में एक तिहाई महिलाएं हैं.

और कौन बोलेगा?

मंजू गोयल ने पिछले साल कई महीने तक मानेसर स्थित एमेजॉन के वेयरहाउस में काम किया. उनके साथ वहां दर्जनों महिलाएं काम करती थीं जो कई-कई घंटे बिना बैठे काम करतीं, भारी वजन उठातीं और बाथरूम के ब्रेक के लिए भी लंबा इंतजार करतीं.

लोगों से बातचीत कर गोयल ने महिलाओं को वॉट्सऐप पर जोड़ा और फिर उन्हें एमेजॉन वर्कर्स यूनियन के साथ जुड़ने को तैयार किया ताकि वे भी ब्लैक फ्राइडे नाम से पूरी दुनिया में हुए विरोध प्रदर्शन का हिस्सा बन सकें.

45 साल की गोयल बताती हैं, "वे यूनियन का हिस्सा बनने से झिझक रही थीं क्योंकि उन्हें नौकरी जाने का डर था. लेकिन हमारे लिए अपनी आवाज सुनवाने का कोई और जरिया नहीं था. हमने महिलाओं को अर्बन कंपनी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते देखा. अगर हम अपने लिए नहीं बोलेंगे तो कौन बोलेगा?”

वीके/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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