देश की खबरें | ‘जब निर्वाचन आयोग को किसी की मां, पत्नी के रूप में पंजीकृत महिला मतदाताओं के नाम हटाने पड़े थे’

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. भारत के पहले लोकसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करते वक्त निर्वाचन आयोग को एक अजीब समस्या का सामना करना पड़ा था। कुछ राज्यों में कई महिला मतदाताओं ने अपने नाम के बजाए अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ अपने संबंधों के आधार पर अपना पंजीकरण कराया था।

नयी दिल्ली, 19 मार्च भारत के पहले लोकसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करते वक्त निर्वाचन आयोग को एक अजीब समस्या का सामना करना पड़ा था। कुछ राज्यों में कई महिला मतदाताओं ने अपने नाम के बजाए अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ अपने संबंधों के आधार पर अपना पंजीकरण कराया था।

इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने के लिए विशेष प्रयास किए गए और ऐसी महिला मतदाता 1951-52 के चुनाव के लिए मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा सकें, इसके लिए विशेष तौर पर समयावधि भी बढ़ायी गयी थी।

पहले आम चुनाव पर 1955 में प्रकाशित एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, तब देश में तकरीबन आठ करोड़ महिला मतदाताओं में से ‘‘करीब 28 लाख महिलाएं अपने सही नामों का खुलासा करने में विफल रहीं और मतदाता सूची से उनसे संबंधित जानकारियों को हटाना पड़ा।

इसमें यह भी कहा गया है कि ‘‘व्यावहारिक रूप से ऐसे सभी मामले बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और विंध्य प्रदेश राज्यों से आए थे।’’

भारत के 1950 में गणतंत्र बनने से एक दिन पहले अस्तित्व में आए निर्वाचन आयोग ने 17 आम चुनाव कराए हैं। लेकिन पहल आम चुनाव कराने में उसे देश के भूगोल और जनसांख्यिकी दोनों से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था जिसका बड़ा तबका तब अशिक्षित था।

1951-52 के लोकसभा चुनाव पर निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट में लिखा था, ‘‘मतदाता सूची तैयार करते वक्त निर्वाचन आयोग के संज्ञान में आया है कि कुछ राज्यों में बड़ी संख्या में महिला मतदाता अपने नाम से नहीं बल्कि अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ उनके संबंधों (उदाहरण के लिए मां, पत्नी आदि) के आधार पर पंजीकृत हैं। इसकी वजह यह है कि स्थानीय परंपराओं के अनुसार, इन क्षेत्रों में महिलाएं अजनबियों को अपना सही नाम बताने से कतराती हैं।’’

जैसे ही यह मामला निर्वाचन आयोग के संज्ञान में आया तो निर्देश दिए गए कि मतदाता की पहचान के आवश्यक हिस्से के रूप में उसका नाम मतदाता सूची में दर्ज किया जाए और किसी भी मतदाता को बिना नाम के पंजीकृत न किया जाए।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘बिहार में ऐसे आवेदन भरने के लिए एक महीने का विशेष विस्तार दिया गया ताकि महिला मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से हटाने से रोका जा सके। इस विस्तार का अच्छा इस्तेमाल किया गया और राज्य में मतदाता सूची में काफी सुधार आया। हालांकि, राजस्थान में भी समयावधि विस्तार दिया गया लेकिन वहां परिणाम खराब रहे।’’

दिल्ली के पूर्व मुख्य निर्वाचन अधिकारी चंद्र भूषण कुमार ने कहा कि महिला मतदाताओं को मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने के लिए यह निर्वाचन आयोग द्वारा उठाया ‘‘बहुत उल्लेखनीय कदम’’ था।

उन्होंने ‘पीटीआई-’ से कहा, ‘‘यह उन दिनों मुश्किल फैसला था लेकिन भारत के निर्वाचन आयोग ने इसका जिम्मा उठाया और अब परिणाम हमारे सामने है। अब, ज्यादातर स्थानों पर हम देखते हैं कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अधिक संख्या में मतदान कर रही है या उनका मत प्रतिशत पुरुष मतदाताओं से अधिक है।’’

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\