
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाईकोर्ट के एक ऐसे फैसले को पलट दिया है, जिसे महिला विरोधी माना जा रहा था. शीर्ष अदालत पहले भी महिलाओं को प्रभावित करने वाले कुछ विवादित फैसलों को पलट चुकी है.सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहबाद हाईकोर्ट के एक फैसले पर रोक लगा दी. इस आदेश में हाईकोर्ट ने कहा था कि नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पजामे का नाड़ा तोड़ देना और उसे पुलिया के नीचे खींचकर ले जाना, बलात्कार करने की कोशिश नहीं है. कानूनी मामलों की वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक, हाईकोर्ट ने इसे गंभीर यौन उत्पीड़न का मामला माना था. महिला सुरक्षा के मुद्दे से जुड़े इस फैसले की काफी आलोचना हुई थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था.
इलाहबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने यह फैसला सुनाया था जिसे सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने चौंकाने वाला बताया. बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश में संवेदनशीलता की कमी दिखती है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट के आदेश की कुछ टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं और अमानवीय नजरिए को दर्शाती हैं इसलिए हम इन पर रोक लगा रहे हैं.
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कोर्ट के आदेश के बाद दर्ज हुई थी एफआईआर
इलाहबाद हाईकोर्ट ने चार साल पुराने एक मामले को लेकर यह फैसला सुनाया था. उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले की एक महिला ने आरोप लगाया था कि नवंबर, 2021 में दो युवकों ने उसकी नाबालिग बेटी के साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी. इंडियन एक्सप्रेस अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने महिला की शिकायत दर्ज नहीं की थी जिसके बाद महिला ने कोर्ट का रुख किया था. मार्च, 2022 में कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने मामला दर्ज किया था.
कासगंज की एक अदालत ने आरोपी युवकों को आईपीसी सेक्शन 376 (बलात्कार) और पॉस्को एक्ट के सेक्शन 18 (अपराध करने की कोशिश) के तहत समन भेजा था. आरोपियों ने इस के खिलाफ इलाहबाद हाईकोर्ट में अपील की थी और आरोपों को गलत बताया था. इलाहबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी करने के बाद समन के आदेशों को संशोधित कर दिया था.
बॉम्बे और कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश भी पलटे जा चुके
कलकत्ता हाईकोर्ट ने अक्टूबर, 2023 में एक फैसला सुनाते हुए टिप्पणी की थी कि किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए, वे दो मिनट के सुख के लिए समाज की नजरों में गिर जाती हैं. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जज से यह उम्मीद नहीं की जाती है कि वे फैसला सुनाते समय अपने विचार व्यक्त करें. तब कोर्ट ने यह दिशानिर्देश भी जारी किए थे कि फैसले किस तरह लिखे जाने चाहिए. इसके अलावा, कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को भी पलट दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के भी ऐसे ही एक फैसले को पलटा था. बॉम्बे हाईकोर्ट की जज पुष्णा गनेडीवाला ने एक मामले में फैसला सुनाया था कि लड़की का टॉप हटाए बिना उसके स्तनों से छेड़छाड़ करना, यौन उत्पीड़न का मामला नहीं है क्योंकि इसमें त्वचा से सीधा संपर्क नहीं हुआ था. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए आरोपी को तीन साल की सजा सुनाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अदालतों को त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं बल्कि आरोपी की यौन नीयत देखनी चाहिए.