अखबारों की घर पहुंच सेवा पर रोक के पीछे क्या तर्क है : अदालत
न्यायमूर्ति पी बी वराले ने सोमवार को इस मुद्दे का स्वत: संज्ञान लिया और सरकार से 27 अप्रैल तक जवाब देने को कहा।
मुंबई, 21 अप्रैल बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने घर-घर अखबार पहुंचाने पर रोक लगाने, वहीं लोगों को दुकानों से समाचार-पत्र खरीदने के लिए घरों से बाहर निकलने की अनुमति देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले पर सवाल खड़ा किया है।
न्यायमूर्ति पी बी वराले ने सोमवार को इस मुद्दे का स्वत: संज्ञान लिया और सरकार से 27 अप्रैल तक जवाब देने को कहा।
इससे पहले उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने भी सरकार से पत्रकार संगठनों की याचिकाओं पर जवाब देते हुए इस मुद्दे पर उत्तर दाखिल करने को कहा था।
राज्य सरकार ने कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के मद्देनजर घरों तक अखबार पहुंचाने की सेवा पर रोक लगा दी है।
न्यायमूर्ति वराले ने कहा, ‘‘यह अदालत सामान्य तौर पर दुनिया के सामने बनी अप्रत्याशित परिस्थिति से अवगत है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस बात पर भी कोई विवाद नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकार हालात से निपटने के लिए अनेक कदम उठा रही हैं।’’
हालांकि अदालत ने कहा कि प्रिंट मीडिया को लॉकडाउन से छूट है, फिर भी मुख्यमंत्री ने अखबारों के घरों में वितरण पर रोक लगा दी है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इसके पीछे का तर्क भी समझ नहीं आता कि एक तरफ अखबारों की छपाई की अनुमति है लेकिन उन्हें घर पहुंचाने की अनुमति नहीं है।’’
उसने कहा, ‘‘जब राज्य सरकार स्टॉलों से अखबारों की खरीद की अनुमति दे रही है तो घर-घर वितरण पर पाबंदी क्यों है।’’
अदालत ने कहा कि लोगों को दुकानों से अखबार खरीदने की अनुमति देकर सरकार उन्हें लॉकडाउन के दौरान घरों से बाहर निकलने की वजह या बहाना दे रही है।
अदालत ने कहा कि घर-घर अखबार पहुंचेगा तो लोग उसे खरीदने के लिए बाहर नहीं निकलेंगे।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अखबारों के डिजिटल संस्करण ऑनलाइन उपलब्ध हैं, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके लिए उन्हें पढ़ पाना संभव नहीं है क्योंकि या तो वे प्रौद्योगिकी से इतने वाकिफ नहीं हैं या उन्हें हाथ में अखबार पढ़ने की आदत हो गयी है।’’
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, लेटेस्टली स्टाफ ने इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया है)