देश की खबरें | टीकाकरण की रणनीति न्यायसंगत है, ‘‘अत्यधिक’’ हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं: केंद्र ने न्यायालय से कहा

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि उसने कोविड-19 से निपटने के लिए ‘‘न्यायसंगत और भेदभाव रहित’’ टीकाकरण रणनीति तैयार की है और किसी भी प्रकार के ‘‘अत्यधिक’’न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं।

नयी दिल्ली, 10 मई केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि उसने कोविड-19 से निपटने के लिए ‘‘न्यायसंगत और भेदभाव रहित’’ टीकाकरण रणनीति तैयार की है और किसी भी प्रकार के ‘‘अत्यधिक’’न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं।

केंद्र ने शीर्ष अदालत की ओर से उठाए गए कुछ बिंदुओं का जवाब देते हुए एक शपथपत्र दायर किया है। इस शपथ पत्र में केन्द्र ने कहा है कि वैश्विक महामारी के अचानक तेजी से फैलने और टीकों की खुराकों की सीमित उपलब्धता के कारण पूरे देश का एक बार में टीकाकरण संभव नहीं है।

न्यायालय ने कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान आवश्यक सामग्रियों एवं सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के संबंध में स्वत: संज्ञान लिया था और इसी मामले में केंद्र ने यह शपथ पत्र दाखिल किया है।

केंद्र सरकार ने कहा कि टीकाकरण नीति अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के जनादेश के अनुरूप है और इसे विशेषज्ञों के साथ कई दौर की वार्ता और विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है।

उसने कहा कि राज्य सरकारों एवं टीका विनिर्माताओं के काम में शीर्ष अदालत को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

केंद्र ने 200 पृष्ठ के शपथपत्र में कहा, ‘‘विशेषज्ञों की सलाह या प्रशासनिक अनुभव के अभाव में अत्यधिक न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं, भले ही यह हस्तक्षेप नेकनीयत से किया गया हो। इसके कारण चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों एवं कार्यपालिका के पास इस मामले पर नवोन्मेषी समाधान खोजने के लिए खास गुंजाइश नहीं बचेगी।’’

उसने कहा, ‘‘कार्यकारी नीति के रूप में जिन अप्रत्याशित एवं विशेष परिस्थितियों में टीकाकरण मुहिम शुरू की गई है, उसे देखते हुए कार्यपालिका पर भरोसा किया जाना चाहिए।’’

केंद्र ने कहा कि टीकों की कीमत संबंधी कारक का अंतिम लाभार्थी यानी टीकाकरण के लिए पात्र व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि सभी राज्य सरकारों ने पहले ही अपनी नीति संबंधी घोषणा कर दी है कि हर राज्य अपने निवासियों का नि:शुल्क टीकाकरण करेगा।

उसने कहा कि न्यायालय ने अपने कई फैसलों में कार्यकारी नीतियों की न्यायिक समीक्षा के लिए मापदंड बनाए हैं और इन नीतियों के मनमाना प्रतीत होने पर ही इन्हें खारिज किया जा सकता है या हस्तक्षेप किया जा सकता है। इसी कारण कार्यपालिका को संवैधानिक जनादेश के अनुसार काम करने के लिए पर्याप्त आजादी मिलती है।

टीकों एवं दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पेटेंट कानून के तहत अनिवार्य लाइसेंस प्रावधान को लागू करने के मामले पर सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मुख्य बाधा कच्चे माल एवं आवश्यक सामग्री की उपलब्धता से जुड़ी है और इसलिए कोई भी और अनुमति या लाइसेंस को लागू करने से तत्काल उत्पादन संभवत: नहीं बढ़ेगा।

शपथपत्र में कहा गया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय उत्पादन और आयात बढ़ाकर रेमडेसिविर की उपलब्धता बढ़ाने के हर प्रयास कर रहा है।

उसने कहा, ‘‘हालांकि, कच्चे माल और अन्य आवश्यक सामग्रियों की उपलब्धता में मौजूदा बाधाओं के मद्देनजर केवल उत्पादन क्षमता बढ़ाने से आपूर्ति बढ़ाने संबंधी इच्छित परिणाम नहीं मिल सकते।’’

केंद्र ने कहा, ‘‘पेटेंट कानून 1970 , ट्रिप्स समझौते और दोहा घोषणा के साथ पढ़ा जाए, के तहत या फिर किसी अन्य तरीके से कानूनी शक्तियां इस्तेमाल करने से इस चरण पर केवल नुकसान होगा। केंद्र सरकार भारत के सर्वश्रेष्ठ हित में समाधान खोजने के लिए राजनयिक स्तर पर वैश्विक संगठनों से संवाद कर रही है।’’

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\