चीन में एक अविवाहित महिला पिछले पांच साल से बच्चा पैदा करने के अधिकार के लिए लड़ रही है. देश की बदलती जनसंख्या स्थिति ने उसकी उम्मीद बढ़ाई है.35 साल की लेखिका टेरेसा जू ने कोर्ट में अब अपनी आखरी अपील दायर की है. उनका यह मुकदमा एक अस्पताल के खिलाफ है जिसने उनके अंडाणु फ्रीज करने से इनकार कर दिया था. जू का कहना है कि ऐसा करके अस्पताल ने उनके बच्चे पैदा करने के अधिकार का उल्लंघन किया. हालांकि अब तक जितनी भी अदालतों में वह गईं, वहां उन्हें निराशा ही हाथ लगी.
टेरेसा जू ने 2019 में बीजिंग ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनकॉलजी अस्पताल के खिलाफ शिकायत की थी. उनका कहना था कि अस्पताल ने इसलिए उनके अंडाणु फ्रीज करने से इनकार कर दिया क्योंकि वह अविवाहित हैं. तब यह मामला अदालत में गया और अदालत ने कहा कि अस्पताल ने कोई गलती नहीं की.
अब नया चीन
लेकिन अब हालात अलग हैं. चीन की जनसंख्या घट रही है और वह सबसे अधिक आबादी के मामले में भारत से पिछड़ चुका है. इसलिए सरकारें आबादी बढ़ाने के लिए तरह-तरह की कोशिशें कर रही हैं. मसलन, कुछ राज्यों ने आईवीएफ की सुविधा का दायरा बढ़ाया है तो कुछ जगहों पर अविवाहित महिलाओं को भी बच्चे पैदा करने का अधिकार देने पर चर्चा चल रही है. इससे जू की उम्मीद बढ़ गई है.
भारत क्या आबादी के आर्थिक फायदे उठा सकेगा
वह कहती हैं, "लोग मेरे केस की ओर बहुत ध्यान दे रहे हैं. यह अविवाहित महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. मेरे ख्याल से इससे बहुत सी महिलाओं की उम्मीद बढ़ी है, इसलिए मैं लड़ाई जारी रखना चाहती हूं.”
हालांकि जू के मामले में अदालत का फैसला आने में वक्त लगेगा लेकिन वह कहती हैं कि अगर फैसला उनके हक में आया तो वह फौरन कदम उठाएंगी. यानी वह अपने अंडाणुओं को फौरन फ्रीज करवाना चाहेंगी.
अविवाहित महिलाओं के अधिकार
चीन में अविवाहित महिलाओं के लिए बच्चा पैदा करने के लिए उपलब्ध इलाजों तक पहुंच बहुत कम है. आईवीएफ और अंडाणु फ्रीज कराने जैसी तकनीकें विवाहित महिलाओं के लिए तो उपलब्ध हैं लेकिन नियम है कि इन तकनीकों का इस्तेमाल करने के लिए महिला का विवाहित होना जरूरी है.
मार्च में सरकार के सलाहकारों ने कहा था कि बूढ़ी होती आबादी से निपटने के लिए अविवाहित महिलाओं को भी इन तकनीकों के सहारे बच्चे पैदा करने की इजाजत दी जानी चाहिए. सिचुआन प्रांत में नियमों में एक बड़ा बदलाव हुआ है. वहां अब अविवाहित महिलाएं भी अपने बच्चे का रजिस्ट्रेशन करवा सकती हैं. यह बदलाव इसी महीने से लागू हुआ है. यानी अब माता-पिता बनने का अधिकार सिर्फ विवाहित लोगों को नहीं बल्कि सभी लोगों को दिया जा रहा है.
भारत की बढ़ती आबादी से चिंतित नहीं है चीन
जू के लिए यह बहुत अच्छी खबर है. वह बहुत पहले से चाहती हैं कि अपने अंडाणु फ्रीज करवा दें ताकि भविष्य में कभी बच्चा पैदा कर सकें.
2018 में वह बीजिंग के अस्पताल में ऐसा करने गई थीं. तब वह 30 साल की थीं. शुरुआती जांच के बाद अस्पातल ने कहा कि बिना विवाह प्रमाण पत्र के वह ऐसा नहीं कर सकतीं. तब उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया लेकिन वहां से भी उन्हें वही जवाब मिला. पिछले साल आए अदालत के फैसले के मुताबिक अस्पातल ने दलील दी थी कि अंडाणु फ्रीज करवाने के कुछ स्वास्थ्यगत खतरे होते हैं.
अस्पताल ने कहा कि यह तकनीक सिर्फ उन महिलाओं के लिए उपलब्ध है जो कुदरती तौर पर मां नहीं बन सकतीं. स्वस्थ महिलाओं के लिए यह तकनीक उपलब्ध नहीं है.
एक तर्क यह भी है कि अगर अभिभावक और बच्चे की आयु में अंतर बहुत ज्यादा हो तो उसके भी अपने खतरे हो सकते हैं और इससे "मनोवैज्ञानिक व सामाजिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं.”
स्वास्थ्य सुविधाओं पर दबाव का डर
अब जू का मामला ऊपरी अदालत में है. मंगलवार को मुकदमे की सुनवाई के बाद जू ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उन्हें अंडाणु फ्रीज करने की सुविधा ना देकर उनके अपने शरीर पर अधिकार का उल्लंघन किया गया है.
इस बीच सिचुआन जैसे कुछ प्रांतों ने अविवाहित महिलाओं को आईवीएफ की सुविधा दे दी है. अगर यह सुविधा पूरे देश में उपलब्ध होती है तो चीन के लिए इसके लिए क्रांतिकारी परिणाम हो सकते हैं क्योंकि वहां युवा आर्थिक और वित्तीय कारणों से बच्चे पैदा करने से परहेज कर रहे हैं. वे और ज्यादा उत्साहित होकर भविष्य में माता-पिता बनने की योजना बना सकते हैं. हालांकि कुछ विशेषज्ञ आशंका जताते हैं कि इससे देश के सीमित स्वास्थ्य संसाधनों पर बोझ भी बढ़ेगा.
दुनिया में कम ही ऐसे देश हैं जो अविवाहित महिलाओं को अपने अंडाणु फ्रीज कराने का अधिकार देते हैं. अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में अविवाहित महिलाओं को यह अधिकार है. इसके अलावा स्पेन में भी इसका अधिकार है और वहां दुनिया के कई देशों के लोग फर्टिलिटी इलाज के लिए पहुंचते हैं.
विवेक कुमार (रॉयटर्स)