पश्चिमी अंटार्कटिका में बर्फ की पट्टियों का पिघलना नहीं रुकेगा
पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ की पट्टियां आने वाले दशकों में तेजी से पिघलेंगी.
पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ की पट्टियां आने वाले दशकों में तेजी से पिघलेंगी. ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लक्ष्यों को हासिल करने के बावजूद इन्हें रोक पाना संभव नहीं होगा.सोमवार को प्रकाशित एक रिसर्च में चेतावनी दी गई है कि बर्फ के इस अवश्यंभावी पिघलन से सागरों का जलस्तर खतरनाक रूप से बढ़ेगा. रिसर्चरों ने चेतावनी दी है कि इंसानों ने पतली होती बर्फ की पट्टियों के भविष्य पर से "नियंत्रण खो दिया" है. यह बर्फ की मोटी चपटी पट्टियां मुख्य चादर के किनारों पर उभारों के रूप में बहती रहती हैं और ग्लेशियरों के समंदर की ओर जाते बहाव को नियंत्रित करती हैं.
नहीं बचेंगी बर्फ की पट्टियां
यह इलाका बीते कुछ दशकों में पहले ही बहुत तेजी से बर्फ में कमी का सामना कर रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ की मोटी परत में सागर का जलस्तर कई मीटर तक बढ़ाने की क्षमता है जो बदलते जलवायु के कारण उस बिंदु पर पहुंचने वाली है जहां यह पिघल कर खत्म हो जाएगी. नई स्टडी में रिसर्चरों ने कंप्युटर मॉडलिंग का इस्तेमाल कर पता लगाया है कि बर्फ की चादर का तेजी से पिघलना आने वाले दशकों में सागरों के गर्म होने के कारण पहले ही अवश्यंभावी हो चुका है.
ये नतीजे मोटे तौर पर उस स्थिति में भी वही रहेंगे जब ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती होगी और बढ़ते तापमान को पूर्व औद्योगिक स्तर के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य में सफलता मिल जाएगी. यह लक्ष्य पेरिस जलवायु समझौते के तहत तय किया गया था.
नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च रिपोर्ट में अमुंडसेन सी में बहती बर्फ की पट्टियों के भीतर समुद्र के पानी के पिघलने की प्रक्रिया पर नजर डाली है. बहुत अच्छे हालात रहने पर भी 21वीं सदी में सागर 20वीं सदी की तुलना में तीन गुना तेजी से गर्म होंगे. ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे की काइतलिन नॉफ्टन ने पत्रकारों से कहा, "हमारे सिम्युलेशन ने दिखाया है कि बाकी शताब्दी के लिए अब हम सागर के गर्म होने की दर में तेजी और बर्फ की पट्टियों के पिघलने के लिए प्रतिबद्ध हो चुके हैं." नॉफ्टन इस रिसर्च रिपोर्ट की प्रमुख लेखिका भी हैं.
सागर का जलस्तर बढ़ने का संकट
रिसर्चरों ने सागर तल बढ़ने के सटीक अनुमानों का सिम्युलेट नहीं किया है. हालांकि नाफ्टन के मुताबिक उनके पास यह "उम्मीद करने की हरेक वजह" मौजूद है कि सागर का जलस्तर जो आकलन किए गए हैं वह उसमें इजाफा ही करेगा. पहले के आकलनों में शताब्दी के अंत तक जलस्तर में एक मीटर इजाफा होने की बात कही गई है.
पृथ्वी पर करोड़ों लोग निचले तटवर्ती इलाकों में रहते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि इन समुदायों के लिए गंभीर संकट पैदा होगा. यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन में फिजिकल ओशेनोग्राफी की प्रोफेसर अल्बर्टो नाविएरा गाराबातो का कहना है कि यह रिसर्च "संयत करने वाला" है.
नाविएरा के मुताबिक, "यह दिखाता है कि कैसे हमारे पहले के चुनावों ने संभवतया हमें पश्चिमी अंटार्कटिक की बर्फ की चादर के भारी पिघलन और उसके नतीजे में सागर जल स्तर के बढ़ने को निश्चित कर दिया है और हमें एक समाज के रूप में इसके लिए आने वाले दशकों और शताब्दियों में खुद को तैयार करना होगा."
चेतावनी की घंटी
हालांकि उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि यह "चेतावनी की घंटी" भी समझना चाहिए ताकि दूसरे गंभीर नतीजों से बचा जा सके. इसमें पूर्वी अंटार्कटिक की चादर का पिघलना भी शामिल है जिसे फिलहाल ज्यादा स्थायी माना जाता है.
रिसर्च रिपोर्ट के लेखकों ने इस बात पर जोर दिया है कि भले ही उत्सर्जन में कटौती का महत्वाकांक्षी योजना इस शताब्दी में पश्चिमी अफ्रीका में बर्फ की पट्टियों के खत्म होने पर असर ना डाल सके लेकिन लंबे समय में उनका बड़ा असर होगा. बर्फ की चादर के जलवायु परिवर्तन के हिसाब से असर दिखाने में कई शताब्दियां या फिर सदियां लग जाती हैं.
एनआर/एए (एएफपी, एपी)