ऑस्ट्रेलिया में ऑफिस के बाद काम ना करने पर बहस
ऑस्ट्रेलिया में इस बात पर जोरदार बहस जारी है कि कर्मचारियों को दफ्तर के बाद ऑफिस से जुड़े फोन या ईमेल का जवाब ना देने का अधिकार मिलना चाहिए.
ऑस्ट्रेलिया में इस बात पर जोरदार बहस जारी है कि कर्मचारियों को दफ्तर के बाद ऑफिस से जुड़े फोन या ईमेल का जवाब ना देने का अधिकार मिलना चाहिए.ऑस्ट्रेलिया में एक संसदीय समिति ने ऐसे कानून के मसौदे को मंजूरी दे दी है, जिसमें कर्मचारियों को ‘राइट टु डिसकनेक्ट' यानी दफ्तर के समय के बाद किसी तरह का संपर्क ना किए जाने का अधिकार देने की बात कही गई है.
पिछले हफ्ते सेनेट की समिति ने देश के फेयर वर्क ऐक्ट में संशोधन करने की सिफारिश की है. समिति ने कहा कि ‘राइट टु डिस्कनेक्ट काम के लिए उपलब्ध होने से जुड़ी उम्मीदों को स्पष्ट करने' का समर्थन करता है. केंद्र सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह इन सिफारिशों को लागू कर सकती है.
केंद्रीय सत्ताधारी गठबंधन में साझेदार ग्रीन्स पार्टी की सांसद बार्बरा पोकोक इस अधिकार के लिए मुहिम चला रही हैं. संसदीय समिति की सिफारिश का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा, "इससे कर्मचारियों को काम के घंटों के बाहर (अपने अधिकारियों के) फोन और ईमेल को नजरअंदाज करने का अधिकार मिलेगा, जहां बात अतार्किक हो.”
हतोत्साहित हो रहे हैं कर्मचारी
पिछले साल ही कर्मचारियों की देखभाल और अधिकारों से जुड़े मामलों संबंधी संसदीय समिति ने इस मामले का संज्ञान लिया था कि कर्मचारियों से काम के घंटों के बाद भी काम करने की उम्मीदों में लगातार वृद्धि हो रही है.
सिडनी यूनिवर्सिटी के बिजनस स्कूल में एसोसिएट प्रोफेसर क्रिस एफ. राइट कहते हैं कि स्मार्ट फोन ने मैनेजरों के लिए कर्मचारियों से किसी भी वक्त संपर्क करना आसान बना दिया है.
राइट कहते हैं, "कोविड महामारी के दौरान दफ्तर के बाहर से काम करने का जो बदलाव आया है, उसने काम और निजी जिंदगी के बीच के अंतर को मिटाने में बड़ी भूमिका निभाई है.”
2022 में सेंटर फॉर फ्यूचर वर्क नामक संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि सर्वेक्षण में शामिल 71 फीसदी कर्मचारियों ने कहा कि उन्होंने अपने प्रबंधकों के दबाव या काम की अधिकता के कारण काम के घंटों के अतिरिक्त भी काम किया.
इस कारण करीब एक तिहाई कर्मचारियों में तनाव, थकान और एंग्जाइटी जैसी समस्याएं पैदा हुईं. करीब एक चौथाई ने कहा कि उनके संबंधों और निजी जिंदगी पर असर पड़ा, जबकि करीब 20 फीसदी कर्मचारियों ने कहा कि इस वजह से उनका काम करने का उत्साह कम हुआ और उससे मिलने वाली संतुष्टि भी घटी.
ऑस्ट्रेलियाई संसद की तरफ से हुई जांच में काम के घंटों के बाहर काम करने के मामलों की जांच में पाया कि इस वजह से ना सिर्फ मानसिक और शारीरिक सेहत प्रभावित हुई बल्कि कर्मचारियों की उत्पादकता और कंपनियों के व्यापार पर भी असर पड़ा. इसका असर इस रूप में भी सामने आया कि कर्मचारियों ने बिना पैसे अतिरिक्त काम किया.
काम कराया तो जुर्माना
संसदीय समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि ‘राइट टु डिस्कनेक्ट' कर्मचारियों के लिए न्यायसंगत होगा क्योंकि वे अपने काम के घंटों को लेकर ज्यादा सुनिश्चित होंगे.
यूरोप, एशिया, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के कई देशों में पहले ही ऐसे कानून अमल में आ चुके हैं, जहां कर्मचारियों को काम के घंटों के अतिरिक्त काम ना करने का अधिकार दिया गया है.
फिलहाल ऑस्ट्रेलिया में कम से कम 56 ऐसी संस्थाएं हैं जिन्होंने अपने कर्मचारियों का ऐसे अधिकार दिए हैं. इनमें शिक्षक, पुलिस अफसर और कुछ बैंक व वित्तीय संस्थान शामिल हैं.
ऑस्ट्रेलिया के ओद्यौगिक संबंधों से जुड़े विभाग के मंत्री टोनी बर्क कहते हैं कि यह अधिकार एक ऐसी कानूनी रूप-रेखा उपलब्ध करवा सकता है जिसमें प्रबंधक कर्मचारियों से ‘जरूरी वजहों से ही' संपर्क करेंगे, मसलन, यह पूछने के लिए कि क्या वे किसी और कर्मचारी के स्थान पर काम करने को उपलब्ध हैं.
बर्क ने कहा कि अगर कोई नियोक्ता अपने कर्मचारियों के गैरवाजिब कारणों से काम के घंटों के बाहर बिना वेतन लिए काम करने की उम्मीद रखता है तो कानून के तहत कर्मचारियों के अधिकारों की निगरानी करने वाली संस्थाओं को ऐसे अधिकार दिए जा सकेंगे कि वे उस नियोक्ता के खिलाफ कार्रवाई कर सकें और जरूरत पड़ने पर जुर्माना भी लगा सकें.
विरोध भी है
वैसे, उद्योग संगठन इस कानून को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. समिति के साथ बैठक में ऑस्ट्रेलियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (ACCI) ने कहा कि ऐसा अधिकार "फायदेमंद कम होगा और कर्मचारियों के लिए भी इसके नुकसान ज्यादा होंगे.”
उनका कहना है कि ऐसा कानून लागू होने पर प्रबंधक कर्मचारियों की काम करने की ज्यादा सुविधाएं देने की मांगों पर कम लचीला रुख अपनाएंगे.
एसीसीआई के प्रमुख एंड्रयू मैकैलर ने तो इस अधिकार की तुलना ‘बनाना रिपब्लिक' से कर दी. उन्होंने कहा, "राइट टु डिसकनेक्ट ऑस्ट्रेलिया के बनाना रिपब्लिक बनने की दिशा में आखिरी कदम होगा.” बनाना रिपब्लिक ऐसे देश को कहा जाता है, जहां कोई कानून-व्यवस्था नहीं होती.
राइट कहते हैं कि नियोक्ताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब स्मार्टफोन नहीं थे, तब कर्मचारियों को ऐसा अधिकार अपने आप मिला हुआ था. एक लेख में उन्होंने कहा, "तकनीक ने दफ्तर और घर के बीच की सीमाओं को पाट दिया है, इसलिए ऐसी सुरक्षा का स्पष्ट तौर पर मिलना जरूरी हो गया है.”