नई दिल्ली, 23 दिसंबर भारत का निर्यात भले ही वित्त वर्ष 2021-22 में 422 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर को छू गया हो, लेकिन प्रमुख पश्चिमी बाजारों में ‘मंदी’ और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भू-राजनीतिक संकट की छाया अगले साल यानी 2023 में देश के निर्यात को प्रभावित कर सकती है।
राजनीतिक स्थिरता, माल की आवाजाही, कंटेनरों और शिपिंग लाइनों की पर्याप्त उपलब्धता, मांग, स्थिर मुद्रा और सुचारू बैंकिंग प्रणाली जैसे सभी वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाले कारक अब बिखर रहे हैं।
संकट को बढ़ाते हुए, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे देशों में कोविड महामारी के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं।
इससे पहले कि कोविड-प्रभावित वैश्विक अर्थव्यवस्था संकट से बाहर आ पाती, फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रकोप ने दुनियाभर में आपूर्ति श्रृंखला को गंभीर रूप से बाधित कर दिया और वैश्विक वस्तुओं की कीमतों को बढ़ा दिया। युद्ध ने महत्वपूर्ण काला सागर मार्ग से माल की आवाजाही को भी प्रभावित किया।
बिगड़ती भू-राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2023 में वैश्विक व्यापार में केवल एक प्रतिशत की वृद्धि होगी।
जिनेवा स्थित बहुपक्षीय व्यापार निकाय ने कहा है कि विश्व व्यापार में वर्ष 2022 की दूसरी छमाही में गति कम होने और वर्ष 2023 में कमजोर रहने की उम्मीद है, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कई झटके लगे हैं।
इसने कहा, “डब्ल्यूटीओ के अर्थशास्त्री अब भविष्यवाणी करते हैं कि वर्ष 2022 में वैश्विक व्यापारिक व्यापार की मात्रा 3.5 प्रतिशत बढ़ेगी – जो अप्रैल में तीन प्रतिशत पूर्वानुमान से थोड़ा बेहतर है। हालांकि, वर्ष 2023 के लिए वे एक प्रतिशत की ही वृद्धि होने की उम्मीद व्यक्त करते हैं – जो 3.4 प्रतिशत के पिछले अनुमान से काफी कम है।’’
जानकारों के मुताबिक, इन घटनाक्रमों के बीच भारत के लिए खुद को इन काली घटाओं से बचाना मुश्किल होगा।
हालांकि, उन्होंने कहा कि भारत ने अबतक वस्तुओं निर्यात में वृद्धि हासिल की है और सेवाओं के निर्यात में भी अच्छी वृद्धि से भी 2023 में देश से निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी।
वर्ष 2021-22 में सेवा क्षेत्र का निर्यात भी 254 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर को छू गया और उद्योग के विशेषज्ञों के अनुसार, यह इस वित्त वर्ष में 300 अरब डॉलर के स्तर को छू सकता है। इस साल जुलाई, अगस्त और सितंबर में निर्यात क्रमश: 2.14 प्रतिशत, 1.62 प्रतिशत और 4.82 प्रतिशत बढ़ा।
अक्टूबर में इसमें 12.12 प्रतिशत की कमी आई और नवंबर में निर्यात वृद्धि सपाट रही। अप्रैल-नवंबर 2022 के दौरान निर्यात 11 प्रतिशत बढ़कर 295.26 अरब डॉलर हो गया, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 265.77 अरब डॉलर था।
हालांकि, चालू वित्त वर्ष के पहले आठ माह की अवधि के दौरान आयात 29.5 प्रतिशत बढ़कर 493.61 अरब डॉलर का हो गया। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान यह 381.17 अरब डॉलर था।
मंत्रालय के अनुसार, व्यापारिक निर्यात में गिरावट के कारणों में कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कोविड महामारी का प्रसार और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मंदी और उसके परिणामस्वरूप मांग में आई गिरावट तथा घरेलू मुद्रास्फीति को रोकने के लिए किये गये कुछ उपाय शामिल हैं।
भारत के लिए बड़ी समस्या व्यापार घाटे (आयात और निर्यात के बीच का अंतर) का बढ़ना होगा, जिसका रुपये के मूल्य और चालू खाते के घाटे (कैड) पर असर पड़ता है।
डेलॉयट इंडिया के अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि वैश्विक व्यापार की स्थिति को देखते हुए भारत के निर्यात में कमी आने की आशंका है। हालांकि, डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आंशिक रूप से इस प्रभाव को कम कर सकती है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि वर्ष 2023 में वैश्विक व्यापार में एक प्रतिशत की गिरावट का भारतीय निर्यात पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
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