स्विट्जरलैंड ने खारिज किए महिलाओं पर अनिवार्य सेवा और अति अमीरों पर कर के प्रस्ताव
स्विट्जरलैंड ने महिलाओं पर अनिवार्य सैन्य सेवा और अमीरों पर जलवायु कर लगाने के प्रस्ताव खारिज कर दिए हैं.
स्विट्जरलैंड ने महिलाओं पर अनिवार्य सैन्य सेवा और अमीरों पर जलवायु कर लगाने के प्रस्ताव खारिज कर दिए हैं. यह एक ऐतिहासिक रेफेरेंडम था.इस रविवार स्विट्जरलैंड ने अपने मतदाताओं के सामने दो बड़े और ऐतिहासिक प्रस्ताव रखे थे. पहला प्रस्ताव यह था कि पुरुषों की तरह महिलाओं को भी अनिवार्य रूप से सैन्य या नागरिक सेवा करनी होगी, यानी ‘सिटिजन सर्विस इनिशिएटिव'. दूसरा प्रस्ताव सुपर-रिच यानी अत्यंत अमीर लोगों पर जलवायु कर लगाने का था, ताकि इसके जरिए पर्यावरण संरक्षण के लिए फंड जुटाया जा सके.
मतदान बंद होने के बाद शुरुआती अनुमानों के अनुसार, दोनों प्रस्तावों को भारी मतों से खारिज कर दिया गया है. स्विट्जरलैंड के राष्ट्रीय मीडिया एसएसआर ने बताया कि नागरिक सेवा की योजना को लगभग 84 प्रतिशत मतदाताओं ने रिजेक्ट किया, जबकि सुपर-रिच पर कर लगाने वाले प्रस्ताव को 79 प्रतिशत ने खारिज किया. यूरोप में सुरक्षा चिंताओं और ऊर्जा संकट के बीच यह वोटिंग इसलिए भी अहम मानी जा रही थी क्योंकि इसके समर्थकों का कहना था कि इससे सिर्फ सेना की ताकत नहीं बढ़ेगी, बल्कि समाज में एकता और सामाजिक जुड़ाव भी मजबूत होंगे.
नागरिक सेवा और समाज की मजबूती का तर्क
‘सिटिजन सर्विस इनिशिएटिव' के समर्थक मानते हैं कि सभी नागरिकों को देश की सेवा में शामिल करना समाज में असली समानता और सामाजिक जुड़ाव को बढ़ाएगा. कमेटी की प्रमुख नोएमी रोतेन ने एएफपी से कहा, "यह पहल ‘सच्ची समानता' के लिए है. पुरुष और महिला दोनों को सेवा का मौका मिलेगा और इससे समाज में एकता बढ़ेगी.” उन्होंने वर्तमान प्रणाली को भेदभावपूर्ण बताते हुए कहा, "यह सिर्फ पुरुषों के लिए है, लेकिन महिलाओं को इससे बाहर रखा गया है, जिससे वे उस अनुभव और नेटवर्क से वंचित रह जाती हैं जो सेवा के दौरान मिलता है."
समर्थकों का कहना है कि यह पहल सिर्फ फौज बढ़ाने के लिए नहीं है, बल्कि समाज को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश है. उन्होंने कहा, "सभी युवाओं के लिए एक राष्ट्रीय सेवा का प्रस्ताव रखकर, यह पहल ठीक उसी जरूरत को पूरा करती है जिसकी आज हमें जरूरत है कि हर कोई एक मजबूत स्विट्जरलैंड के लिए काम करने की जिम्मेदारी ले, जो किसी भी संकट का सामना करने में सक्षम हो.” अभी तक महिलाएं अपनी मर्जी से सेना में जा सकती हैं, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है.
समानता के नाम पर महिलाओं पर दोहरी मार
स्विस सरकार और संसद ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करने की अपील की थी. उनका तर्क मुख्य रूप से आर्थिक और व्यावहारिक था. सरकार का कहना था कि सेना और नागरिक सुरक्षा (सिविल डिफेंस) के पास पहले से ही पर्याप्त कर्मचारी हैं और जरूरत से ज्यादा लोगों की भर्ती करने का कोई मतलब नहीं है. इसके अलावा, हजारों युवाओं को वर्कफोर्स (कामकाजी दुनिया) से निकालकर अनिवार्य सेवा में लगाने से देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है.
सरकार ने लैंगिक समानता के मुद्दे पर भी एक तर्क दिया था. सरकार ने कहा कि भले ही महिलाओं के लिए अनिवार्य सैन्य सेवा को "लैंगिक समानता की दिशा में एक कदम" के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन असलियत कुछ और है. सरकार ने अपनी बात रखते हुए कहा, "यह विचार कई महिलाओं पर एक अतिरिक्त बोझ डालेगा, जो पहले से ही बच्चों और परिवारों की देखभाल और घर के कामों का एक बड़ा हिस्सा बिना किसी वेतन के निभा रही हैं.” सरकार ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "चूंकि कार्यस्थल और समाज में समानता अभी भी एक हकीकत नहीं बनी है, इसलिए महिलाओं को नागरिक सेवा करने के लिए मजबूर करना समानता के लिहाज से कोई प्रगति नहीं मानी जाएगी.”
अत्यंत अमीर लोगों पर टैक्स का प्रस्ताव भी खारिज
दूसरे प्रस्ताव के तहत अमीर लोगों पर 50 प्रतिशत विरासत कर लगाने की बात थी, जो 50 मिलियन स्विस फ्रैंक से अधिक संपत्ति वाले घरानों को प्रभावित करता. इसे युवा सोशलिस्ट पार्टी ने "अमीरों पर कर लगाओ, जलवायु बचाओ" के नारे के तहत पेश किया था. समर्थकों का कहना था कि इससे सालाना 6 बिलियन स्विस फ्रैंक जुटेंगे, जिन्हें इमारतों के नवीनीकरण, अक्षय ऊर्जा और पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसी पर्यावरण सुधार पहलों में लगाया जा सकेगा.
लेकिन विरोधियों ने चेतावनी दी कि अमीर लोग कर से बचने के लिए देश छोड़ सकते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था कमजोर हो सकती है. लिबरल पार्टी की सांसद योहाना गापानी ने आरटीएस मीडिया हाउस से कहा, "जनता ने समझा कि विरासत का 50 प्रतिशत लेना कर नहीं, बल्कि राज्य द्वारा डकैती है.” ग्रीन्स की सांसद क्लेरेंस शॉलेट ने कहा, "यह जलवायु सुरक्षा के लिए बुरी खबर है.”
मतदान से हुई राय साफ
मतदान परिणाम ने साफ कर दिया कि स्विट्जरलैंड की जनता फिलहाल बड़े बदलाव के लिए तैयार नहीं है. हालांकि, नोएमी रोतेन ने एसएसआर से कहा, "नागरिक सेवा का विचार आज की वोटिंग से खत्म नहीं हुआ. यह जारी रहेगा और आने वाले दशकों में सफलता पाएगा.उन्होंने आगे कहा कि जैसे महिलाओं को वोट देने का अधिकार पहली बार 1959 में खारिज हुआ था और 1971 में पास हुआ, वैसा ही बड़े सामाजिक बदलावों के लिए समय लग सकता है.