नयी दिल्ली, 25 मई उच्चतम न्यायालय ने सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए 1957 से 2006 के बीच दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं बुनियादी ढांचा विकास निगम (डीएसआईआईडीसी) और दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) द्वारा किये गये भूमि अधिग्रहण को बरकरार रखा है।
दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी के नियोजित विकास के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू की थी। ऐसी अधिग्रहण प्रक्रियाओं के लाभार्थी डीडीए, डीएसआईआईडीसी और डीएमआरसी जैसी विभिन्न राज्य संस्थाएं थीं, जिन्हें आवास योजनाओं, औद्योगिक क्षेत्रों, फ्लाईओवर और दिल्ली मेट्रो जैसी विभिन्न परियोजनाओं के लिए भूमि की आवश्यकता थी।
शीर्ष अदालत ने कहा, "तदनुसार, 1957-2006 की लंबी अवधि में, इन जमीनों को प्राप्त करने के लिए 1894 अधिनियम की धारा चार और छह के तहत विभिन्न अधिसूचनाएं जारी की गईं और 1894 अधिनियम की धारा 11 के तहत मुआवजा तय करते हुए आदेश पारित किए गए।"
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 17 मई को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें ‘‘भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013’’ की धारा 24(2) के संदर्भ में अधिग्रहण की कार्यवाही को समाप्त घोषित कर दिया था।
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सैकड़ों अपील दायर की गई थीं।
पीठ ने अपने 113 पेज के फैसले में कहा, "ऐसी सभी दीवानी अपीलों को तदनुसार अनुमति दी जाती है और प्रत्येक मामले में उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द किया जाता है और 1894 के संबंधित अधिनियम के तहत प्रतिवादियों की भूमि के अधिग्रहण को बरकरार रखा जाता है।"
यह आदेश न्यायालय की वेबसाइट पर शुक्रवार को अपलोड किया गया है।
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