देश की खबरें | मुश्किल दौर में सोशल मीडिया का दिखा असर: बाबा का ढाबा के मालिक के आंसू मुस्कान में बदले
एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

नयी दिल्ली, आठ अक्टूबर दिल्ली के मालवीय नगर में छोटे से ढाबे ‘बाबा का ढाबा’ का नजारा सोशल मीडिया के असर के कारण अब बिल्कुल बदल गया है क्योंकि एक दिन पहले तक जहां इस जगह पर सन्नाटा पसरा था, आज वहां ग्राहकों की भीड़ लगी है। इस सुखद बदलाव का पता ढाबे के मालिक कांता प्रसाद के बिना दांतों वाले मुंह की मुस्कान से भी चलता है जो वह बार बार अपना मास्क उतार कर प्रकट करते हैं।

बृहस्पतिवार को 80 वर्षीय कांता प्रसाद और उनके परिवार के लिए सब कुछ बदल गया जो कोरोना महामारी के कारण उपजे हालात के चलते पाई-पाई का मोहताज था। सोशल मीडिया पर पोस्ट कांता प्रासाद की एक तस्वीर ने जादू कर दिया जिसमें वह लॉकडाउन के महीने में अपनी व्यथा को बताते हुए रो पड़े थे। इस वीडियो को उपयोगकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर साझा किया। इसके बाद ग्राहकों की कतार लग गई जिसमे कैमरा दल, ब्लॉगर, पत्रकार भी शामिल थे।

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दिल्ली के मालवीय नगर में बाबा का ढाबा एक छोटा सा ढाबा है जिसने सभी का ध्यान आकर्षित किया है और कई हस्तियों ने भी लोगों से इस ढाबे पर खाने की अपील की।

सोशल मीडिया पर मार्मिक वीडियो आने के एक दिन बाद ट्विटर पर हैशटैग बाबा का ढाबा ट्रेंड करने लगा और इतने ग्राहक पहुंच गए जितने उन्होंने 30 साल के कारोबार में नहीं देखे थे।

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कांता प्रसाद के बेटे 37 वर्षीय आजाद हिंद ने बताया, ‘‘रोज की तरह मेरे माता-पिता ने सुबह छह बजे खाना बनाना शुरू किया और जब वे सुबह साढ़े आठ बजे ढाबे पर पहुंचे तो देखा कि बाहर लोग कतार लगा कर खडे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘शुरुआती घंटों में हमने केवल पराठा बेचा और बाद में अन्य व्यंजन बनाए। दोपहर 12 बजे तक मेन्यु में शामिल रोटी, चावल, मिक्स सब्जी और पनीर जिसकी कीमत 10 से 15 रुपये के बीच थी, सब बिक गई। यह उनके लिए आश्चर्यजनक और स्तब्ध करने वाली घटना है। ’’

गौरतलब है कि प्रसाद अपनी पत्नी के साथ 1990 से यह ढाबा चला रहे हैं लेकिन लॉकडाउन और उसके बाद के हफ्तों में काम ठप पड़ गया। दंपति द्वारा बनाया गया अधिकतर खाना बिना बिके ही रहा जाता था।

उनकी पीड़ा तब सामने आई जब इंस्टाग्राम इनफ्यूएंसर गौरव वासन ने प्रसाद के दर्द का वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया।

सोशल मीडिया पर वीडियो आने के बाद रातोरात इस वृद्ध दंपति की मदद के लिए देश भर में मदद के लिए एकतरह से आंदोलन शुरू हो गया।

दंपति की जिंदगी और मुश्किल इसलिए भी हो गई थी क्योंकि उनके बेटे आजाद की भी ऑफिस ब्वॉय की नौकरी चली गई थी।

आजाद ने कहा, ‘‘ढाबे से होने वाली आय हमारे गुजारे के लिए एक मात्र साधन थी।’’

परिवार में प्रसाद और उनकी पत्नी के अलावा तीन बच्चे, दो पोता-पोती और बहू है।

कोरोना वायरस महामारी से पहले प्रसाद लगभग हर महीने चार से पांच हजार रुपये की बचत कर लेते थे, लेकिन मार्च में लागू लॉकडाउन की वजह से जमापूंजी भी खर्च हो गई।

प्रसाद ने कहा कि कई ऐसे दिन भी थे जब एक भी ग्राहक नहीं आया।

शेख शराय में जगदम्बा कैंप में परिवार के साथ रहने वाले प्रसाद ने कहा, ‘‘हमने महसूस किया कि घर में बैठने का कोई तुक नहीं है, इसलिए हम रोजाना ढाबा खोलते। कुछ दिन ग्राहक आए और इसलिए हम जो भी पैसे कमाते वह बहुत महत्वपूर्ण होता। कई बार खाना बनाने के लिए जरूरी पैसा भी नहीं कमा पाए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘आज लोगों ने खाना खरीद कर ही मदद नहीं की बल्कि राशन से भी मदद की। ’’

वासन, जिन्होंने अपने इंस्टाग्राम हैंडल से वीडियो पोस्ट किया था, ने कहा कि वह शहर के कम चर्चित खाने-पीने की दुकानों को देखते हैं लेकिन कभी कल्पना नहीं की थी कि उनका पोस्ट इतना आकर्षण पैदा करेगा।

वासन ने कहा, ‘‘मैं खुश हूं कि मैंने उनकी मदद के लिए पहला कदम उठाया। मैंने महसूस किया कि वे अच्छा खाना बनाते हैं... केवल कमी मार्केटिंग की है और मैंने सोचा कि मैं सोशल मीडिया पर अपने ‘फॉलोअर’ (अनुकरण करने वाले) का इस्तेमाल इसमें कर सकता हूं। इसने इतना समर्थन पैदा किया, मैं आगे भी अन्य ढाबों पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखूंगा जिन्हें इस समय जरूरत है।’’ बता दें कि वासन के इंस्टाग्राम पर करीब 1,15,000 फॉलोअर हैं।

बाबा का ढाबा पर सबसे पहले पहुंचने वालों में आम आदमी पार्टी के विधायक सोमनाथ भारती भी थे।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘ मैं बाबा का ढाबा गया और वादे के मुताबिक उनके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए काम किया। मैं उनकी देखभाल करूंगा और मैं ऐसे ही लोगों की मदद के लिए अभियान शुरू कर रहा हूं।’’

सुनील शेट्टी, रणदीप हुड्डा और रवीना टंडन जैसे बॉलीवुड सितारों ने भी इस वीडियो को रीट्वीट कर लोगों से दंपति और अन्य रेहड़ी पटरी वालों की मदद करने की अपील की थी जो कोविड-19 महामारी के दौरान चुनौती का सामना कर रहे हैं।

इस अभियान को मिले समर्थन से छोटे दुकानदारों और रेहड़ी पटरी वालों में उम्मीद जगी है।

मालवीय नगर बाजार में फुटपाथ पर तौलिया और रूमाल बेचने वाली 70 वर्षीय विधवा राज रानी ने कहा कि वह मुश्किल से रोजाना 60 रुपये कमाती है।

बेगमपुरा की रहने वाली रानी ने कहा, ‘‘ मेरा कोई परिवार नहीं है...पति की 20 साल पहले मौत हो गई थी। तब से मैं यह दुकान लगा रही हूं। पहले तो गुजारा करने लायक कमा लेती थी, लेकिन अभी कुछ नहीं है। क्या मेरी कोई मदद कर सकता है ?’’

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