विदेश की खबरें | अंतरिक्ष में वर्चस्व की लड़ाई के बजाय बेहतर भविष्य के लिए साथ काम करें प्रतिद्वंद्वी देश

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विदेश की खबरें | अंतरिक्ष में वर्चस्व की लड़ाई के बजाय बेहतर भविष्य के लिए साथ काम करें प्रतिद्वंद्वी देश
श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

कैनबरा, 11 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) हाल के वर्षों में अमेरिका और चीन के बीच “अंतरिक्ष में एक नयी होड़” देखने को मिल रही है।

अमेरिका में नवंबर में प्रस्तावित राष्ट्रपति चुनाव के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले सप्ताहांत एक चुनावी रैली में यह कहते हुए इस प्रतिद्वंद्विता को बल दिया कि अमेरिका “अंतरिक्ष में दुनिया का नेतृत्व करेगा।” ट्रंप की डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी कमला हैरिस भी कुछ ऐसी ही टिप्पणी कर चुकी हैं।

वहीं, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा है कि “अंतरिक्ष महाशक्ति बनना हमारा शाश्वत सपना है।” लेकिन इस ताजा “होड़” के मायने क्या हैं? और क्या समान लक्ष्य तक पहुंचने के कई रास्ते मौजूद हैं? इतिहास गवाह है कि ऐसे रास्ते मौजूद हैं। एक अंतरिक्ष विशेषज्ञ के तौर पर मैं कहूंगा कि हमारा भविष्य वर्चस्व की इस लड़ाई पर निर्भर करेगा।

चंद्रमा पर पहुंचने की होड़

-चंद्र अभियान “अंतरिक्ष में वर्चस्व की लड़ाई” का पर्याय बन गए हैं। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच चंद्रमा पर “पहले दस्तक” देने की होड़ मची थी। जानकार इस प्रतिस्पर्धा को पृथ्वी पर राजनीतिक, तकनीकी, सैन्य और वैचारिक प्रभुत्व स्थापित करने की रणनीतिक कोशिश मानते थे।

भू-राजनीतिक तनाव पृथ्वी को फिर अस्थिर कर रहे हैं। अमेरिका और चीन अलग-अलग अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं, जिनका मकसद चंद्रमा पर मनुष्य को भेजना है। वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देना इन अभियानों का मुख्य उद्देश्य बताया जा रहा है। लेकिन अंतरिक्ष में उपलब्ध संसाधनों पर कब्जे और आर्थिक विस्तारवाद की योजना भी ऐसे अभियानों को गति दे रही है।

‍अंतरिक्ष में यह नयी “होड़” नये संघर्ष को भी जन्म दे सकती है, खासतौर पर प्रमुख लैंडिंग स्थलों और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को लेकर, जहां दुर्लभ एवं बेशकीमती संसाधन मौजूद होने की संभावना जताई गई है।

चंद्रमा पर मौजूद बर्फ को एकत्र कर ऑक्सीजन, पेयजल और रॉकेट ईंधन का उत्पादन किया जा सकता है। ये तीनों ही चीजें चंद्र अभियानों के संचालन के लिए जरूरी हैं। चंद्रमा पर कई दुर्लभ धातु भी हो सकती हैं, जिनका इस्तेमाल प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में होता है। वहां गैर-रेडियोधर्मी दुर्लभ आइसोटोप ‘हीलियम-3’ भी मौजूद हो सकता है, जो परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में सहायक है।

अंतरिक्ष में मौजूद संसाधनों पर कब्जे की होड़ देशों और निजी अंतरिक्ष कंपनियों के बीच चिंताजनक व्यापार युद्ध का सबब बन सकती है। अमेरिका लंबे अरसे से अंतरिक्ष में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन, निवेश और साझेदारी कर रहा है। अब चीन भी इस दिशा में रफ्तार पकड़ रहा है। अमेरिका ने जहां इस साल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार कदम रखा, वहीं, चीन कई बार यह उपलब्धि हासिल कर चुका है। जून 2024 में चीन का ‘चांग-6’ यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से पत्थर और मिट्टी के पहले नमूने लेकर लौटा।

अन्य देशों से साझेदारी की कोशिश

-चंद्रमा को लेकर अपने सपने को साकार करने के लिए अमेरिका और चीन दोनों ने ही अन्य देशों को साझेदारी की पेशकश की है। डॉमिनिक गणराज्य इस हफ्ते अमेरिका के नेतृत्व वाले नासा के आर्टेमिस समझौते का 44वां हस्ताक्षरकर्ता बन गया।

वहीं, रूस और चीन के बीच सहयोग से तैयार किए जा रहे अंतरराष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन (आईएलआरएस) से 13 अन्य देश जुड़ गए हैं। सेनेगल पिछले महीने इस परियोजना का हिस्सा बना।

दोनों पहल के सदस्य देश अलग-अलग हैं, जिससे पता चलता है कि नये “अंतरिक्ष गुट” उभर रहे हैं।

आर्टेमिस समझौता और आईएलआरएस अभी कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन दोनों 21वीं सदी में अंतरिक्ष में दबदबे का स्वरूप तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल को लेकर संयुक्त राष्ट्र की समिति (सीओपीयूओएस, 1959 में स्थापित) की संधि बनाने की प्रक्रिया अंतरिक्ष के नवीनतम घटनाक्रम और नये खिलाड़ियों की योजनाओं के अनुरूप आगे नहीं बढ़ रही है। इसके अलावा, अंतरिक्ष में बस्तियां बसाने और उपग्रहों से होने वाले प्रकाश प्रदूषण जैसे नैतिक सवालों को भी प्रभावी ढंग से नहीं संबोधित किया जा रहा है।

हम एक अहम मोड़ पर खड़े हैं। लिहाजा यह महत्वपूर्ण है कि इन नये “अंतरिक्ष गुटों” का उभार अंतरिक्ष में दबदबा दिखाने की होड़ में न तब्दील हो। अगर ऐसा हुआ तो इससे न सिर्फ चंद्रमा की सतह पर संघर्ष का खतरा बढ़ेगा, बल्कि पृथ्वी पर भी भू-राजनीतिक अस्थिरता और सैन्य प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा।

अतीत में साथ मिलकर काम किया

-भू-राजनीतिक तनाव के दौरान अंतरिक्ष में प्रतिद्वंद्वी महाशक्तियों के बीच सहयोग देखने को मिला है। शीत युद्ध काल में अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ ने अंतरिक्ष प्रशासन, कानून, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर एक-दूसरे का सहयोग किया। इससे आपसी विश्वास कायम हुआ और तनाव में कमी आई।

सीओपीयूओएस में भी सदस्य देशों ने 1967 की बाह्य अंतरिक्ष संधि पर सहमति बनाने के लिए मिलकर काम किया। यह संधि अंतरिक्ष में परमाणु हथियार तैनात करने और चंद्रमा जैसे खगोलीय पिंडों पर राष्ट्रीय विनियोग के दावे जताने पर रोक लगाती है।

चंद्रमा पर देशों ने कभी संयुक्त “लैंडिंग” नहीं की। लेकिन जुलाई 1975 में अपोलो (अमेरिका) और सोयुज (सोवियत संघ) यान अंतरिक्ष की कक्षा में एक दूसरे से जुड़े। इसी के साथ अंतरिक्ष में पहली बार दो मानवयुक्त अभियानों के बीच साझेदारी हुई। यह ऐतिहासिक उपलब्धि तकनीकी सहयोग और कूटनीति के जरिये हासिल की जा सकी।

हाल के वर्षों में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की मदद से विभिन्न देश अपने अंतरिक्ष अभियानों का संचालन कर रहे हैं। अमेरिका, रूस और अन्य देशों के अंतरिक्ष यात्रियों ने ‘माइक्रोग्रैविटी’ (सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण बल) में 3,000 से ज्यादा प्रयोग किए हैं।

संयुक्त राष्ट्र के भविष्य का शिखर सम्मेलन-2024 में आईएसएस और चीन के तियांगॉन्ग अंतरिक्ष स्टेशन पर तैनात अंतरिक्ष यात्रियों का वीडियो संदेश प्रसारित किया गया, जिसमें उन्हें अंतरराष्ट्रीय सहयोग और अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल पर जोर देते हुए सुना गया।

बयानबाजी नहीं, सहयोग की जरूरत

-वैश्विक महाशक्तियां अगर अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल में एक-दूसरे का सहयोग नहीं करेंगी, तो मानवता बहुत कुछ गंवा देगी। पृथ्वी के संघर्ष के अंतरिक्ष में पहुंचने और तेज होने का वास्तविक खतरा मौजूद है। इससे पृथ्वी पर तनाव बढ़ना लाजिमी है।

अमेरिका और चीन को आर्टेमिस समझौते तथा आईएलआरएस को लेकर बातचीत के अवसर तलाशने की जरूरत है। उनकी अलग-अलग नियोजित गतिविधियों, संचालन सिद्धांतों और दिशा-निर्देशों में पहले से ही कुछ समानताएं हैं।

इसे संभव बनाने के लिए अमेरिका को 2011 के वुल्फ संशोधन पर फिर से विचार करना होगा। यह कानून नासा को कांग्रेस (अमेरिकी संसद) की मंजूरी के बिना चीन के साथ सहयोग करने के लिए अपने वित्त का इस्तेमाल करने से रोकता है। लेकिन चीन के सामने ऐसी कोई बाधा नहीं है। उसने अंतरिक्ष क्षेत्र में साझेदारी की मंशा जाहिर की है, जिसमें चंद्रमा से लाए गए पत्थर और मिट्टी के नमूनों को साझा करना शामिल है।

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