मुंबई के सत्र न्यायालय ने कथित रूप से देह व्यापार में शामिल होने के कारण एचआईवी (HIV) संक्रमित महिला (Woman) को हिरासत में रखने के मजिस्ट्रेट के आदेश को बरकरार रखते कहा कि रिहा करने से बहुत संभव है कि समाज पर खतरा पैदा हो. महिला के वकील के मुताबिक उनकी मुवक्किल अभिनेत्री है और उसका पिता पुलिसकर्मी है. सत्र न्यायालय ने इस महीने की शुरुआत में मजिस्ट्रेट के फैसले को बरकरार रखा था लेकिन अब विस्तृत जानकारी सामने आई है.
इससे पहले मझगांव मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (Mazagon Metropolitan Magistrate) की अदालत ने महिला को हिरासत में रखने का निर्देश दिया था साथ ही उसका उल्लेख पीड़िता के तौर पर किया था जिसे पुलिस ने कथित तौर पर देह व्यापार में संलिप्त होते रंगे हाथ पकड़ा था। मजिस्ट्रेट अदालत ने महिला को अनैतिक व्यापार (निषेध) अधिनियम की धारा-17(4) के तहत दो साल तक हिरासत में रखने का निर्देश दिया था. यह भी पढ़े: Man Hides HIV Positive Status Before Marriage: शख्स ने पत्नी से छुपाई एचआईवी संक्रमित होने की बात, कोर्ट ने रद्द कर दी शादी
अनैतिक व्यापार (निषेध) अधिनियम की धारा-17(4) के मुताबिक मजिस्ट्रेट विशेष देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले व्यक्ति को संरक्षण गृह या हिरासत में भेजने का आदेश दे सकता है.
महिला ने इस फैसले के खिलाफ डिंडोशी सत्र अदालत में अपील की थी। वकील के जरिये दायर याचिका में उसने दावा किया था कि मजिस्ट्रेट के फैसले में त्रृटि है। महिला के मुताबिक उसके पिता उसका खर्च उठा सकते हैं और परिवार के अन्य सदस्य वित्तीय रूप से सबल हैं.
महिला के वकील ने तर्क दिया कि गलतफहमी और उनके मुवक्किल को एचआईवी पॉजिटिव होने की वजह से हिरासत में रखा गया है।उन्होंने अभियोजन के महिला के रंगे हाथ पकड़े जाने के दावे का भी खंडन किया. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एसयू बाघेले ने कहा कि अपीलकर्ता ने कहा है कि वह देह व्यापार में शामिल नहीं है और प्राथमिकी से भी प्रथमदृष्टया पता चलता है इसलिए उसे पीड़िता माना गया है.
उन्होंने कहा, ‘‘ इसमें कोई शक नहीं है कि पीड़िता एचआईवी संक्रमित है और यौन संबंध के जरिये आसानी से बीमारी का प्रसार हो सकता हैं, जो बड़े पैमाने पर लोगों को पीडित बना सकता है और बहुत संभव है कि इससे समाज पर खतरा पैदा हो.
अदालत ने कहा कि पीड़िता को हिरासत में रखकर उसकी देखभाल और सुरक्षा की जा सकती हैं जैसा कि मजिस्ट्रेट ने निर्देश दिया है, ताकि पीड़िता भविष्य में सामान्य जिंदगी बिता सके. अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट का आदेश ‘ सही और वैध’ है और इसमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है.
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