मुंबई, छह जुलाई एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज ने अपने वकील के जरिए बंबई उच्च न्यायालय को बताया कि 2018 में उनकी गिरफ्तारी के बाद जिस न्यायाधीश ने उन्हें हिरासत में भेज दिया था उन्होंने एक विशेष न्यायाधीश होने का ‘दिखावा’ किया था और उनके द्वारा जारी किए गए आदेश के कारण उन्हें और अन्य आरोपियों को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा।
भारद्वाज की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील युग चौधरी ने न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति एनजे जामदार की पीठ के समक्ष याचिका पर अंतिम दलीलें दीं।
बहरहाल, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने उच्च न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे में भारद्वाज की जमानत याचिका को खारिज करने का अनुरोध करते हुए कहा कि वह एक के बाद एक जमानत अर्जी दाखिल करने की ‘होड़’ में हैं। केंद्रीय जांच एजेंसी ने कहा कि भारद्वाज की याचिका विचार योग्य नहीं है और उनपर इसके लिए जुर्माना लगाने का अनुरोध किया।
चौधरी ने उच्च न्यायालय को बताया कि पुणे में एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के डी वडाने ने भारद्वाज और आठ अन्य कार्यकर्ताओं को 2018 में पुणे पुलिस की हिरासत में भेज दिया था। वडाने ने बाद में मामले में आरोपपत्र दाखिल करने के लिए पुणे पुलिस को समय का विस्तार देते हुए आरोपपत्र का संज्ञान लिया और अक्टूबर 2018 में भारद्वाज और तीन अन्य सह-आरोपियों को जमानत देने से इनकार कर दिया।
चौधरी ने उच्च न्यायालय को बताया कि उपरोक्त सभी कार्यवाही पर आदेश पारित करते हुए, वडाने ने ‘‘विशेष यूएपीए न्यायाधीश’’ होने का दावा किया था और विशेष यूएपीए न्यायाधीश के रूप में आदेशों पर हस्ताक्षर किए थे। चौधरी ने कहा कि उनके पास महाराष्ट्र सरकार और उच्च न्यायालय द्वारा भारद्वाज के सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत पूछे गए सवालों के जवाब हैं, जिसमें कहा गया है कि वडाने को कभी भी किसी कानूनी प्रावधान के तहत विशेष न्यायाधीश के रूप में नामित नहीं किया गया था।
भारद्वाज ने अपनी याचिका में न्यायाधीश वडाने द्वारा आरोपपत्र दाखिल करने और प्रक्रिया जारी करने के लिए समय बढ़ाने के आदेश को रद्द करने का भी अनुरोध किया है।
एनआईए ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता (भारद्वाज) जमानत प्राप्त करने के उद्देश्य से याचिका दाखिल करने की होड़ में हैं।’’ जांच एजेंसी ने कहा, ‘‘उन्हें 28 अगस्त 2018 को गिरफ्तार किया गया था और उसके तुरंत बाद उन्होंने पांच अक्टूबर 2018 को जमानत अर्जी दाखिल की थी। उन्हें 27 अक्टूबर, 2018 को हिरासत में लिया गया था। इसके अलावा वह अब तक तीन और जमानत याचिकाएं दाखिल कर चुकी हैं।’’ साथ ही कहा कि उपरोक्त सभी याचिकाएं विभिन्न अदालतों द्वारा खारिज हो चुकी है।
चौधरी ने पीठ को बताया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के अनुसार गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत अपराध अनुसूचित अपराध हैं। सीआरपीसी के अनुसार, राज्य पुलिस को मामले की जांच जारी रखने की अनुमति है, जब तक कि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) कार्यभार नहीं संभाल लेता।
चौधरी ने कहा, ‘‘रिकॉर्ड बताते हैं कि एडीजे वडाने ने विशेष न्यायाधीश होने का दिखावा किया। यदि हमारा तर्क प्रथम दृष्टया सही है, तो जमानत खारिज करने, समय बढ़ाने, आरोपपत्र स्वीकार करने के उनके आदेश कानून में गलत होंगे।’’
एनआईए ने अपने जवाब में कहा कि चूंकि उसने जनवरी 2020 में ही मामले को अपने हाथ में ले लिया था, तब तक पुणे पुलिस मामले की जांच कर रही थी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि चौधरी द्वारा अदालत में पेश किए गए आरटीआई जवाबों पर वह संदेह नहीं जता रहा, लेकिन वह न्यायाधीश वडाने के खिलाफ दावों को स्वतंत्र रूप से सत्यापित करना चाहता है। इसके बाद पीठ ने उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को वडाने की नियुक्ति, पद आदि पर मूल रिकॉर्ड पीठ के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया।
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि चूंकि राज्य अब तक जवाब दाखिल करने में विफल रहा है, इसलिए उसे अब कोई जवाब दाखिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। हालांकि, अगर राज्य चाहे तो वडाने की नियुक्ति पर मूल रिकॉर्ड पेश कर सकता है। उच्च न्यायालय के आठ जुलाई को भारद्वाज की याचिका पर दलीलों की सुनवाई जारी रखने की संभावना है।
न्यायाधीश वडाने के आदेशों से प्रभावित अन्य कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस, वरवर राव, अरुण फरेरा, सुधीर धवले, रोना विल्सन, शोमा सेन, महेश राउत और सुरेंद्र गाडलिंग हैं। गाडलिंग ने भी जमानत के लिए याचिका दाखिल की है।
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