पुजारी को भू-स्वामी नहीं माना जा सकता , देवता ही मंदिर से जुड़ी भूमि के मालिक: न्यायालय
सुप्रीम कोर्ट (Photo Credits: IANS)

नयी दिल्ली, सात सितंबर : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने कहा है कि मंदिर के पुजारी को भू-स्वामी नहीं माना जा सकता और देवता ही मंदिर से जुड़ी भूमि के मालिक हैं. न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की एक पीठ ने कहा कि ‘पुजारी’ केवल मंदिर की सम्पत्ति के प्रबंधन के उद्देश्य से भूमि से जुड़े काम कर सकता है. शीर्ष अदातल ने सोमवार को कहा, ‘‘ स्वामित्व स्तंभ में केवल देवता का नाम ही लिखा जाए, चूंकि देवता एक न्यायिक व्यक्ति होने के कारण भूमि का स्वामी होता है. भूमि पर देवता का ही कब्जा होता है, जिसके काम देवता की ओर से सेवक या प्रबंधकों द्वारा किए जाते हैं. इसलिए, प्रबंधक या पुजारी के नाम का जिक्र स्वामित्व स्तंभ में करने की आवश्यकता नहीं है.’’

पीठ ने कहा कि इस मामले में कानून स्पष्ट है कि पुजारी काश्तकार मौरुशी, (खेती में काश्तकार) या सरकारी पट्टेदार या मौफी भूमि (राजस्व के भुगतान से छूट वाली भूमि) का एक साधारण किरायेदार नहीं है, बल्कि उसे औकाफ विभाग ('देवस्थान से संबंधित) की ओर से ऐसी भूमि के केवल प्रबंधन के उद्देश्य से रख जाता है. पीठ ने कहा, ‘‘ पुजारी केवल देवता की सम्पत्ति का प्रबंधन करने की एक गैरंटी है और यदि पुजारी अपने कार्य करने में, जैसे प्रार्थना करने तथा भूमि का प्रबंधन करने संबंधी काम में विफल रहे तो इसे बदला भी जा सकता है. इस प्रकार उन्हें भूमिस्वामी नहीं माना जा सकता.’’ यह भी पढ़ें : COVID-19 Third Wave: मुंबई की मेयर किशोरी पेडनेकर ने लोगों से की अपील, कोरोना की तीसरी लहर को लेकर कही ये बात

शीर्ष अदालत मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस आदेश में न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा ‘एमपी लॉ रेवेन्यू कोड’ 1959 के तहत जारी किए गए दो परिपत्रों को रद्द कर दिया था. इन परिपत्रों में पुजारी के नाम राजस्व रिकॉर्ड से हटाने का आदेश दिया गया था, ताकि मंदिर की सम्पत्तियों को पुजारियों द्वारा अनधिकृत बिक्री से बचाया जा सके.