देश की खबरें | कठोर जनसंख्या नियंत्रण कानून की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए शीर्ष अदालत में याचिका
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर केंद्र को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए एक सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की संभावना का पता लगाया जाए।
नयी दिल्ली, 15 जून उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर केंद्र को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए एक सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की संभावना का पता लगाया जाए।
आध्यात्मिक वक्ता देवकीनंदन ठाकुर द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि नागरिकों के मूल अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह सभी समस्याओं का मूल कारण है।
अधिवक्ता आशुतोष दुबे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘अर्थव्यवस्था पर जनसंख्या विस्फोट के खतरों और इसके प्रभावों पर अक्सर चर्चा की जाती है, लेकिन महिलाओं पर बार-बार प्रसव के प्रभाव को शायद ही कभी घरों के बाहर उजागर किया जाता है।’’
याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 21-21ए के तहत स्वच्छ हवा, पेयजल, स्वास्थ्य और आजीविका का अधिकार सभी नागरिकों को प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण के बिना सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है।
याचिका में भारत के विधि आयोग को विकसित देशों के जनसंख्या नियंत्रण कानूनों और जनसंख्या नियंत्रण नीतियों की पड़ताल करने तथा मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए उपाय सुझाने के निर्देश देने की भी मांग की गई है।
केंद्र ने एक अन्य याचिका में पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि भारत अपने नागरिकों को परिवार नियोजन के लिए मजबूर करने के खिलाफ है और एक निश्चित संख्या में बच्चे पैदा करने के लिए किसी भी तरह का दबाव प्रतिगामी और जनसांख्यिकीय विकृतियों की ओर ले जाना वाला होगा।
शीर्ष अदालत में दायर एक हलफनामे में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि देश में परिवार कल्याण कार्यक्रम स्वैच्छिक प्रकृति का है, जो जोड़ों को अपनी इच्छा से अपने परिवार के आकार का फैसला करने और उनके अनुसार परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाने में सक्षम बनाता है।
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