देश में कोविड-19 से संक्रमित व्यक्तियों की पहचान के लिये सामूहिक जांच के लिये न्यायालय में याचिका

याचिका में दावा किया गया है कि भारत में कोविड-19 की जांच की दर दुनिया भर के देशों की तुलना में सबसे कम है जबकि पिछले कुछ दिनों में इस संक्रमण से प्रभावित व्यक्तियों की संख्या में जबर्दस्त इजाफा हुआ है।इससे पता चलता है कि यह शायद बानगी ही है और हम इसकी गंभीर स्थिति को लेकर बेपरवाह है।

यह याचिका तीन वकीलों और कानून के एक छात्र ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि इस वायरस के संक्रमण की कड़ी को तोड़ने के लिये जरूरी है कि इससे प्रभावित व्यक्तियों का पता लगाने , उनकी पहचान करने, उन्हें अलग थलग करने और उनका उपचार करने के लिये सामूहिक जांच की प्रक्रिया अपनायी जाये।

याचिका के अनुसार यह कदम प्राथमिकता के आधार पर उठाया जाना चाहिए और सबसे पहले उन राज्यों और शहरों में सामूहिक जांच शुरू की जानी चाहिए जहां इस महामारी से प्रभावित व्यक्तियों की संख्या बहुत ज्यादा है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह का कदम उठाकर ही कोरोना वायरस महामारी को पूरे देश में फैसले से रोकने में मदद मिलेगी। इस तरह के कदम नहीं उठाने का मतलब कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई आग से खेलने जैसी ही हो जायेगी।

याचिका में कहा गया है कि सात अप्रैल की स्थिति के अनुसार भारत में प्रति दस लाख व्यक्तियों मे करीब 82 व्यक्तियो की जांच हो रही है जबकि विश्व स्वास्थ संगठन ने इस महामारी पर अंकुश पाने के लिये जांच कराने और इसके महत्व को इंगित किया है।

याचिका में कोरोनावायरस से निबटने के लिये प्रधान मंत्री राहत कोष, पीम-केयर्स और मुख्यमंत्री राहत कोष में आया धन राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष और राज्य आपदा मोचन कोष में स्थानांतरिक करने का केन्द्र और राज्य सरकारों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

याचिका के अनुसार इस कोष का उपयोग कोविड महामारी से निबटने और जांच किट, वेंटिलेटर, वैयक्तिक सुरक्षा उपकरण खरीदने और संक्रमण से प्रभावित होने वाले संदिग्ध व्यक्तियों को अलग रखने और उनकी देखरेख वाले केन्द्र स्थापित करने के लिये हो सकता है।

अनूप

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