देश की खबरें | अग्रिम जमानत याचिका लंबित रहने से निचली अदालतों के उद्घोषणा आदेश देने पर कोई रोक नहीं: न्यायालय
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नयी दिल्ली, 14 मार्च उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि अग्रिम जमानत याचिका के लंबित रहने से निचली अदालत द्वारा उद्घोषणा नोटिस जारी करने और किसी फरार आरोपी की संपत्तियों की कुर्की का आदेश देने पर रोक नहीं है।
अग्रिम जमानत देने की शक्ति को ‘‘विशेष शक्ति’’ बताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि कई मामलों में यह माना गया है कि जमानत एक नियम है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि ‘‘अग्रिम जमानत एक नियम है।’’
न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि अग्रिम जमानत देने का सवाल प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर अदालत के सतर्क और विवेकपूर्ण निर्णय पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘उक्त शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए संबंधित अदालत को बहुत सतर्क रहना होगा क्योंकि गंभीर मामलों में आरोपियों को अंतरिम राहत या संरक्षण देने से न्याय में बाधा आ सकती है और जांच में सबूतों से छेड़छाड़ की भी स्थिति पैदा हो सकती है।’’
शीर्ष अदालत ने पटना उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 1999 के विभिन्न प्रावधानों के तहत अपराधों के लिए दर्ज प्राथमिकी के संबंध में अपीलकर्ताओं द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था।
पीठ ने कहा, ‘‘निश्चित रूप से यह न्याय के हित में असाधारण मामलों में गिरफ्तारी से पूर्व जमानत देने की अदालत की शक्ति से वंचित नहीं करेगा। लेकिन, लगातार आदेशों की अवहेलना करने और फरार रहने वाले व्यक्ति इस तरह की राहत के हकदार नहीं हैं।’’
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यह स्पष्ट किया जाता है कि किसी अंतरिम आदेश के अभाव में अग्रिम जमानत के लिए याचिका के लंबित रहने से निचली अदालतों को उद्घोषणा के लिए कदम उठाने, आगे बढ़ने और कानून के अनुसार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 83 के तहत कदम उठाने पर रोक नहीं है।’’
सीआरपीसी की धारा 83 फरार आरोपियों की संपत्ति की कुर्की से संबंधित है।
पीठ ने कहा, ‘‘हम पहले ही व्यवस्था दे चुके हैं कि अग्रिम जमानत देने की शक्ति एक असाधारण शक्ति है। कई मामलों में यह कहा गया है कि जमानत एक नियम है, लेकिन किसी भी तरह से यह नहीं कहा जा सकता कि अग्रिम जमानत नियम है।’’
अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता का आचरण उसे अग्रिम जमानत का लाभ लेने का हकदार नहीं बनाता है।
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