नयी दिल्ली, 15 जनवरी मलेशिया एक्सचेंज में गिरावट के कारण देश के तेल-तिलहन बाजार में बुधवार को अधिकांश देशी तेल-तिलहन (सरसों तेल-तिलहन, मूंगफली तेल, सोयाबीन तेल, कच्चा पामतेल या सीपीओ एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल) के दाम टूट गये और हानि दर्शाते बंद हुए। जबकि खलों के दाम में आये सुधार के बीच मूंगफली तिलहन तथा सोयाबीन तिलहन के दाम पूर्वस्तर पर बने रहे।
मलेशिया एक्सचेंज में गिरावट थी, जबकि शिकॉगो एक्सचेंज में सुधार का रुख है।
बाजार सूत्रों ने कहा कि अगले महीने सरसों की नई फसल मंडियों में आने की संभावना को देखते हुए सरसों तेल-तिलहन में गिरावट आई है। सरसों में इस बार कोई प्रतिकूल स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि हाफेड और नाफेड जैसी सहकारी संस्थाओं ने काफी नियंत्रित ढंग से सरसों के स्टॉक को बाजार में जारी किया।
सूत्रों ने कहा कि मूंगफली और बिनौला खल के दाम में हाल के दिनों में सुधार देखने को मिला है। सभी राज्यों में इन खलों के दाम में 15-20 रुपये क्विंटल का सुधार आया है जिसकी वजह से इन तिलहनों के खाद्य तेल के दाम टूटे हैं जो मूंगफली तेल और बिनौला तेल में आई गिरावट का मुख्य कारण है।
उन्होंने कहा कि सोयाबीन डीगम तेल के आयात की लागत 102 रुपये किलो के बराबर बैठती है लेकिन पैसे की दिक्कत की वजह से आयातक बंदरगाहों पर इस तेल को लगभग 97 रुपये किलो के भाव बेच रहे हैं। इस कम दाम पर बिकवाली की वजह से सोयाबीन तेल कीमत में गिरावट है।
उन्होंने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में गिरावट के अलावा ऊंचे भाव पर लिवाल नहीं मिलने से सीपीओ और पामोलीन तेल के दाम भी टूटते नजर आये। इन तेलों के सिर्फ भाव ऊंचा बोले जा रहे हैं, वास्तव में लिवालों की पर्याप्त कमी है।
सूत्रों ने कहा कि वर्ष 2017-18 में कपास का उत्पादन लगभग 370 लाख गांठ का हुआ था जो इस वर्ष (2024-25) में घटकर लगभग 295 लाख गांठ रह गया है। हर साल कपास की मांग बढ़ रही है तो इस कमी को कहां से पूरा किया जा रहा है? पिछले कई वर्षों से देखा जा रहा है कि कपास फसल आने के समय वायदा कारोबार में कपास से प्राप्त होने वाले बिनौला खल के दाम तोड़ दिये जाते हैं और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर कपास बेचना पड़ता है। जब तक किसानों को उनकी उपज का लाभकारी दाम नहीं मिलेगा, कपास उत्पादन घटता रह सकता है। नकली बिनौला के कारोबार पर प्रतिबंध लगाने के बारे में सरकार को विशेष प्रयत्न करना चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि हमारे यहां के तेल विशेषज्ञ एवं समीक्षकों द्वारा मलेशिया में पाम, पामोलीन तेल के दाम में उठा-पटक और एवं आयात शुल्क के बारे में चिंता जताना उचित हो सकता है पर उन्हें इस बात पर भी विचार करना चाहिये कि उनकी चिंता केवल खाद्य तेलों की महंगाई को लेकर ही क्यों है? क्या उन्हें इस बात पर चिंता नहीं करनी चाहिये कि खल के दाम बढ़ते ही दूध के दाम बढ़ा दिये जाते हैं और कुछ समय पहले जब बिनौला खल के दाम टूट रहे थे तो भी दूध के दाम क्यों बढ़ रहे थे? इन विसंगतियों की ओर ध्यान दिये बगैर तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ाना असंभव है।
उन्होंने कहा कि यह गलतफहमी बनायी गई है कि खाद्य तेल के दाम में मामूली वृद्धि से बजट बिगड़ता है क्योंकि प्रति व्यक्ति खाद्य तेल की खपत की मात्रा काफी कम है। उल्टे वर्षों से दाम में ठहराव का सामना कर रहे खाद्य तेल के दाम बढ़ाने की पहल, किसानों को तिलहन उत्पादन बढ़ाने को प्रेरित करेगा और देश के बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च में कमी आयेगी।
तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन - 6,550-6,600 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली - 5,850-6,175 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 13,850 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल - 2,105-2,405 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 13,550 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 2,300-2,400 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 2,300-2,425 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 13,500 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 13,300 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 9,650 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 12,950 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 12,100 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 14,200 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 13,300 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना - 4,400-4,450 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज- 4,100-4,200 रुपये प्रति क्विंटल।
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