लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के फैसले का मूल्यांकन करना अदालत का काम नहीं : उच्च न्यायालय

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे एक जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देते हुए कहा है कि अगर वे बिना शादी के ही साथ रहना चाहते हैं तो यह उनकी मर्जी, इस फैसले का मूल्यांकन करना अदालत का काम नहीं है.

Punjab and Haryana High Court ( photo credit : PTI )

चंडीगढ़, 8 जून : पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (Punjab and Haryana High Court) ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे एक जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देते हुए कहा है कि अगर वे बिना शादी के ही साथ रहना चाहते हैं तो यह उनकी मर्जी, इस फैसले का मूल्यांकन करना अदालत का काम नहीं है. अदालत की एकल पीठ ने पंजाब के बठिंडा के 17 साल की एक लड़की और 20 साल के लड़के की याचिका पर यह आदेश दिया. इस जोड़े ने अपनी जान की सुरक्षा और परिवार के सदस्यों से आजादी के लिए अनुरोध किया था. अदालत ने कहा कि उत्तरी भारत में खासकर हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में ‘ऑनर किलिंग’ की घटनाएं होती रहती हैं और कहा कि ऐसे जोड़े की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राज्य की है.

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि लड़की के अभिभावक उसकी शादी कहीं और कराना चाहते थे क्योंकि उन्हें दोनों के संबंधों का पता चल गया था. लड़की अपने अभिभावक के घर से निकल गयी और अपने जीवनसाथी के साथ रहने लगी. विवाह योग्य उम्र नहीं होने के कारण उन्होंने शादी नहीं की. जोड़े ने बताया कि उन्होंने बठिंडा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से सुरक्षा प्रदान करने का अनुरोध किया लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. इस संबंध में पंजाब के सहायक महाधिवक्ता ने अदालत को सूचित किया कि जोड़े की शादी नहीं हुई है और वे लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. आगे उन्होंने कहा कि हाल में कुछ पीठों ने ऐसे मामलों को खारिज कर दिया जहां ऐसे रिश्तों में रह रहे जोड़े ने सुरक्षा मुहैया कराने का अनुरोध किया था. न्यायमूर्ति संत प्रकाश ने तीन जून के अपने आदेश में लिखा, ‘‘अगर किसी ने शादी के बिना ही साथ रहने का फैसला किया है तो ऐसे लोगों को सुरक्षा प्रदान करने से इनकार करना न्याय का मखौल होगा और ऐसे लोगों को उन लोगों से गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं, जिनसे उनकी सुरक्षा की जरूरत है.’’ यह भी पढ़ें : यूपी के चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना बोले- प्रदेश में साप्ताहिक बंदी रहेगी जारी, कोरोना रिकवरी रेट बढ़कर 97.9% हुआ

न्यायाधीश ने कहा ऐसी स्थिति में अगर सुरक्षा से मना किया जाता है तो अदालत भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को जीवन और आजादी के अधिकार और कानून के शासन को बनाए रखने में अपना कर्तव्य निभाने में नाकाम होंगी. न्यायमूर्ति प्रकाश ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ताओं ने बिना शादी के ही साथ रहने का फैसला किया और उनके फैसले का मूल्यांकन करना अदालत का काम नहीं है.’’ न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अगर याचिकाकर्ताओं ने कोई अपराध नहीं किया तो इस अदालत को सुरक्षा मंजूर करने के उनके अनुरोध को अस्वीकार करने की कोई वजह नहीं है. इसलिए लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने से मना करने वाली पीठ के दृष्टिकोण के अनुरूप यह अदालत वहीं नजरिया अपनाने के पक्ष में नहीं है.’’

अदालत ने बठिंडा के एसएसपी को याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा मुहैया कराने का निर्देश दिया. इससे पूर्व लिव-इन रिश्ते में रह रहे जोड़े को लेकर अलग-अलग पीठों ने अलग-अलग फैसले दिए थे. न्यायमूर्ति एच एस मदान की एकल पीठ ने सुरक्षा मुहैया कराने का अनुरोध करने वाले पंजाब के एक जोड़े की याचिका को खारिज करते हुए 11 मई के अपने आदेश में कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप नैतिक और सामाजिक तौर पर स्वीकार्य नहीं है. वहीं, उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल ने 18 मई के अपने आदेश में हरियाणा के एक जोड़े को सुरक्षा प्रदान करते हुए कहा था कि ऐसे रिश्तों को सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ रही है.

Share Now

\