नयी दिल्ली, नौ अगस्त दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह सरसों तेल की मांग निकलने और लॉकडाउन के दौरान इसकी खपत बढ़ने से सरसों दाना के अलावा बिनौला तेल के भाव में पर्याप्त सुधार दर्ज हुआ।
इसके विपरीत मांग होने के बावजूद विदेशों में जमा भारी स्टॉक और अगली पैदावार बढ़ने की संभावनाओं के बीच आयातित पाम तेल और पामोलीन में गिरावट का रुख देखने को मिला।
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सहकारी संस्था नाफेड और हाफेड ने देशी सरसों उत्पादक किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए मंडियों में सस्ते दाम में सरसों की बिक्री कम कर दी है। लॉकडाउन के दौरान इस तेल की घरेलू मांग बढ़ने से सरसों दाना की कीमत में पिछले सप्ताह के मुकाबले 180 रुपये का सुधार आया।
सूत्रों ने बताया कि देश में खाद्य तेल की कमी को देखते हुए देशी खाद्य तेल में सस्ते आयातित तेल की ब्लेंडिंग की छूट है। तेल उद्योग इस छूट का लाभ उठाते हुए सरसों, मूंगफली जैसे व्यापक उपयोग वाले देशी तेलों की बहुत कम मात्रा में, पाम तेल, सोयाबीन डीगम जैसे सस्ते आयातित तेलों की भारी मात्रा में मिलावट (ब्लेंडिंग) करते हैं। ऐसा होने से सरसों तेल (लगभग 110 रुपये किलो) की कीमत पर पाम तेल जैसे सस्ते आयातित तेल (लगभग 75 रुपये किलो) को सरसों तेल के भाव बेच दिया जाता है। इससे आयातित विदेशी तेल तो बाजार में आसानी से खप जाते हैं, लेकिन उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होता है। साथ ही सस्ते आयातित तेल के मुकाबले देशी तेल-तिलहनों को बाजार में खपाना मुश्किल हो जाता है।
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सूत्रों ने कहा कि इस बार किसानों को सरसों फसल के लिए अच्छी कीमत मिली है तथा नाफेड और हाफेड जैसी सहकारी एजेंसियां भी बहुत समझदारी के साथ कम मात्रा में सरसों की बिकवाली कर रही हैं क्योंकि सरसों की अगली फसल आने में लगभग आठ महीने हैं। ग्राहकों के पास सरसों का कोई विकल्प भी नहीं और स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण वे सरसों तेल को अधिक तरजीह देने लगे हैं। इस बार सरसों किसानों के अनुकूल सरकारी रुख को देखते हुए सरसों के अगली फसल लगभग दोगुनी हो सकती है, बशर्ते कि सरसों के साथ देशी तेलों में ‘ब्लेंडिंग’ को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया जाये।
उन्होंने कहा कि सरकार को तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक नीतिगत पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सस्ते आयात को नियंत्रित करने और बैंकों के पैसों के साथ खिलवाड़ रोकने और बाजार में भाव तोड़ने वाले आयातकों पर अंकुश लगाना चाहिए। इसके लिए आयात शुल्क में भारी वृद्धि जरूरी है। ऐसे आयातकों में 75-80 प्रतिशत बैंकों का पैसा डुबाने में लगे हैं।
सूत्रों ने कहा कि देशी तेल का उपयोग बढ़ाने से महंगाई बढ़ने की चिंता गैर-वाजिब है बल्कि इसके कई फायदे होंगे। एक तो स्थानीय तेल मिलें पूरी क्षमता से काम करेंगी, देशी तेलों की बाजार में खपत बढ़ेगी, किसानों को फायदा होगा और उन्हें अच्छी कीमत के इंतजार में स्टॉक नहीं बचाना होगा, तेल मिलों के चलने से रोजगार बढ़ेंगे, तेल आयात पर खर्च की जाने वाली विदेशी मुद्रा बचेगी, उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की देखभाल होगी और दवा का खर्च बचेगा। उन्होंने कहा कि इन उपायों से उलटे महंगाई और कम हो सकती है।
गुजरात में किसानों और सहकारी संस्था नाफेड के पास सूरजमुखी, मूंगफली, सरसों और सोयाबीन का पिछले साल का भारी स्टॉक बचा है। एक- दो महीने में इसकी नयी पैदावार बाजार में आ जायेगी और इस बार भी बम्पर पैदावार होने की संभावना है। वायदा कारोबार में सोयाबीन दाना, मूंगफली के भाव कम बोले जा रहे हैं और किसानों को अपनी उपज को औने-पौने दाम पर बेचना पड़ता है।
लॉकडाउन के दौरान लोगों के घरों में अधिकांश समय रहने से सरसों तेल और विशेषकर सरसों कच्ची घानी तेल की खपत बढ़ी है। बाजार में घरेलू मांग बढ़ने और मंडियों में आवक कम होने से समीक्षाधीन सप्ताहांत में सरसों दाना (तिलहन फसल) के भाव 180 रुपये के सुधार के साथ 5,150-5,200 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। सरसों दादरी की कीमत 10,400 रुपये प्रति क्विन्टल के पूर्वस्तर पर बंद हुई। कारोबारी उतार-चढ़ाव के बीच सरसों पक्की और कच्ची घानी तेलों की कीमतें पांच-पांच रुपये की मामूली हानि के साथ लगभग पूर्वस्तर के आसपास बंद हुईं। इनके भाव क्रमश: 1,615-1,755 रुपये और 1,725-1,845 रुपये प्रति टिन पर बंद हुए।
देश में सस्ते आयातित तेलों के मुकाबले मूंगफली की बाजार मांग प्रभावित होने और औने-पौने दाम पर सौदों के कटान से मूंगफली दाना (तिलहन फसल) और मूंगफली गुजरात की कीमत में क्रमश: 35 रुपये और 180 रुपये प्रति क्विन्टल तथा मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल कीमत में 15 रुपये प्रति टिन की गिरावट आई और इनके भाव क्रमश: 4,600-4,650 रुपये, 12,000 रुपये और 1,800-1,860 रुपये रहे।
किसानों के पास पहले के बचे स्टॉक, आगामी पैदावार बम्पर रहने की उम्मीद और सस्ते विदेशी तेलों के आगे मांग न होने से सोयाबीन दिल्ली के भाव अपरिवर्तित रहे जबकि और सोयाबीन इंदौर तेल 20 रुपये के मामूली सुधार के साथ 9,120 रुपये क्विन्टल हो गया। आयातकों द्वारा बेपरता कारोबार करने की वजह से सोयाबीन डीगम के भाव में 100 रुपये प्रति क्विन्टल की हानि दर्ज हुई और यह 8,250 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ। सस्ते आयात के कारण स्थानीय मांग कमजोर रहने से सोयाबीन दाना और लूज (तिलहन फसल) के भाव क्रमश: पांच-पांच रुपये की हानि के साथ क्रमश: 3,620-3,645 रुपये और 3,355-3,420 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए।
लॉकडाउन में ढील के बाद देश में सस्ते तेल की मांग बढ़ने के बावजूद मलेशिया और इंडोनेशिया में पाम व पामोलीन का भारी स्टॉक जमा होने तथा आगामी पैदावार बढ़ने की संभावना के कारण कच्चे पाम तेल (सीपीओ) और पामोलीन आरबीडी दिल्ली की कीमतें पिछले सप्ताहांत के मुकाबले क्रमश: 150 रुपये और 50 रुपये की हानि के साथ क्रमश: 7,350 - 7,400 रुपये तथा 8,850 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुईं जबकि पामोलीन तेल कांडला की कीमत 50 रुपये की हानि दर्शाती 8,100 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुई।
स्थानीय मांग के कारण बिनौला तेल की कीमत 50 रुपये का सुधार दर्शाती 8,250 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुई।
राजेश
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