अंटार्कटिक के नीचे छिपे हैं पहाड़, घाटियां और नदियां

वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक की बर्फ के नीचे छिपे एक विशाल भूभाग का पता लगाया है जिसमें पहाड़ और घाटियां हैं जिन्हें प्राचीन नदियों ने तराशा था.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक की बर्फ के नीचे छिपे एक विशाल भूभाग का पता लगाया है जिसमें पहाड़ और घाटियां हैं जिन्हें प्राचीन नदियों ने तराशा था. ये इलाका करोड़ों सालों से बर्फ के नीचे ढका हुआ है.यह भूभाग आकार में बेल्जियम से बड़ा है और करीब 3.4 करोड़ साल तक बिल्कुल अनछुआ रहा है. हालांकि अब इंसानी गतिविधियों के कारण हो रहे ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इसके सामने आने का खतरा पैदा हो गया है. ब्रिटेन और अमेरिकी रिसर्चरों ने इसके ऊपर मौजूद बर्फ के पिघलने की वजह से यह चेतावनी दी है.

दुरहम यूनिवर्सिटी के ग्लेशियोलॉजिस्ट स्टीवर्ड जेमीसन का कहना है, "यह बिल्कुल अनदेखी जमीन है, अब तक किसी की नजर इस पर नहीं पड़ी. दिलचस्प यह है कि यह नजरों के सामने रह कर भी छिपी रही." इसका पता लगाने के लिए रिसर्चरों ने नए आंकड़ों का नहीं बल्कि नए तरीकों का इस्तेमाल किया. जेमीसन के मुताबिक पूर्वी अंटार्कटकि की बर्फ की चादर के नीचे छिपे इस इलाके के बारे में हम जितना जानते हैं उससे कहीं ज्यादा जानकारी दुनिया को मंगल ग्रह की सतह के बारे में है.

बर्फ के नीचे कैसे हुई खोज

इसे देखने के लिए इसके ऊपर से विमान गुजार कर उसके जरिए रेडियो तरंगें बर्फ में भेजी गईं और फिर वहां से निकलने वाली गूंज का विश्लेषण किया गया. इस तकनीक को रेडियो इको साउंडिंग कहा जाता है. हालांकि आकार में यूरोप से बड़े अंटार्कटिका महाद्वीप पर यह करना एक बड़ी चुनौती होगी. इसलिए रिसर्चरों ने पहले से मौजूद सतह की सैटेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल कर उनके दो किलोमीटर नीचे तक मौजूद घाटियों और चोटियों का पता लगाया. ऊंची नीची बर्फ की सतह ने इन घाटियों और चोटियों की गहराई और ऊंचाई को पूरी तरह से ढक रखा है.

जब इन तस्वीरों को रेडियो इको साउंडिंग डाटा के साथ जोड़ कर देखा गया तो उस भूभाग की तस्वीर सामने आई जिसे नदियों ने तराशा है. यह बिल्कुल वैसी ही है जैसी कि धरती की मौजूदा सतह.

अंटार्कटिका से निकला दुनिया का सबसे बड़ा हिमखंड

जेमीसन का कहना है कि उसे देख कर ऐसा लगा जैसे किसी लंबी दूरी की विमान यात्रा के दौरान यात्री खिड़की से किसी पहाड़ी इलाकों को देख रहे हों. यह इलाका करीब 32,000 वर्ग किलोमीटर में फैला है. यहां कभी पेड़ों, जंगलों और शायद जानवरों का बसेरा था. हालांकि उसके बाद यहां बर्फ गिरी और सब कुछ हिमयुग में जम गया. इस छिपे इलाके पर सूरज की किरणें आखिरी बार कब पड़ी थीं यह सटीक तरीके से बताना मुश्किल है.

रिसर्चरों को इस बात का पक्का यकीन है कि कम से कम 1.4 करोड़ साल पहले की यह बात रही होगी. जेमीसन का कहना है कि उनका "उभार" आखिरी बार कम से कम 3.4 करोड़ साल पहले सूरज की किरणों के संपर्क में आया होगा जब अंटार्कटिका पहली बार जमा था. कुछ रिसर्चरों ने इससे पहले अंटार्कटिक की बर्फ के नीचे किसी शहर के आकार जितनी बड़ी झील का पता लगाया था. टीम को यकीन था कि कुछ और प्राचीन भूभाग हो सकते हैं जिनकी अभी खोज होनी बाकी है.

ग्लोबल वार्मिंग का खतरा

रिसर्च रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि नई खोजी गई इस जमीन को ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का खतरा बहुत ज्यादा है. नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में छपी रिपोर्ट में रिसर्चरों ने लिखा है, "हम ऐसे वातावरण की परिस्थितियों के निर्माण की तरफ जा रहे हैं जैसी कि यहां बहुत पहले थीं," 1.4-3.4 करोड़ साल पहले यहां का तापमान वर्तमान की तुलना में 3-7 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था.

जेमीसन ने इस बात पर जोर दिया है कि यह भूभाग बर्फ के किनारों के सैकड़ों किलोमीटर भीतर है तो इसके सामने आने में अभी काफी देर है. इससे पहले जब धरती गर्म हुई थी मसलन 45 लाख साल पहले प्लियोसिन युग में तब भी यह हिस्सा बाहर नहीं आया था. इसी वजह से वैज्ञानिकों को थोड़ी उम्मीद भी है. हालांकि यह अभी साफ नहीं है कि किस बिंदु पर हालात बदल जाएंगे.

इस रिसर्च से एक दिन पहले ही अंटार्कटिक के बारे में एक और रिसर्च में दावा किया गया था कि पश्चिमी अंटार्कटिक की बर्फ की पट्टियां जो पिघल रही हैं उन्हें जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के बाद भी रोका नहीं जा सकेगा.

एनआर/एए (एएफपी)

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