देश की खबरें | 50 फीसदी से अधिक स्वास्थ्यकर्मियों को अपना कार्यस्थल ‘असुरक्षित’ लगता है: अध्ययन

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. एक सर्वेक्षण में शामिल आधे से अधिक स्वास्थ्यकर्मियों को लगता है कि उनका कार्यस्थल ‘असुरक्षित’ है, खासकर राज्य और केंद्र सरकार के मेडिकल कॉलेजों में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को यही लगता है। एक अध्ययन रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

नयी दिल्ली, 20 अक्टूबर एक सर्वेक्षण में शामिल आधे से अधिक स्वास्थ्यकर्मियों को लगता है कि उनका कार्यस्थल ‘असुरक्षित’ है, खासकर राज्य और केंद्र सरकार के मेडिकल कॉलेजों में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को यही लगता है। एक अध्ययन रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज (वीएमएमसी), सफदरजंग अस्पताल और दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के विशेषज्ञों के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में भारतीय चिकित्सा संस्थानों के भीतर बुनियादी सुरक्षा ढांचे में ‘‘महत्वपूर्ण कमियों’’ को उजागर किया गया है।

‘एपिडेमियोलॉजी इंटरनेशनल’नामक पत्रिका के हाल के अंक में प्रकाशित ‘वर्कप्लेस सेफ्टी एंड सिक्योरिटी इन इंडियन हेल्थकेयर सेटिंग: ए क्रॉस-सेक्शनल सर्वे’ में चिकित्सा संस्थानों में मौजूदा सुरक्षा और संरक्षा के उपायों में सुधार की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।

यह सर्वेक्षण वीएमएमसी और सफदरजंग अस्पताल के डॉ. कार्तिक चड्ढा और डॉ. जुगल किशोर के साथ-साथ दिल्ली एम्स की डॉ. रिचा मिश्रा, डॉ. सेमंती दास, डॉ. इंद्र शेखर प्रसाद और डॉ. प्रकल्प गुप्ता का संयुक्त प्रयास है।

देश के विभिन्न चिकित्सा संस्थानों के 1,566 स्वास्थ्यकर्मियों के बीच यह सर्वेक्षण किया गया जिसमें कार्यस्थल पर सुरक्षा के विभिन्न पैमानों का आकलन किया गया।

सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वालों में 869 (55.5 प्रतिशत) महिलाएं और 697 (44.5 प्रतिशत) पुरुष शामिल थे। लगभग एक-चौथाई (24.7 प्रतिशत) स्वास्थ्यकर्मी दिल्ली से थे और उनमें से लगभग आधे रेजिडेंट डॉक्टर (49.6 प्रतिशत) थे, इसके बाद प्रशिक्षु सहित स्नातक मेडिकल छात्र (15.9 प्रतिशत) थे।

संकाय सदस्यों, चिकित्सा अधिकारियों, नर्सिंग स्टाफ और अन्य सहायक कर्मचारियों ने भी प्रतिक्रियाएं दीं।

जिन्होंने सर्वेक्षण के दौरान अपनी प्रतिक्रिया दी उनमें से अधिकांश (71.5 प्रतिशत) सरकारी मेडिकल कॉलेज में काम करते हैं। सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले आधे (49.2 प्रतिशत) स्वास्थ्यकर्मी गैर-सर्जिकल विभागों में काम करते हैं और एक तिहाई (33.8 प्रतिशत) सर्जिकल विभागों में काम करते हैं।

सर्वेक्षण करने वाली टीम में शामिल डॉ. जुगल किशोर ने बताया कि परिणामों से पता चला कि आधे से अधिक (58.2 प्रतिशत) स्वास्थ्यकर्मी कार्यस्थल पर असुरक्षित महसूस करते हैं और 78.4 प्रतिशत ने ड्यूटी के दौरान धमकी मिलने की बात कही।

लंबी अवधि की ड्यूटी या रात में काम करने के दौरान लगभग आधे स्वास्थ्यकर्मियों के पास समर्पित कक्ष नहीं है।

डॉ. किशोर ने बताया कि मौजूदा ड्यूटी कक्ष में नियमित सफाई, कीट नियंत्रण, वेंटिलेशन, और ‘एयर कंडीशनिंग’ की सुविधाएं बेहद लचर हैं।

उन्होंने बताया कि इस सर्वेक्षण के परिणाम से जाहिर है कि देशभर के स्वास्थ्य संस्थानों में मौजूदा सुरक्षा उपाय ‘‘संतोषजनक’’ नहीं है।

इसके अलावा, 70 प्रतिशत से अधिक स्वास्थ्यकर्मियों ने माना कि सुरक्षाकर्मी की संख्या पर्याप्त नहीं है और 62 प्रतिशत ने आपातकालीन अलार्म प्रणाली पर असंतोष व्यक्त किया। लगभग आधे स्वास्थ्यकर्मियों ने आईसीयू और मनोरोग वार्ड जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में बेरोकटोक आवाजाही, निगरानी और सुरक्षा में गंभीर कमियों को उजागर किया।

इतना ही नहीं, 90 प्रतिशत से अधिक संस्थानों में हथियारों या खतरनाक वस्तुओं की उचित जांच नहीं होती है, और लगभग तीन-चौथाई ने अस्पताल की सुरक्षित चहारदीवारी नहीं होने की बात कही। डॉ. किशोर ने बताया कि ये निष्कर्ष चिकित्सा संस्थानों में ‘अपर्याप्त सुरक्षा की भयावह तस्वीर’ पेश करते हैं, जो कर्मचारी और मरीज दोनों को खतरे में डाल देती है।

डॉ. किशोर ने कहा, ‘‘निजी और सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सुरक्षा को लेकर दी गई प्रतिक्रियाओं में एक बड़ा अंतर देखा गया है। वहीं राज्य सरकार के संस्थानों में सबसे अधिक असंतोष दिखा।’’

राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेजों में 63 प्रतिशत से अधिक स्वास्थ्यकर्मी सुरक्षा कर्मचारियों की संख्या को लेकर नाखुश दिखे, जहां निजी कॉलेजों की तुलना में असंतोष की संभावना चार गुना अधिक है।

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