मुंबई, 28 अक्टूबर बंबई उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले में आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि चूंकि किसी मामले में किशोर पर वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया जाता है तो इसका यह मतलब नहीं है कि उसे किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं सुरक्षा) कानून के प्रावधानों के लाभ से वंचित किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने हत्या के आरोप में बोरिवली पुलिस द्वारा 2020 में गिरफ्तार किए एक युवक को 21 अक्टूबर को जमानत दे दी। अपराध के वक्त आरोपी 17 साल का था।
आरोपी ने किशोर न्याय कानून की धारा 12 के तहत जमानत मांगी थी जिसमें कहा गया है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता के किसी भी प्रावधान के बावजूद बच्चे को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए और उसे परिवीक्षा अधिकारी या परिवार के किसी सदस्य की देखरेख में रखा जाना चाहिए।
विशेष अदालत ने उसकी जमानत याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी कि किशोर न्याय बोर्ड ने उन्हें मामले में उस पर वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया था और वह किशोर न्याय कानून के प्रावधानों का लाभ नहीं ले सकता। इसके बाद आरोपी ने उच्च न्यायालय का रुख किया था।
बहरहाल, उच्च न्यायालय ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि हालांकि, आरोपी पर वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया गया था लेकिन फिर भी वह नाबालिग था।
न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा, ‘‘उस पर वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया गया तो केवल इसलिए उसे किशोर न्याय कानून की धारा 12 के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।’’
अभियोजन के अनुसार, 12 मार्च 2020 को युवक ने अपने दोस्त के साथ मिलकर अपने ही एक साथी की हत्या कर दी थी जिसके साथ उनका विवाद हुआ था।
पुलिस ने उसकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए दलील दी कि अपराध के वक्त वह 17 साल 11 महीने और 24 दिन का था तथा अपने कृत्य के अंजाम को समझने के लिए मानसिक रूप से परिपक्व था।
न्यायमूर्ति डांगरे ने युवक के परिवीक्षा अधिकारी द्वारा सौंपी उस रिपोर्ट को भी स्वीकार किया कि पहली बार वह किसी आपराधिक कृत्य में शामिल रहा और उस समय वह मादक पदार्थ के नशे में था।
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