महाराष्ट्र सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा : मुंबई में पालघर के कर्मचारियों के लिए अस्थायी आवास की व्यवस्था नहीं
अपने आपदा प्रबंधन, राहत और पुनर्वास विभाग के माध्यम से दायर हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा कि महानगर प्रतिदिन आने-जाने वाले इस तरह के कर्मियों की ज्यादा संख्या को देखते हुए मुंबई में आवास मुहैया कराना राज्य की मशीनरी पर बोझ डालना होगा, जो कोविड-19 महामारी के कारण पहले से ही काफी बोझ तले दबी हुई है।
मुंबई, 19 मई महाराष्ट्र सरकार ने बंबई उच्च न्यायालय से मंगलवार को कहा कि कोराना वायरस महामारी और इसके कारण जारी लॉकडाउन के दौरान पड़ोसी पालघर जिले से महानगर आने वाले अग्रिम मोर्चे के कर्मियों को मुंबई में अस्थायी आवास मुहैया नहीं करा सकती।
अपने आपदा प्रबंधन, राहत और पुनर्वास विभाग के माध्यम से दायर हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा कि महानगर प्रतिदिन आने-जाने वाले इस तरह के कर्मियों की ज्यादा संख्या को देखते हुए मुंबई में आवास मुहैया कराना राज्य की मशीनरी पर बोझ डालना होगा, जो कोविड-19 महामारी के कारण पहले से ही काफी बोझ तले दबी हुई है।
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘चिकित्सा सेवा, अग्निशमन विभाग, पुलिस, आपदा प्रबंधन आदि विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों की ज्यादा संख्या को देखते हुए उन्हें व्यावहारिक रूप से मुंबई में आवास उपलब्ध कराना संभव नहीं है, और खासकर कोविड-19 के समय में।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘इन कर्मचारियों के लिए इस तरह की व्यवस्था करना पहले से ही बोझ तले दबे मशीनरी पर और बोझ डालना है, जो कोविड-19 महामारी से निजात पाने में व्यस्त है।’’
राज्य सरकार के वकील पी पी ककाडे ने 15 मई को सुनवाई के दौरान अदालत से कहा था कि आवश्यक सेवाओं में लगे ऐसे लोगों को महानगर के अंदर जगह मुहैया कराना अव्यावहारिक है।
वकील उदय वरूणजिकर के मार्फत दायर याचिका में चरण रविन्द्र भट्ट ने दावा किया कि अग्रिम मोर्चे पर तैनात कर्मी मुंबई से संक्रमित होकर अपने घर वसई-विरार आते हैं और ये लोग पालघर जिले में कोविड-19 के प्रसार का प्राथमिक कारण हैं।
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