दुनियाभर में डेढ़ गुना बढ़ीं पत्रकारों की हत्याएं
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने चेताया है कि दुनियाभर में मीडिया पर हमले हो रहे हैं. उन्होंने सभी देशों की सरकारों से आग्रह किया है कि वे सच्चाई और उसके बारे में खबरें छापने वालों को निशाना बनाना बंद करें.वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे के मौके पर अंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि 2022 में पत्रकारों की हत्याओं में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है जो अविश्वसनीय है. उन्होंने कहा कि मीडिया की आजादी लोकतंत्र और न्याय की आधारशिला है और वो अब खतरे में है.

2022 में कम से कम 67 मीडियाकर्मियों की हत्याएं हुईं. इसके अलावा डिजिटल प्लैटफॉर्म्स के सुविधाजनक इस्तेमाल ने अतिवादियों के लिए अपने झूठ को प्रचार करना और पत्रकारों को प्रताड़ित करना आसान बना दिया है. गुटेरेश ने कहा कि सच्चाई पर गलत सूचनाओं का खतरा मंडरा रहा है.

30वें "वर्ल्ड प्रेस फीडम डे" के मौक पर एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा, "दुष्प्रचार और हेट स्पीच सच्चाई और कल्पना व विज्ञान और षड्यंत्र के बीच के अंतर को धुंधला करना चाहते हैं और इससे सच खतरे में पड़ गया है.” दिसंबर 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 3 मई को वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे के रूप में स्वीकार किया था.

दुनियाभर में हालात खराब

युनेस्को ने हाल ही में एक सर्वेक्षण में पाया कि 65 देशों में विरोध प्रदर्शनों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर हमले हुए. एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक न्याय व्यवस्था को लगभग पूरी दुनिया में पत्रकारों को प्रताड़ित करने के लिए इस्तेमाल करने की घटनाएं बढ़ रही हैं. 160 देशों में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार आज भी अपराधिक कानूनों के तहत आता है.

साल 2022 में तीन देशों में सबसे अधिक पत्रकार मारे गए

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के 2023 के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक 31 देशों में स्थिति बेहद गंभीर है. 42 देशों में यह मुश्किल है और 55 देशों में समस्याग्रस्त है. 52 देश ऐसे हैं जिनमें हालात को अच्छा या संतोषजनक कहा जा सकता है. यानी हर दस में से सात देशों में हालात खराब हैं. 2023 में अब तक दुनिया में छह पत्रकारों और एक मीडियाकर्मी की हत्या हो चुकी है जबकि 568 पत्रकार जेलों में बंद हैं.

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों में भारत 161वें नंबर पर है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने अपने विश्लेषण में लिखा है कि "दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मीडिया की आजादी खतरे में है.” भारत में इस साल एक पत्रकार की हत्या की गई जबकि 10 को हिरासत में लिया गया.

आक्रामक हैं सरकारें

गुटेरेश ने कहा कि मीडिया इंडस्ट्री के ध्वस्त होने के कारण स्थानीय मीडिया संस्थान बंद हुए हैं और पत्रकारिता कुछ हाथों में सिमट गई है, जो अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरनाक है. इसके अलावा दुनियाभर में विभिन्न सरकारों द्वारा खतरनाक कानून पास किये जा रहे हैं, मसलन रूस ने 2022 में एक कानून पारित किया था जिसके तहत रूसी सेना के बारे में तथाकथित गलत सूचनाएं छापने वाले को 15 साल तक की जेल का प्रावधान है.

मार्च में रूस ने अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्टर इवान गेर्शकोविच को जासूसी का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया था. जर्नल के प्रकाशक अलमार लातूर ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है. मंगलवार को उन्होंने कहा कि वह आभारी हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन निजी तौर पर गेर्शकोविच की रिहाई की कोशिशें कर रहे हैं.

आलोचकों को कैसे चुप कराता है अडानी समूह?

महासचिव गुटेरेश ने ऑनलाइन या अन्य किसी भी तरीके से पत्रकारों को प्रताड़ित किए जाने की सख्त निंदा की और कहा कि ऐसा आमतौर पर होता है कि पत्रकारों को प्रताड़ित किया जाता है या उन्हें धमकाया जाता है अथवा हिरासत में ले लिया जाता है. उन्होंने कहा कि तीन चौथाई महिला पत्रकारों को ऑनलाइन परेशान किया गया है और एक चौथाई महिला पत्रकारों को शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है.

उन्होंने कहा, "जैसे पत्रकार सच के लिए खड़े होते हैं, वैसे ही दुनिया को उनके साथ खड़ा होना चाहिए.”

डिजिटल माध्यमों के कारण खतरा

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे के मौके पर उत्सवों की शुरुआत हुई है. इसके तहत 60 देशों में 60 से ज्यादा आयोजन किए जाएंगे, जिनका मकसद मीडिया की आजादी पर मौजूद खतरों के बारे में लोगों को जागरूक करना होगा. इन कार्यक्रमों का आयोजन करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था ‘एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन' की महानिदेशक ऑड्रे अजूले ने कहा कि डिजिटल मीडिया के आने से सूचना परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है.

अजूले ने कहा कि डिजिटल माध्यमों ने अभिव्यक्ति और सूचना प्रसार के नए रास्ते उपलब्ध करवाए हैं लेकिन वे दुष्प्रचार, घृणा और षड्यंत्रकारी सूचनाएं फैलाने वालों के लिए भी मददगार साबित हुए हैं. उन्होंने कहा, "हम एक नए दोराहे पर पहुंच गए हैं. हमारा मौजूदा रास्ता हमें जानकारियों पर आधारित सार्वजनिक बहसों से दूर ऐसी दिशा में ले जा रहा है जहां ध्रुवीकरण ज्यादा है. हमें मिलकर एक नये रास्ते की परिकल्पना करनी होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सूचनाएं लोगों की भलाई के लिए हों.”

विवेक कुमार (रॉयटर्स)