देश की खबरें | कर्नाटक चुनाव: राज्य के तटीय क्षेत्र में प्रचार अभियान में हिजाब बड़ा मुद्दा नहीं
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने का विवादास्पद मुद्दा कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए एक गंभीर विषय प्रतीत नहीं होता है।
मंगलुरु (कर्नाटक), 25 अप्रैल शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने का विवादास्पद मुद्दा कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए एक गंभीर विषय प्रतीत नहीं होता है।
उडुपी में एक गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज द्वारा कक्षाओं में हिजाब पहनकर आने पर पाबंदी लगाये जाने के बाद पिछले साल यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर छा गया था।
राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ने विवाद के तूल पकड़ने के बाद शैक्षणिक परिसरों के अंदर हिजाब पहन कर आने पर पिछले साल एक आदेश के तहत प्रतिबंध लगा दिया था। इसने कहा था कि समानता, अखंडता और कानून व्यवस्था को प्रभावित करने वाली किसी भी पोशाक को अनुमति नहीं दी जाएगी।
विद्यार्थियों को प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों और स्कूलों के लिए निर्धारित पोशाक ही पहनने का निर्देश दिया गया था।
राज्य में हिजाब पहनी कई छात्राओं को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश करने देने से इनकार किये जाने के बाद यह आदेश जारी किया गया था। इस कदम के बाद देशभर में व्यापक स्तर पर प्रदर्शन हुए थे।
कुछ मुस्लिम छात्राओं के अदालत का रुख करने के बाद कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सरकार के आदेश को कायम रखा था। इसके बाद, फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने अक्टूबर में एक विभाजित फैसला सुनाया। विषय की सुनवाई आगे एक वृहद पीठ द्वारा की जाएगी।
हिजाब विवाद के दौरान भाजपा के ‘पोस्टर ब्वॉय’ रहे यशपाल सुवर्णा अब उडुपी विधानसभा सीट से पार्टी के उम्मीदवार हैं। जब यह विवाद उत्पन्न हुआ था उस वक्त वह उडुपी गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज फॉर वुमन की विकास समिति के उपाध्यक्ष थे।
मौजूदा विधायक रघुपति भट की जगह इस सीट से पार्टी ने सुवर्णा को टिकट दिया है, जो मोगावीरा (मछुआरा समुदाय) के नेता हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं पर उनकी मजबूत पकड़ है।
सुवर्णा ने कहा कि विवाद ‘राष्ट्र विरोधी और असामाजिक तत्वों’ द्वारा पैदा किया गया, जो नहीं चाहते कि मुस्लिम लड़कियां या गरीब हिंदू विद्यार्थी शिक्षित हों।
उन्होंने दावा किया कि हिजाब मुद्दे को लेकर दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र में अशांति पैदा करने के लिए प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) जिम्मेदार है। अन्यथा, उडुपी शांतिप्रिय लोगों का स्थान है।
हालांकि, हिजाब मुद्दे को चुनाव प्रचार के दौरान जोरशोर से नहीं उठाया जा रहा है और भाजपा विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
यदि कोई पार्टी गुपचुप तरीके से हिजाब मुद्दे को चुनाव प्रचार का विषय बना रही है तो वह सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) है, जो प्रतिबंधित पीएफआई की राजनीतिक इकाई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वे इस मुद्दे के असल लाभार्थी हैं, जिसके जरिये वे मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को उद्वेलित करना चाहते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिले में 13 सीट में 12 पर भाजपा को जीत मिली थी।
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेता शरण पम्पवेल ने कहा कि हिंदुओं को सिर्फ एक पार्टी के बारे में सोचना है और वह भाजपा है। उन्होंने दावा किया कि एसडीपीआई हिजाब विवाद का फायदा उठाना चाह रही और उसके सिर्फ कट्टर कार्यकर्ता ही उसके पक्ष में जाएंगे।
सामाजिक कार्यकर्ता एमजी हेगड़े के अनुसार, पीएफआई और अन्य संबद्ध संगठनों पर प्रतिबंध लगाये जाने से एसडीपीआई पर निश्चित तौर पर असर पड़ा है। उन्होंने चुनावों पर एसडीपीआई के प्रभाव को तवज्जो नहीं देने की कोशिश की, जबकि अन्य विश्लेषकों ने कहा कि उसकी मौजूदगी अल्पसंख्यकों के मतों को विभाजित कर सकती है, जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।
मंगलुरु में कांग्रेस के उम्मीदवार यू टी खादिर ने कहा कि वे एसडीपीआई की मौजूदगी से चिंतित नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यहां मतदाता मुझे और मेरे काम को जानते हैं।’’
एसडीपीआई के महासचिव अब्दुल लतीफ पुत्तुर ने कहा, ‘‘एसडीपीआई ने उन सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं जहां पार्टी की पकड़ मजबूत है और हमारी मौजूदगी दर्ज की जाएगी।’’
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