अगर संप्रग प्रमुख की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया नहीं देता तो अपनी शपथ के साथ न्याय नहीं करता: जगदीप धनखड़
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष की न्यायपालिका के संदर्भ में टिप्पणियों पर आसन द्वारा दी गई प्रतिक्रिया को सदन की कार्यवाही से हटाने की विपक्षी कांग्रेस के सदस्यों की मांग के बीच शुक्रवार को कहा कि अगर उन्होंने प्रतिक्रिया नहीं दी होती तो वह अपनी शपथ के साथ अन्याय करते और अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करने में विफल रहते.
नयी दिल्ली, 23 दिसंबर : राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष की न्यायपालिका के संदर्भ में टिप्पणियों पर आसन द्वारा दी गई प्रतिक्रिया को सदन की कार्यवाही से हटाने की विपक्षी कांग्रेस के सदस्यों की मांग के बीच शुक्रवार को कहा कि अगर उन्होंने प्रतिक्रिया नहीं दी होती तो वह अपनी शपथ के साथ अन्याय करते और अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करने में विफल रहते. उच्च सदन में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने यह मुद्दा उठाया और तथा विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने उनकी बात का समर्थन किया. तिवारी ने कहा ‘‘अगर लोकसभा सदस्य (सोनिया गांधी) बाहर कुछ कहती हैं तो उस पर राज्यसभा में चर्चा नहीं की जानी चाहिए. अगर आसन की ओर से उस पर प्रतिक्रिया आती है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसा कभी नहीं हुआ.’’
खरगे ने कहा ‘‘ जो कुछ कहा गया है उसे कृपया कार्यवाही से निकाल दिया जाए. अगर इसे कार्यवाही से नहीं निकाला जाएगा तो यह अच्छी मिसाल पेश नहीं करेगा.’’ खरगे ने कहा कि संप्रग अध्यक्ष दूसरे सदस्य की सदस्य हैं और उच्च सदन की यह परंपरा रहीं है कि यहां अन्य सदन के सदस्य के वक्तव्य पर चर्चा नहीं की जाती है. केंद्रीय मंत्री और सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि खरगे को यह देखना चाहिए कि सदन पर, उच्च संवैधानिक प्राधिकारी पर आक्षेप लगाए गए... जिन्हें संसद के दोनों सदनों द्वारा चुना गया है और जो भारत के उपराष्ट्रपति हैं. इस मुद्दे पर कुछ अन्य सदस्यों ने भी टिप्पणियां कीं. धनखड़ ने कहा, "...टिप्पणियां उसके संबंध में थीं जो मैंने आठ दिसंबर को इस आसन से की थीं. ’’ उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को यह कहना अतिवाद की सीमा होगा कि न्यायपालिका को कमतर करने के मामले में सरकार ने राज्यसभा के सभापति और उप राष्ट्रपति को शामिल किया. यह भी पढ़ें : COVID-19: भारतीय सेना ने जारी की एडवाइजरी, जवानों को इन नियमों का करना होगा पालन
उन्होंने कहा कि यदि उन्होंने प्रतिक्रिया नहीं की होती, तो उसके काफी "अपमानजनक परिणाम" होते और इस तरह की धारणा बनाई जा रही थी कि न्यायपालिका को कमतर करने के लिए सरकार की शह पर आसन एक प्रतिकूल एवं दुरभिसंधि का पक्ष बन गया है. सभापति ने कहा कि न्यायपालिका को कमतर करने का अर्थ लोकतंत्र का गला घोंटना है. उन्होंने कहा कि इस पक्षपातपूर्ण विवाद का खात्मा होना चाहिए. धनखड़ ने कहा ‘‘मैं सदस्यों को आश्वस्त कर सकता हूं कि इस विषय के जानकार लोगों के साथ मैंने व्यापक तैयारी की (टिप्पणी से पहले), पूर्व के महासचिवों के साथ बातचीत की और फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अगर मैं प्रतिक्रिया नहीं देता हूं तो मैं अपनी शपथ के साथ अन्याय करूंगा और अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करने में विफल रहूंगा.’’
सभापति ने 22 दिसंबर को कहा था कि संप्रग अध्यक्ष का बयान उनके विचारों से पूरी तरह से भिन्न है और न्यायपालिका को कमतर करना उनकी सोच से परे है. उन्होंने कहा कि संप्रग अध्यक्ष का बयान पूरी तरह अनुचित है और लोकतंत्र में उनके विश्वास की कमी का संकेत देता है. इससे पहले संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बुधवार को पार्टी संसदीय दल की बैठक में आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार सुनियोजित ढंग से न्यायपालिका के प्राधिकार को कमजोर करने का प्रयास कर रही है, जो बहुत ही परेशान करने वाला घटनाक्रम है. संप्रग अध्यक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया थी कि वह जनता की नजर में न्यायपालिका की स्थिति को कमतर बनाने का प्रयास कर रही है.