देश की खबरें | आईसीएमआर ने आईवीएफ परिणामों का अनुमान लगाने के लिए एआई उपकरण विकसित किया

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नयी दिल्ली, 22 दिसंबर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एमिटी विश्वविद्यालय के साथ मिलकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आधारित एक उपकरण विकसित किया है, जो पुरुषों में शुक्राणुओं की कमी के लिए आनुवंशिक कारण ‘वाई’ क्रोमोसोम के ‘माइक्रोडिलीशन’ के प्रकार का पता लगाने और आईवीएफ परिणामों का पूर्वानुमान लगाने में मदद करेगा।

एआई उपकरण के बारे में अध्ययन पिछले सप्ताह ‘जर्नल ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन एंड जेनेटिक्स’ में प्रकाशित हुआ। आईसीएमआर के राष्ट्रीय प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान (एनआईआरआरसीएच) के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. दीपक मोदी ने कहा कि बांझपन का अनुभव करने वाले लगभग 50 प्रतिशत जोड़ों में समस्या पुरुष साथी के साथ होती है।

डॉ. मोदी ने कहा, ‘‘उनमें शुक्राणु उत्पादन में समस्या हो सकती है। इसका एक प्रमुख कारण वाई क्रोमोसोम माइक्रोडिलीशन (वाईसीएमडी) है, जो कम शुक्राणुओं की समस्या से पीड़ित हर 10 पुरुषों में से एक में देखा जाता है। इस आनुवंशिक दोष के कारण पर्याप्त शुक्राणु नहीं बन पाते हैं।’’

वाईसीएमडी से पीड़ित पुरुषों को शुक्राणुओं की संख्या में सुधार के लिए चिकित्सा उपचार से कोई लाभ नहीं मिल सकता है। उन्होंने कहा कि पिता बनने के लिए ऐसे पुरुषों को सहायक प्रजनन तकनीक जैसे कि इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) की आवश्यकता होती है।

आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच द्वारा एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा के सहयोग से विकसित एआई-आधारित उपकरण ‘फर्टिलिटी प्रिडिक्टर’ इस आनुवंशिक समस्या वाले पुरुषों में शुक्राणु पुनर्प्राप्ति दर और सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) की सफलता दर का पूर्वानुमान लगा सकता है।

डॉ. मोदी ने बताया कि यह वाई क्रोमोसोम माइक्रोडिलीशन के प्रकार के आधार पर निषेचन की दर, नैदानिक ​​गर्भावस्था और जीवित जन्म दर का भी अनुमान लगाता है। उन्होंने बताया कि इससे दंपतियों को सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है।

हालांकि, डॉ. मोदी ने आगाह किया कि वाईसीएमडी वाले पुरुषों से आईवीएफ के माध्यम से पैदा हुए (पुरुष) शिशुओं को भी यही दोष विरासत में मिलेगा और वे बच्चे पैदा करने में असमर्थ होंगे क्योंकि यह शत-प्रतिशत पिता से उनके बेटों में फैलता है। वाईसीएमडी प्रभावित और एआरटी से गुजर रहे 500 से अधिक पुरुषों के डेटा के आधार पर इस उपकरण को विकसित किया गया।

एनआईआरआरसीएच के वैज्ञानिक और अध्ययन के पहले लेखक डॉ. स्टेसी कोलाको ने कहा कि इस डेटा पर मशीन लर्निंग पर आधारित एआई एल्गोरिदम लागू करने के बाद, उपकरण परिणामों का अनुमान लगा सकता है। इसके बाद इसे दूसरे सब-सेट पर लागू किया गया और पाया गया कि इसकी सटीकता लगभग 80 प्रतिशत है।

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