अब तक का सबसे गर्म दिन रहा सोमवार, 3 जुलाई
पृथ्वी अब इतनी गर्म हो चुकी है, जितनी कभी नहीं रही.
पृथ्वी अब इतनी गर्म हो चुकी है, जितनी कभी नहीं रही. सोमवार अब तक का सबसे गर्म दिन आंका गया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी पर तापमान के पुराने सारे रिकॉर्ड टूट चुके हैं.सोमवार 3 जुलाई इतिहास का सबसे गर्म दिन रहा है. अमेरिका के मौसम विभाग ने बताया है कि शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक सोमवार का तापमान औसत से 17 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था और ऐसा पहली बार हुआ है.
यूएस नेशनल ओशियानिक एंड एटमॉसफरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) ने 3 जुलाई को पृथ्वी के धरातल पर वायु का औसत तापमान 17.01 डिग्री सेल्यिस दर्ज किया. इससे पिछला रिकॉर्ड 16.92 डिग्री सेल्सियस का था जो पिछले साल 24 जुलाई को दर्ज किया गया था. एनओएए के नेशनल सेंटर्स फॉर एनवायरमेंटल प्रिडिक्शन द्वारा 1979 से दर्ज तापमान के आंकड़े इस रिकॉर्ड की पुष्टि करते हैं.
टूट रहे रिकॉर्ड
विश्व का औसत वायु तापमान साल के किसी भी दिन 12 डिग्री सेल्सियस से 17 डिग्री सेल्सियस से कुछ कम के बीच रहता है. 1979 से 2000 के बीच इसका औसत 16.2 डिग्री सेल्सियस रहा था.
हालांकि 17.01 डिग्री सेल्सियस के आंकड़े की अन्य आकलनों से पुष्टि होनी बाकी है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तरी गोलार्ध में गर्मी शुरू होने के साथ ही यह रिकॉर्ड कभी भी टूट सकता है. आमतौर पर वैश्विक औसत वायु तापमान जुलाई के आखिर या अगस्त की शुरुआत तक बढ़ता रहता है.
पिछले महीने भी तापमान का नया रिकॉर्ड दर्ज किया गया था. यूरोपीय संघ के कॉपरनिकस मौसम केंद्र ने जून की शुरुआत में सबसे अधिक तापमान दर्ज किया था. विश्व मौसम संगठन ने कहा है कि अल नीनो प्रभाव प्रशांत महासागर में जारी है. यानी अगले साल तक तापमान नये रिकॉर्ड पर पहुंच सकता है.
अप्रत्याशित गर्मी
वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान का बढ़ना मानवीय गतिविधियों की वजह से भी जारी रह सकता है क्योंकि जीवाश्म ईंधनों के जलने से सालाना 40 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में गर्मी की मार लगातार जारी है. अमेरिका के दक्षिणी हिस्से अप्रत्याशित गर्मी का प्रकोप झेल रहे हैं. चीन में हीट वेव जारी है और कई जगह तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बना हुआ है. उत्तरी अफ्रीका में तो तापमान 50 डिग्री तक पहुंच चुका है. यहां तक कि अंटार्कटिका में सर्दियों का मौसम होने के बावजूद बहुत अधिक तापमान झेल रहा है.
यूरोप भी है जलवायु परिवर्तन से त्रस्त
ब्रिटेन के इंपीरियल कॉलेज में ग्रांथम इंस्टिट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज एंड एनवायरमेंट के जलवायु वैज्ञानिक फ्रीडरिके ओटो ने कहा कि यह एक ऐसा मील का पत्थर है, जिसे पार करने पर हमें कोई खुशी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा, "यह लोगों और ईको सिस्टम के लिए मौत की सजा है.”
बर्कली अर्थ इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक जेके होफ्सफादर ने एक बयान में कहा, "दुर्भाग्य से यह इस साल स्थापित हुए नये रिकॉर्ड की पूरी सूची में महज एक रिकॉर्ड है क्योंकि उत्सर्जन बढ़ने और ग्रीन हाउस गैसों के साथ-साथ अल नीनो प्रभाव मिलकर तापमान को नयी ऊंचाई की ओर धकेल रहे हैं.”
लौट आया है अल नीनो
मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र के मौसम पर काम करने वाले संगठन डब्ल्यूएमओ ने कहा था कि अल नीनो लौट आया है. पिछले कई हफ्तों से इस बात का पूर्वानुमान जाहिर किया जा रहा था, जिसकी मौसम विभाग ने पुष्टि की है.
डब्ल्यूएमओ ने कहा कि बीते कई सालों में पहली बार प्रशांत महासागर में अल नीनो प्रभाव लगातार बना हुआ है. संगठन के मुताबिक इस बात की 90 प्रतिशत संभावना है कि साल के दूसरे हिस्से में यह प्रभाव अपना असर दिखाएगा. हालांकि यह प्रभाव कितना गंभीर होगा, इसका अनुमान लगाना अभी मुश्किल है.
अल नीनो एक मौसम चलन है जो हर कुछ साल में एक बार होता है. ऐसा तब होता है जब पूर्वी प्रशांत महासागर में पानी की ऊपरी परत गर्म हो जाती है. डब्ल्यूएमओ के मुताबिक उस क्षेत्र में फरवरी में औसत तापमान 0.44 डिग्री से बढ़कर जून के मध्य तक 0.9 डिग्री पर आ गया.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)